विरोधियों की परवाह किए बिना रखते थे सतर्क निगाह.. तंज, व्यंग में माहिर… इस कहावत पर करते थे पूरा यक़ीन … ऐसे थे अजीत जोगी!

रायपुर. छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी में कमाल का जीवट था. हार न मानने की जिद थी.. और विरोधी की बिना परवाह किए बिना सतर्क निगाह रख कर उसे मात देने की कला ने धीरे-धीरे उनके व्यक्तित्व को बड़ा जिद्दी बना दिया था.

कांग्रेस पार्टी के पूर्व महासचिव बीके हरिप्रसाद छत्तीसगढ़ के प्रभारी थे. उन्हें आज भी छत्तीसगढ़ में मंच से व्हील चेयर पर बैठे अजीत जोगी का व्यवहार नहीं भूलता होगा. जोगी के बारे में आम था कि वह लक्ष्य को साधने के लिए सांप मर जाए, लेकिन लाठी न टूटे वाली कहावत में पूरा यकीन करते थे.

अजीत जोगी पहले इंजीनियर, फिर पुलिस अफसर, यूपीएससी की परीक्षा में टॉप टेन में जगह पाकर आईएएस बने थे. यही मेधा थी जो एक कलेक्टर को राजनेता भी बना गई. छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बनने से पहले वह कांग्रेस पार्टी के सफल प्रवक्ता थे. आदिवासी नेता होते हुए भी सतनामी समाज जैसे कई समाजों में उनकी अच्छी पकड़ थी.

महासमुंद तो तब के दिग्गज नेता श्यामाचरण और विद्या चरण का क्षेत्र था..लेकिन अजीत जोगी का प्रभाव भी कम नहीं था. 2004 में उन्होंने महासमुंद से विद्याचरण शुक्ल को लोकसभा चुनाव में हराया था. तब विद्याचरण शुक्ल भाजपा के टिकट से मैदान में थे.

• अर्जुन सिंह की सलाह.. राजीव गांधी से रिश्ते ने बनाया राजनेता

अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने जोगी का नाम फाइनल होने के बाद उन्हें फोन पर बधाई दी. इसके ठीक अगले दिन यूएनआई उर्दू के एक संपादक के साथ अर्जुन सिंह के घर पर भेंट हुई. तब अर्जुन सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ को उसका नेता मिल गया है.

अर्जुन सिंह ने एक लाइन और जोड़ी. उन्होंने कहा कि जोगी अगर तिकड़म को थोड़ा पीछे रखकर ठीक से काम करेंगे, तो छत्तीसगढ़ में सब ठीक रहेगा. आज अजीत जोगी नहीं हैं, अर्जुन सिंह भी नहीं हैं, लेकिन अर्जुन सिंह की नब्ज पर पकड़ कितनी मजबूत थी, समझा जा सकता है.

यह बात भी अर्जुन सिंह से ही पता चली थी कि अजीत जोगी का राजनीति में आने से काफी पहले से राजीव गांधी से संबंध था. राजीव गांधी के सेक्रेटेरिएट में विंसेट जार्ज से भी जोगी की अच्छी निभती थी. जार्ज के बेटे और अजीत जोगी के बेटे में भी ठीक-ठाक दोस्ती रही है. सिंह ने बताया था कि अजीत जोगी को राजनीति में आने की सलाह उन्होंने ही दी थी.

राजीव गांधी चाहते थे. कि अजीत जोगी राजनीति में आएं. इंदौर के कलेक्टर पद से इस्तीफा देने के बाद वह राजनीति में आए थे.. और उन्हें (जोगी) एंट्री दिलाने के लिए दिविग्जय सिंह को भेजा गया था. हालांकि जोगी और दिग्विजय में आगे कम पटी.

दस जनपथ से रहा गहरा नाता

2004 में महासमुंद से लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान अजीत जोगी दुर्घटना में बुरी तरह घायल हो गए थे. कमर के नीचे का हिस्सा बुरी तरह चोटिल हुआ. तब से जोगी व्हील चेयर पर रहते थे. दस जनपथ के सूत्र बताते हैं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी के नेता का हाल जानने में जरा भी देर नहीं लगाई. बेटे अमित जोगी को कांग्रेस पार्टी से पार्टी विरोधी गतिविधियों में निकाले जाने के बाद उन्होंने 2016 के चुनाव से ठीक पहले नई पार्टी (छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस, जोगी) बना ली.

इसकी घोषणा भी उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह के गृह क्षेत्र कवर्धा में की. लेकिन जब तक कांग्रेस पार्टी में रहे, पूरी ठसक से रहे.