शिक्षा विभाग ने दी थोक के भाव नये प्राइवेट स्कूलों को मान्यता ….. अधिकारियों के संरक्षण में चल रहा स्कूलो को मान्यता देने का कारोबार…..

 

जांजगीर चांपा। (संजय यादव) नये सत्र शुरू होते ही जिले में जगह -जगह पान दुकान के समान नये स्कूल खोले जा रहे हैं । न तो स्कूल संचालक द्वारा किसी नियम का पालन किया जा रहा है न ही शिक्षा विभाग इस ओर ध्यान दे रहा हैं । शिक्षा विभाग के फर्जीवाड़े के किस्से इस समय आम हो गए हैं, कि प्राइवेट स्कूल शिक्षा के नाम लाखों रुपए का फर्जीवाडा किया जा रहा है। शिक्षा के नाम पर नये सत्र मे स्कूल संचालको से मोटी रकम वसूली जा रही हैं। नये सत्र में 5 नये स्कूलों का मान्यता दी गई है। वही जिले अब तक 418 प्राइवेट स्कूल संचालित हो रहे जहां देखा जा रहा कि गिनती के स्कूलो ने ही नियमों का पालन कर रहा बाकी स्कूल बिना नियम के चल रहे है। वहीं एक ओर शासन के नियम अनुसार स्कूल खोलने के लिए समिति का पंजीयन, रजिस्ट्रार फर्म एंड सोसायटी का पंजीयन, खेल का मैदान सहित 35 ऐसे मानकों का पालन करना होता है, जो किसी भी सूरत में आसान नहीं है। मानकों का पालन करने के बाद ही स्कूल खुल पाते हैं, लेकिन जिले में स्कूल के नाम पर शिक्षा की दुकानदारी चल रही है। यहां स्कूल खुलते भी वहां अफसर भी नहीं पहुंचते सुविधाओं की जांच करने इसलिए हौसले बुलंद है।

शिक्षा के अधिकार कानून का भी नहीं करते पालन …..
एक ओर सरकार के द्वारा शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए तरह-तरह की योजनाएं बनाई जा रही हैं। वहीं प्राइवेट स्कूलों के द्वारा शिक्षा के अधिकार कानून को ताक पर रखकर कार्य किया जा रहा है। सरकार की शिक्षा के अधिकार कानून का धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। प्राइवेट स्कूल शिक्षा के अधिकार कानून के अंतर्गत गरीबी रेखा से नीचे आने वाले परिवार के बच्चों का दाखिला लेकर शासन के साथ-साथ अभिभावकों से भी पैसा वसूल लिया जाता हैं। और सरकार को लाखों रुपए का चूना लगाया जा रहा है।

मापदंड पर भी नहीं उतरते खरे …
सबसे अधिक चौंकाने वाले आंकड़े इस साल सामने आए हैं। मापदंड में खरे पाए जाने के बाद ही स्कूल को मान्यता देने का प्रावधान है, लेकिन चंद रुपयों के लालच में शिक्षा विभाग के जिम्मेदारों ने स्कूल खोलने के सारे मापदंड को दरकिनार कर अनुमति दे दी जाती है। वहीं शिक्षा की दुकान खोलकर संचालक मोटी रकम ऐंठ रहे हैं। स्कूलों के हिसाब से तय की गई दुकानों से ही खरीदनी पड़ती हैं ड्रेस और किताबें शहर के अंदर संचालित प्राइवेट स्कूलों के द्वारा लाखों रुपए कमीशन का खेल चल रहा है। ड्रेस, पुस्तक और शिक्षा से संबंधित आवश्यक सामानों को स्कूल संचालकों के द्वारा अपने किसी परिचित के प्रतिष्ठान में कमीशन के चक्कर में रखवा कर मनचाही रकम वसूली जाती हैं और अभिभावकों के जेब पर खुलेआम डाका डाला जा रहा है।
बैठने तक की सुविधाएं नहीं रहती ……
संचालक गली-मोहल्लों में स्कूल खोलकर अभिभावकों से फीस के तौर पर मोटी रकम तो ऐंठ रहे हैं, लेकिन छात्रों को सुविधा नाम की चीज नहीं मिल पा रही है। हद तो तब होती है जब छात्रों के लिए न तो बैठने के लिए पर्याप्त व्यवस्था होती है और न ही स्कूल में शौचालय की व्यवस्था रहती है। संचालकों के पास सबसे बड़ी समस्या खेल मैदान की होती है।
प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को खेलने के लिए मैदान नहीं …..
सरकार के द्वारा खेल को भी बढ़ावा देने के कई महत्वकांक्षी योजनाएं चलाई जा रही हैं। वहीं प्राइवेट स्कूल संचालकों के द्वारा खेल के मैदान की भी व्यवस्था तक नहीं की गई है। जिससे बच्चे अपने हुनर को दिखा नहीं पा रहे हैं। खेल के मैदान के साथ-साथ कई स्कूलों के पास खुद का भवन तक नहीं है। और जिस भवन में संचालित हैं वो भी जर्जर स्थिति में हैं। जिससे कभी भी बड़ी दुर्घटना होने की स्थिति बनी रहती है। और शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारी इसकी सुध लेने के लिए तैयार नहीं है। अगर समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो शिक्षा, शिक्षा ना रहकर सिर्फ व्यापार रह जाएगा ।