25 दिसंबर के दिन ईसा मसीह का जन्मदिन मनाया जाता है। आइये आज हम आपको बताते हैं उनके उन मानवीय उपदेशों के बारे में जिसके कारण वे भारतीय महापुरुषों की तरह ही लोगों में पात्र बने। आज आपको यहां हम उन खोजों के बारे में बता रहें हैं जिनसे ईसा के संबंध में काफी गहन जानकारी मिलती है। देखा जाए तो ईसाई धर्मग्रंथ बाइबिल में भी ईसा के 17 से 30 वर्ष के बीच के जीवन का हिस्सा गायब है। इस बारे में कई इतिहासकारों ने गहन खोज की और बहुत कुछ ऐसा पाया जिस पर विश्वास करना सहज नहीं है।
अपनी खोज में इतिहासकारों ने ‘असेसियन’ संप्रदाय के बारे में जानकारी प्राप्त की। आपको बता दें की इस सम्प्रदाय का जिक्र प्राचीन दस्तावेजों में उपलब्ध है। इनमें यह जानकारी दी गई है की यह पूर्व यूरोप का संप्रदाय था और इसको ’एसो’ या ‘एसिन’ नामक एक महापुरुष ने स्थापित किया था। यह संप्रदाय “संन्यास प्रथा” का पालन करता था और इसका प्रमुख मठ मृत सागर के पश्चिमी तट पर बसे एंगदी नगर में थे। बाइबिल को यदि सही से शोध विधि में स्टडी किया जाये तो इसमें असेसियन संप्रदाय और उससे ईसा के जुड़े होने के बारे में कुछ संकेत मिलते हैं। ये संकेत आपको मैथ्यू 5—34, 19—12 में जेम्स 5—12 में —कृत्य 4-32, 35 में मिलते हैं।
देखा जाए टॉम बौद्ध धर्म ईसा के दुनियां में आने से काफी समय पहले ही यूरोप में अपना विस्तृत स्थान बना चुका था। बौद्ध धर्म एक कर्म प्रधान धर्म है वहीं यहूदी धर्म भी कर्म को धर्म का प्रधान हिस्सा मानता है। असेसियन संप्रदाय को भी लोग बौद्ध धर्म में स्थानीय परम्पराओं को जोड़ कर बनाया पंथ मानते हैं। बारीकी से स्टडी करने पर ईसाई तथा बौद्ध धर्म के प्रमुख लोगों के जीवन चरित्र तथा उपदेशों में एकरसता तथा समानता को आसानी से देखा जा सकता है। ईसा के “न्यू टेस्टामेंट” में दिए उपदेश बुद्ध के करुणा, अहिंसा तथा प्रेम पर दिए गए उपदेशों के समानांतर ही हैं। पाश्चात्य विद्वान आर्थर लिल ने भी सिद्धांत और व्यवहार की दृष्टि से ईसाई धर्म पर बौद्ध धर्म की छाप को स्वीकार किया है।
इस बात के बहुत से संकेत प्राचीन इतिहास में मिलते हैं की ईसा को सूली पर चढ़ा तो मरे नहीं थे। इस घटना के बाद में वे भारत में आये और यहां पर जीवन के अंतिम समय तक रहें। भारत में नाथ सम्प्रदाय प्राचीन समय से स्थापित रहा है। इसके निर्माता “महायोगी गोरखनाथ” थे। इस संप्रदाय की एक पुस्तक “नाथ नामावली” में ईसा के संबंध में जिक्र आता है और यह कहा गया है की “ईसा 14 वर्ष की अवस्था में भारत में आये थे। यहां पर उन्होंने आध्यात्मिक साधना की थी और वे अपने देश में लोगों को सत्य का मार्ग बताने के लिए यहीं से गए थे पर वहां उनको सूली की सजा मिली थी। सलीब पर चढाने के बाद में एक समर्थ आध्यात्मिक व्यक्ति द्वारा उनको उतारा गया था तथा वे फिर से भारत में आ गए थे और यहीं पर उन्होंने फिर से तपस्या की और अंतिम सांस तक भारत में रहें।” इसेक अलावा पाश्चात्य विद्वान डॉक्टर हार्वे स्पेंशर लुईस ने अपनी पुस्तक “मिस्टिकल लाइफ आफ जीसस” में इसी बात को सिद्ध किया है की ईसा सूली से उतरने के बाद में भारत में हिंदू सन्यासी के रूप में रहे थे तथा अपने जीवन का अंतिम समय उन्होंने यहीं गुजारा था।