बजट एलोपैथिक नहीं आयुर्वेदिक हैः डॉक्टर..पर इलाज किसका ?

रायपुर 
वैभव पाण्डेय की कलम से 
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17 साल का किशोर छत्तीसगढ़ धीरे-धीरे स्वस्थ और सुंदर होते निरंतर आगे बढ़ रहा है। बहुत कुछ बदल रहा है, बहुत कुछ संवर रहा है। राज्य सरकार फिलहाल छत्तीसगढ़ में विकास के रास्ते ना तो एक्शन के मुड में है और ना ही विपक्षी हमले के बीच रिएक्शन के मुड में है। आयुर्वेद के डॉक्टर अब आयुर्वेदिक इलाज को बेहतर मान रहे हैं। उन्होंने एलोपैथिक से फिलहाल किनारा कर लिया है। शायद वे जानते हैं कि फटाफट ठीक होने से बेहतर है जरा दीर्धकालीन इलाज प्रकिया अपनाई जाए। ताकि वह पूर्ण हो। और इसी हिसाब से 2017-18 का बजट तैयार किया गया है। बजट में एक्शन जैसा कुछ भी नहीं और ना ही रिएक्शन जैसा। कुछ है तो सलेक्शन जैसा। मतलब चयन प्रकिया के साथ बनाया गया बजट। ज्यादा जोर अधोसरंचना पर, फिर शिक्षा पर और उसके बाद खेती और पंचायत पर। हालांकि इस जोर में शोर करने जैसा कुछ विशेष नहीं है। फिर भी सड़क-पुल, कॉलेज, छात्रावास के बीच सिंचाई और डिजिटल पंचायत के मार्ग पर मोबाइल और हवाई कनेक्टिविटी का रास्ता जोड़ने का तालमेल बैठाया गया है। स्वास्थ सुविधा बेहतर हो ना हो पर विस्तार कोरिया तक मॉडल अस्पताल के रूप में होगा।
वैसे डॉक्टर के इलाज बॉक्स में सर्वाधिक जोर डिजिटल इलाज पर है। और यह डिजिटल गोली के रूप में पूरे प्रदेश भर में स्मार्ट फोन के रूप में बंटने जा रही है। पूरे बजट में खास से लेकर आम और बजट के ज्ञान को समझने वाले विद्धान के बीच यह स्मार्ट शब्द सर्वाधिक चर्चा का विषय, विश्लेषण का विषय और आकर्षण का केन्द्र है।
बात 45 लाख परिवार को स्मार्ट फोन देने की है। मतलब साफ है सरकार ढाई करोड़ की आबादी वाले छत्तीसगढ़ के हाथ में स्मार्ट फोन देखना चाहती है। सरकार चाहती है कि प्रदेश का कोई भी व्यक्ति सूचना क्रांति के इस दौर में किसी से भी पीछे ना रहें। उनके पास दुनिया की समूची जानकारी इंटरनेट से हो। चाहे वह अच्छा हो या बुरा हो।
सरकार प्रदेश में एक ऐसी पीढ़ी को तैयार करना चाहती है जिसका रास्ता स्मार्ट फोन से तैयार हो। मतबल डिजिटल के खेल में स्मार्ट खेती, स्मार्ट निर्माण, स्मार्ट शिक्षा, स्मार्ट स्वास्थ्य सुविधा प्रदेशवासियों को मिले ना मिले, लेकिन सरकार 45 लाख परिवारों को निःशुल्क स्मार्ट फोन तो दे ही रही है।
किसान ये ना सोचे कि उन्हें धान बोनस नहीं मिला, ये ना सोचे कि उनका समर्थन मूल्य का वादा पूरा नहीं हुआ, ये ना सोचे कि खाद-बीज सस्ता और अच्छा कैसे मिलेगा, ये ना सोचे कि बिना कटौती बिजली और पर्याप्त पानी कैसे मिलेगा ? किसान ये देखें कि उनके परिवार को अब फोन स्मार्ट मिलेगा। जिस पर वह सीएम से लेकर पीएम तक के चेहरे को जब चाहे देख सकता है, जब चाहे उसके भाषण सुन सकता है। सरकार अपनी बात और विज्ञापन परिवार के हर वर्ग के सदस्यों तक स्मार्ट फोन से पहुँचाएगी।  वैसे किसान यह भी देखें कि स्मार्ट फोन से वह वाट्सअप और सोशल मीडिया के जरिए सरकार को खूब गरिया भी सकते हैं। यह स्मार्ट फोन बहुत काम का है। लेकिन इस काम में किसान परिवार का भला कितना और कैसे होगा यह सवाल भी बना हुआ है ?
अब बजट के हर बिंदु की व्याख्या पर जाएंगे तो पढ़ना मुश्किल हो जाएगा, बोरिंग भी लगेगा। वैसे अब तक जो पढ़ेंगे होंगे हो सकता है उससे ऊब भी चुके होंगे। चलिए फिर से जहां से बात शुरू हुई थी वहीं चलते हैं, क्योंकि खत्म भी वहीं से करना पड़ेगा। मसला वहीं एक्शन वाले बजट का है। आखिर सरकार एक्शन के मुड में क्यों नहीं है ?  सरकार ने धान बोनस, शराबबंदी और सातवां वेतनमान पर क्यों कोई निर्यण नहीं लिया है ?  जबकि इसी निर्णय पर सबकी निगाहें थी। सरकार ने फिलहाल इस मुद्दे को जन आक्रोश और विपक्ष के हवाले कर दिया है। सरकार इस पर अभी ना चर्चा करना चाहती है और ना ही किसी तरह से कोई खर्चा। बल्कि सरकार इन तीनों ही मुद्दों पर ना तो कोई एक्शन लेने और ना ही इस पर किसी तरह कोई रियेक्शन करना चाहती है। सरकार तो इन तीनों ही मुद्दों का इलाज आयुर्वेदिक तरीके से करना चाहती है। यही वजह है कि बजट में इसके लिए फिलहाल कोई प्रावधान नहीं है।
वैसे अंत में सार बात यही है कि इस बजट में चुनाव का होलीयाना रंग भले ना दिख रहा हो, लेकिन 45 लाख परिवार मतबल करीब डेढ़ करोड़ मतदाता के बीच सरकार के हर रंग पहुँचने वाली है यह जरूर दिख रहा है। क्योंकि सरकार दीपावली से गरीबों के घर स्मार्ट बम फोड़ेगी और रौशनी में हर हाथ केसरिया कमल खिला होगा।
जाहिर है इलाज किसका..?  का उत्तर मिल गया होगा।
वैभव शिव पाण्डेय
संवाददाता, स्वराज एक्सप्रेस, रायपुर