अम्बिकापुर। स्वामी विवेकानंद द्वारा 11 सितम्बर 1893 को शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में दिए गए ऐतिहासिक उदबोधन के वर्षगांठ के अवसर पर जनजाति गौरव समाज, सरगुजा संभाग द्वारा “जनजाति परम्परा, सनातन संस्कृति के संवाहक” विषय पर संगोष्ठी का आयोजन अम्बिकापुर के विवेकानन्द वनवासी छात्रावास, नमनाकला में किया गया।
जिसमें मुख्य अतिथि डॉ नंद कुमार साय ने कहा कि स्वामी विवेकानंद व्यक्ति निर्माण पर जोर देते थे, उन्होनें अमेरिका में जाकर वहाँ के नागरिकों के साथ भी आत्मीयता पूर्ण संबोधन करते हुए, उन्हें बहनों एवं भाइयों शब्द से पुकारा, उनके उदबोधन से ही हमारे भारत की महान संस्कृति झलकती है। उन्होनें आगे कहा कि जनजाति समाज स्वभावतः बहुत सीधा और निश्छल होता है, अपनी आदि परंपराओं को मानते हुए प्रकृति की पूजा करता है जो सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग है। कुछ अराष्ट्रीय तत्वों के द्वारा समाज में भ्रान्ति फैलाई जा रही है कि आदिवासी हिन्दु नहीं है और हमें अलग धर्म कोड दिया जाए। यह समाज को तोड़ने की एक साजिश है, यह माँग अनुचित है। आदिवासी शब्द संवैधानिक नहीं है, भारत सरकार द्वारा जनजाति कल्याण हेतु 1999 में जनजाति कार्य मंत्रालय का गठन किया गया था। जनजाति समाज की सबसे बड़ी बुराई नशा खोरी है, इसके चलते समाज आर्थिक, शैक्षणिक एवं सामाजिक दृष्टि से पिछड़ते जा रहा है। आज अच्छे नेतृत्व की कमी है। हमें युवाओं में नेतृत्व क्षमता विकसित करनी चाहिए, यही स्वामी विवेकानंद जी का भी स्वप्न था।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में मोहन सिंह टेकाम ने कहा कि इस प्रदेश में पूर्व में गोंड़ राजा हुए, जिन्होनें अनेक मंदिरों का निर्माण किया और हिन्दु देवी देवताओं को ही पूजते थे, ऐसे में आदिवासी हिन्दु नहीं है, यह कहना बेमानी है।
कार्यक्रम में अध्यक्षता कर रहे परमेश्वर सिंह ने अध्यक्षीय भाषण देते हुए कहा कि जनजाति गौरव समाज, जनजातियों की शैक्षणिक, सामाजिक स्तर को उन्नत करने के लिए विभिन्न रचनात्मक कार्य कर रहा है, साथ ही जनजाति गौरव विभूतियों के संदेश को समाज में फैलाने का कार्य कर रहा है।
कार्यक्रम एकल गीत विशेश्वर सिंह ने प्रस्तुत किया एवं आभार प्रदर्शन जनजाति गौरव समाज, सरगुजा के जिला अध्यक्ष बिहारीलाल तिर्की ने किया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से अनुराग सिंहदेव, रामलखन सिंह पैंकरा, त्रिलोक कपूर कुशवाहा, विनोद हर्ष, संतोष दास, नीलेश सिंह, सुजाता मुण्डा, कुँवर साय, रघुवर सिंह, रूपचन्द, देवनाथ सिंह पैंकरा, संजीव कुमार भगत, राजू सिंह उईके, संतोष सिंह, मुंशीराम, शंतोला सिंह, तेजबल नागेश, बीरबल शाह, बिहारी सिंह, आनन्द भगत, धनराम नागेश, अंकित कुमार तिर्की, रविराज भगत, सोनिया मुण्डा, सरस्वती एक्का, क्रांति खलखो, सुमित, दुर्गा शंकर, गोपाल राम आदि जनजाति गौरव समाज के कार्यकर्त्ता उपस्थित रहे।