रामप्यारी गुर्जर’ भारतीय इतिहास का भुला दिया गया एक पन्ना…कोई नहीं जानता कि वह कौन थी..जानना चाहेंगे आप ? तो पढ़े पूरी खबर


फटाफट डेस्क : सरकार हमेशा स्थानीय भाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने की बात कहती है, लेकिन किसी भी सरकार ने ऐसे इतिहास जो अतीत के पन्नो में गुम चूका है उसे पलट कर देखने की कोशिस नहीं की। उन्ही पन्नों में एक और वीरांगना गुम हो चुकी है जिनका नाम है रामप्यारी गुर्जर, इनके जैसे और ना जाने कितने वीर वीरांगना होंगे जिन्हें हम अभी तक नहीं जान पाए हैं। क्यों और कब तक? क्या कोई ऐसी सरकार आएगी जो हमारे सही इतिहास को किताब के पन्नो में उतारेगी,
ताकि मुगलों और गांधी की किताब को छोड़ कर आने वाले युवक को आजादी के पहले और आजादी के बाद कितनो ने बलिदान दिया था ये पता चल सके।

 क्योंकी हमारी इतिहास कि किताबे मुगलों और गांधी में इतनी खो गई हैं कि भारतीय इतिहास के ज़रूरी अध्याय ही गायब कर दिए गए हैं।
आप सब ने तैमूर लंग के बारे में तो जरूर सुना होगा नहीं पता तो बता दूं कि वो एक बर्बर लुटेरा था जो मध्य एशिया से दिल्ली को 14 वी सदी में लूटने आया था । जब वह दिल्ली पहुंचा तो उसने दिल्ली पर कब्ज़ा कर 100000 हिन्दुओं को बंदी बना लिया और उनका बेरहमी से कतल करके उनके सिरों का पिरामिड बना दिया । फिर वह मेरठ को लूटने निकला जो रास्ते में आया उसे बेरहमी से मारता और मंदिरों को तोड़ता हुआ।

इतिहासकार उसकी दिल्ली विजय का खूब बखान करते हैं लेकिन मेरठ और हरिद्वार के बारे में लिखने से बचते हैं।तब , एक 20 साल की हिंदू वीरांगना के नेतृत्व में 60000 वीरांगनाओ और 400000 वीरों की फ़ौज तैयार हुई। जिसमें जाट राजपूत ब्राह्मण अहीर आदिवासी सब शामिल थे वो वीरांगना थी रामप्यारी और उसने मेरठ और आस पास के सभी गांवों को खाली करवा दिया । जब तैमूर अपनी सेना के साथ पहुंचा और ये देख कर परेशान हो गया । तब दिन में वीर सैनिकों ने तैमूर पर हमला कर दिया और उसकी सेना को भारी नुकसान पहुंचाया , रात में रामप्यारी गुजरी के साथ वीरांगनाओ ने हमला किया और तैमूर की सेना के छक्के छुड़ा दिए ।

उनका राशन बर्बाद कर दिया। दोनों तरफ सैनिक मरे लेकिन तैमूर की सेना में मरने वालो की संख्या बहुत ज्यादा थी । इससे उसके सैनिक बेचैन हो गए । फिर उसने मेरठ को छोड़ हरिद्वार की ओर रुख किया ।
हरिद्वार में भी तैमूर की सेना का वहीं हस्र हुआ जो मेरठ में हुआ। आखिरी युद्ध में एक 22 साल के जाट हरबीर सिंह गुलिया ने तैमूर के सीने पर तीर मारा । रात में वापिस से रामप्यारी ने हमला किया और उसकी सेना को समेट कर रख दिया। इस से घबराकर तैमूर वहीं भाग गया जहां से आया था और इस चोट से कभी नहीं उबर पाया और 4 साल बाद मर गया।