जयपुर। मध्य प्रदेश के बालाघाट के करोड़पति ज्वैलर राकेश सुराणा ने सपरिवार जयपुर में जैन भगवती दीक्षा को अंगीकार कर लिया। जयपुर में जैन संत महेंद्र सागर जी महाराज समेत कई अन्य संतों की निश्रा में दीक्षा समारोह हुआ। यह पहला मौका है, जब महाकौशल क्षेत्र से पूरे परिवार ने एक साथ सांसारिक जीवन को त्याग कर दीक्षा ली है। राकेश सुराणा ने पत्नी लीना व 11 वर्षीय पुत्र अमय के साथ दीक्षा ली। अब वे संयम के माध्यम से जन कल्याण के साथ आत्मकल्याण की राह पर निकले हैं।
प्रतिष्ठित सराफा कारोबारी राकेश करीब 11 करोड़ का कारोबार एवं संपत्ति दान कर जैन मुनि बने हैं। लीना सुराणा अमेरिका में पढ़ी हुई हैं, व बालाघाट में बहुत बड़ा स्कूल चलाती थीं। परिवार ने मिसाल कायम कर भगवान महावीर के जिनशासन में स्वयं को समर्पित कर दिया।
दीक्षा के बाद मिला श्री यशोवर्धनजी मसा का नाम
मध्य प्रदेश के कारोबारी राकेश सुराणा दीक्षा के बाद अब श्री यशोवर्धनजी मसा के नाम से जाने जाएंगे। वहीं लीना सुराना श्री संवररुचि जी मसा व अमय सुराणा बाल साधु श्रीजिनवर्धनजी मसा के नाम से जाने जाएंगे। अब वे कभी घर नहीं लौटेंगे, किसी तरह के विलासिता के साधन का उपयोग नहीं करेंगे, कठिन तप और संयम के साथ जीवनयापन करेंगे, साथ ही जीवनभर पैदल ही विचरण करेंगे।
बालाघाट से जयपुर पहुंचे 300 से अधिक श्रद्धालु
संयम व्रत लेने के पूर्व सुराणा परिवार ने शेष बची संपत्ति भी जयपुर एवं श्री नमिऊण पार्श्वनाथ तीर्थ के लिए दान कर दी। जयपुर में हुए दीक्षा समारोह में बालाघाट से 300 से अधिक श्रद्धालु शामिल हुए। दीक्षा समारोह से पहले उनका वरघोड़ा निकाला गया। इसके बाद श्रेष्ठ गुरुजनों की निश्रा में संपूर्ण संस्कार पूर्ण कराए गए। इससे पहले बालाघाट में कारोबारी राकेश सुराना ने अपनी 11 करोड़ की संपत्ति गोशाला और धार्मिक संस्थाओं को दान कर दी। उन्होंने पत्नी लीना और 11 साल के बेटे अमय के साथ सांसारिक जीवन को त्याग कर संयम पथ पर चलने का फैसला किया। शहर के लोगों ने शोभायात्रा निकालकर विदाई दी।
2015 में हृदय परिवर्तन, सांसारिक सुख से ‘संन्यास’
राकेश बालाघाट में सोने-चांदी के कारोबार से जुड़े थे। कभी छोटी-सी दुकान से ज्वेलरी का कारोबार शुरू करने वाले राकेश ने अपने दिवंगत बड़े भाई की प्रेरणा, अपनी कड़ी मेहनत और अथक प्रयासों से इस क्षेत्र में दौलत और शोहरत दोनों कमाई। आधुनिकता के इस दौर की सुखमय जीवन की तमाम सुविधाएं उनके घर-परिवार में थीं। उन्होंने करोड़ों की संपत्ति अर्जित की, लेकिन 2015 में हृदय परिवर्तन के बाद उन्होंने परिवार सहित दीक्षा लेने का फैसला किया। अब जयपुर में सुराणा परिवार ने अपनी सालों की जमा पूंजी दान कर आध्यात्म की तरफ रुख कर लिया।