ट्रेन की यात्रा की खुशी बच्चों में ऐसी जैसी चांद पर सफर के लिए राकेट पर निकले हों…

दुर्ग। राज्य स्तरीय खेल प्रतियोगिता में हिस्सा लेने आये कोंडागांव के मर्दापाल, राणापाल, हडेली जैसे अंदरूनी गांवों के बच्चों ने कई मुकाबलों में गोल्ड मेडल जीता लेकिन इन्हें उससे ज्यादा खुशी तब मिली जब उन्होंने ट्रेन देखा।

इन बच्चों ने प्रशासनिक अधिकारियों से ट्रेन देखने की इच्छा जाहिर की और ट्रेन के सफर का लुत्फ लिया। पहली बार ट्रेन में सफर कर रहीं रंजीता ने बताया कि मैंने पहली बार रेल की पटरी देखी और इस पर चलती हुई ट्रेन देखी।

मैं इस पर बैठकर घूम भी सकती हूँ, यह सोचकर ही मैं खुश हो गई। जब मैंने इसमें यात्रा की तो मुझे बहुत सुखद एहसास हुआ।

सहायक आयुक्त प्रियंवदा रामटेके ने बताया कि कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे ने निर्देशित किया था कि स्पर्धा के बाद इन बच्चों की मनचाही चीज पूरी कर दी जाए। बच्चों ने बताया कि ट्रेन देखनी है। कुछ बच्चों ने कहा कि ट्रेन में यात्रा करनी है।

कलेक्टर ने कहा कि इन 40 बच्चों को स्टेशन घूमाएं, ट्रेन दिखायें और दुर्ग से मरौदा तक का संक्षिप्त सफर कराएं। बच्चों के कोच जय सिंह ने बताया कि बच्चों ने जूडो प्रतियोगिता में शानदार करतब दिखाये और 17 गोल्ड स्पर्धा में जीते। बच्चों की इच्छा थी कि ट्रेन देखें। जिला प्रशासन के अधिकारियों ने उन्हें ट्रेन में यात्रा करा दी।

रामटेके ने बताया कि बच्चों में ट्रेन पर चढ़ने को लेकर अद्भुत ललक दिखी जैसे वो चांद पर सफर के लिए राकेट से निकलें हों। उनकी उमंग देखकर बहुत अच्छा लगा। पूरे ट्रेन के सफर के दौरान बच्चे अपने लोकगीत जोर-जोर से गाते रहे।

बच्चों के इस उमंग को देखकर पूरे कार्यक्रम की सार्थकता हो गई। कोच ने बताया कि इनमें से कई बच्चों ने अपने पेरेंट्स को खो दिया है। उनकी खुशी से भरे चेहरे देखकर बहुत अच्छा लग रहा था।

दरअसल जूडो में शामिल होने आए कोंडागांव जिले के नक्सल प्रभावित गांवों के इन नन्हे बेटे और बेटियों ने न तो कभी ट्रेन देखी और न ही आसमान में प्लेन को उड़ते देखा था। पिछले तीन दिनों से वे बस बात का इंतजार कर रहे हैं कि कब उनके कोच उन्हें ट्रेन दिखाने ले जाएंगे और कब उन्हें ट्रेन में बैठने का मौका मिलेगा।