खानाबदोश हो गए है इस सरकारी स्कूल के बच्चे.. कभी किसी घर के बरामदे मे, तो कभी पंडाल के नीचे बैठकर करतें है पढाई.. और दावे इतने कि कोई स्कूल नहीं है भवन विहीन…

अम्बिकापुर (उदयपुर से क्रांति रावत ).. चौथी कक्षा में पढ़ने वाले गनेश्वर को स्कूल की भवन के भीतर कक्षा में बैठकर पढ़ने से डर लगता है डर इस बात का कि स्कूल की छत भरभरा कर गिर ना जाए और बच्चे दब न जाए। अब गनेश्वर और उसके साथ स्कूल में पढ़ने वाले प्राथमिक स्कूल जरहाडीह के पहली से पांचवीं तक के सभी 17 बच्चे किचन शेड के बगल में बने तिरपाल के बने तंबू के नीचे ककहरा सीखकर भविष्य गढ़ रहे है।

बच्चों की चिंता स्वाभाविक है क्योंकि बारिश के मौसम में स्कूल भवन की स्थिति इतनी बदतर है कि उसके भीतर बैठकर पढ़ना तो दूर प्रवेश करने तक में भी जान का खतरा बना रहता है।

शिक्षा के अधिकार अधिनियम का ऐसा मजाक..

विकास खण्ड मुख्यालय से सलका मार्ग मुख्य मार्ग पर महज दो किलोमीटर की दूरी पर स्थिति करीब 250 की आबादी वाले ग्राम जरहाडीह के प्राथमिक शाला के भवन की यह स्थिति शिक्षा का अधिकार अधिनियम को मुंह चिढ़ाता नजर आता है। भवन की जर्जर स्थिति को देखते हुए विद्यालय में पदस्थ शिक्षक नंदलाल सिंह द्वारा वर्ष 2011 से ही विकास शिक्षा अधिकारी कार्यालय उदयपुर में प्रत्येक वर्ष भवन के जर्जर होने की सूचना और मरम्मत की मांग की जा रही है। परंतु मलाई खाने में मस्त विभागीय अधिकारियों को इसकी सुध लेने की फुरसत नहीं मिल पायी है। इस गांव के गरीब परिवारों के अधिकतर बच्चों को ऐसी ही स्थिति से हर साल दो चार होना पड़ रहा है। विकल्प के तौर पर उपयोग करने के लायक यहां कोई षासकीय भवन भी नहीं है जिसे स्कूल के उपयोग में लाया जा सके।

कोई व्यवस्था नहीं बची तो तंबू मे लगाया स्कूल…

बीते चार शिक्षा सत्र में बरसात के मौसम में स्कूल की भवन के भीतर कक्षाएं न लगकर गांव के किसी ग्रामीण के बरामदे में शिक्षण कार्य कराया जा रहा था। इस सत्र में ग्रामीणों के छोटे-छोटे घरों के बरामदों में स्कूल संचालन संभव नहीं हो पा रहा था तब विवश होकर स्कूल में पदस्थ दोनों शिक्षकों नंदलाल सिंह एवं पूनम शाक्य ने किचन शेड के बगल में बांस के खंभों के सहारे तिरपाल लगाकर तंबू बनाया और अब वहीं नियमित कक्षाओं का संचालन किया जा रहा है।

नहीं है सूचना BEO…

इस संबंध में विकास खंड षिक्षा अधिकारी डॉ. डी.एन.मिश्रा ने बताया कि तंबू में स्कूल लगाए जाने के संबंध में मुझे सूचना नही है। जर्जर स्कूल भवनों के विकल्प के तौर पर गांव में आस पास में स्थिति किसी अन्य षासकीय भवन को उपयोग करने को कहा गया है.. बीईओ साहब का ये बयान इसलिए हैरान करने वाला है, क्योंकि 2011 से स्कूल प्रबंधन ने एक दर्जन पत्र इन साहब को लिखा है और उससे भी परेशान करने वाला बात है कि साहब के आफिस ये स्कूल महज 1किलोमीटर है.. फिर भी इनको जानकारी नही…