न्यूयॉर्क
मम्मी-पापा जरा ध्यान दें। कहीं देर रात तक चैटिंग करने की वजह से आपके किशोरवय बच्चों के पढ़ाई में ग्रेड गिर तो नहीं रहे हैं या वे स्कूल में ज्यादातर समय जम्हाई तो नहीं लेते रहते।
एक नए अध्ययन में यह सामने आया है कि जो बच्चे बिस्तर पर लेटने के बाद या कमरे की बत्तियां बंद होने के बाद भी 30 मिनट से ज्यादा समय तक चैट या टेक्स्ट करने में व्यस्त रहते हैं, सुबह उठने पर उनकी क्षमता में कमी आती है और वह स्कूल में ज्यादातर समय आलस महसूस करते हैं। इतना ही नहीं उनके पढ़ाई के ग्रेड भी अन्य छात्रों के मुकाबले गिरते हैं।
अमेरिका के रटगर्स विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने न्यूजर्सी के तीन हाईस्कूलों में एक सर्वेक्षण किया और लगभग 1537 बच्चों से उनके ग्रेड, सेक्स, चैटिंग करने का वक्त, वह सोने जाने से पहले चैटिंग करते हैं या बत्तियां बुझने के बाद भी चैटिंग करते रहते हैं जैसे कई प्रश्नों के जवाबों का आकलन किया।
शोधार्थियों ने पाया कि जो बच्चे कमरे की बत्तियां बुझने के बाद 30 मिनट से कम देर तक चैट करते हैं वह उन बच्चों की तुलना में स्कूल में अच्छा प्रदर्शन करते हैं जो बत्तियां बंद होने के बाद 30 मिनट से ज्यादा देर तक चैट करते रहते हैं। अध्ययन में पाया गया कि जो बच्चे देर रात तक चैट करते हैं वह काफी कम देर के लिए सोते हैं जिस कारण वह दिन में काफी नींद महसूस करते हैं और इस कारण या तो जम्हाई लेते रहते हैं या आलस महसूस करते हैं। अध्ययन में पाया गया कि जो बच्चे सोने जाने से पहले अपने फोन इत्यादि को बंद कर देते हैं उनकी पढ़ाई पर इस चैटिंग का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
रटगर्स विश्वविद्यालय की श्यू मिंग ने बताया, ‘छात्र यदि देर से सोएंगे तो देर से जागेंगे। जब हम प्राकृतिक दिनचर्या के विपरीत जाते हैं तो छात्रों की क्षमता कम हो जाती है।’ अध्ययन में यह भी पाया गया कि यद्यपि लड़कियों में चैटिंग करने का ज्यादा चलन दिखता है और दिन में भी वह ज्यादा समय नींद महसूस करती हैं लेकिन फिर भी लड़कों के मुकाबले उनका पढ़ाई में प्रदर्शन अच्छा होता है।
मिंग ने बताया कि स्मार्टफोन या टैबलेट से निकलने वाली रोशनी अंधेरे कमरे में हमारी आंखों पर ज्यादा प्रभाव डालती है। इसलिए नींद आने में भी दिक्कत होती है। यह हमारी दिनचर्या को बिगाड़ देता है। यह अध्ययन जर्नल ऑफ चाइल्ड न्यूरोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।