छत्तीसगढ़ में संभावनाओं का खजाना खुलेगा कृषि ज्ञान की चाबी से : राज्यपाल श्री दत्त

Convocation of Indira Gandhi Agricultural University
Convocation of Indira Gandhi Agricultural University
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय का सातवां दीक्षांत समारोह

रायपुर, 20 जनवरी 2014

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के 28वें स्थापना दिवस के अवसर  आज यहां विश्वविद्यालय का सातवां दीक्षांत समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर कृषि एवं कृषि अभियांत्रिकी संकाय के स्नातक, स्नातकोत्तर एवं पी.एच.डी. के 891 विद्यार्थियों को उपाधियां प्रदान की गई।राज्य के राज्यपाल एवं विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति श्री शेखर दत्त ने समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रावीण्य सूची में आये मेधावी विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय स्वर्ण पदक तथा डॉ. व्ही. पी. शुक्ला मेमोरियल गोल्ड मेडल देकर सम्मानित किया। समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में केन्द्रीय कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री डॉ. चरणदास महंत और विशिष्ट अतिथि के रूप में राज्य के कृषि, पशुधन विकास, मत्स्य पालन एवं जल संसाधन मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल उपस्थित थे। समारोह में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के सेवानिवृत्त उपमहानिदेशक (उद्यानिकी) पद्मश्री डॉ. के. एल. चड्डा ने दीक्षांत भाषण दिया।
राज्यपाल श्री दत्त ने अपने उद्बोधन में कहा कि छत्तीसगढ़ कृषि संभावनाओं का खजाना है और इन संभावनाओं को मूर्त रूप देने के लिए वैज्ञानिक ज्ञान एवं तकनीक का अधिकाधिक उपयोग करना होगा। राज्यपाल ने विद्यार्थियों से कहा कि वे अपने ज्ञान को लगातार बढ़ाते रहें तथा जिज्ञासा की प्रवृत्ति को बरकरार रखें तथा अपने हाथ में लिए कार्यों को इतनी रूचि से करें कि वह सर्वोत्कृष्ट तरीका बनें। उन्होंने कहा कि सदियों से हमारे देश में ज्ञान के क्षेत्र में विश्व को नेतृत्व प्रदान किया है। लेकिन आजादी के पहले इसके ज्ञान की सीमाओं को बांधने का प्रयास किया गया था। राज्य में संभावनाओं के खजाने को कृषि संबंधी ज्ञान की चाबी से खोला जा सकता है।
राज्यपाल श्री दत्त ने कहा कि छत्तीसगढ़ में 44 प्रतिशत वन है, जहां विविध किस्मों के वनोपज होते हैं तथा यहां विविधता भरी वनौषधि का उत्पादन होता है। कृषि वैज्ञानिकों को इस बात पर शोध एवं अनुसंधान करना चाहिए कि इकोलॉजी में इनकी कितनी महत्वपूर्ण भूमिका है और यहां के वनौषधि पौधों का किस तरह बेहतर से बेहतर दोहन या उत्पादन किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जमीन एक महत्वपूर्ण संसाधन है, लेकिन इस संसाधन को ज्यादा बढ़ाया नहीं जा सकता इसलिए जरूरत है कि भूमि का सघन उपयोग किया जाए,
3451 Bcccउत्पादकता बढ़ाई जाए, जिससे किसानों की आमदनी बढ़े। उन्होंने कहा कि हरित क्रांति के उपरांत अब हमारा देश खाद्यान्न की दृष्टि से आधिक्य की स्थिति में है, लेकिन हमें अपने कीमती विदेशी मुद्रा से खाद्यान्न तेल और दलहन का आयात करना पड़ता है। जरूरत है कि हम दलहन, तिलहन और आकाष्ठीय वनोपजों तथा औषधीय पौधों के उत्पादन पर जोर दें। उन्होंने आधिक्य खाद्यान्न तथा अन्य फसलों के लिए खाद्य प्रसंस्करण पर जोर दिया, जिससे किसानों को अधिकाधिक फायदा हो। श्री दत्त ने विद्यार्थियों को उनके भावी जीवन के लिए शुभकामना दी और कहा कि भविष्य की चुनौतियों को चिन्हांकित करें, उनका सामना करें और फिर, निरंतर नये-नये लक्ष्यों की ओर आगे बढ़ें, अपने ज्ञान रूपी चक्षु को हमेशा खुले रखें।
केन्द्रीय कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री डॉ. चरणदास महंत ने कहा कि आज उन्होंने विद्यार्थियों के आंखों में चमक के साथ आंसू की बुंदे भी देखी हैं। यह आंसू उनकी मेहनत तथा उनके माता-पिता द्वारा उनके अच्छे भविष्य के लिए किए गए कार्यों का प्रतिबिम्ब है। उन्होंने कहा कि आजादी के आरंभिक वर्षों में हमारे देश को खाद्यान्न संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए खाद्यान्न का आयात करना पड़ता था लेकिन देश में हरित क्रांति के कारण देश में खाद्यान्न उत्पादन 250 मिलियन टन हो गया है। उन्होंने कहा कि किसानों और जमीन का अगर अनुपात निकाला जाए तो प्रति किसान के हिस्से में मात्र दशमलव तीन एकड़ जगह आती है। ऐसे में जरूरी है हमारे किसान भूमि का अधिकाधिक उपयोग करें और उद्यानिकी के माध्यम से नकदी फसल लें। उन्होंने बताया कि भारत शासन की ओर से 215 करोड़ रूपए की लागत से राज्य के लिए दो फुडपार्क स्वीकृत किए गये हैं, इससे जहां छह हजार लोगों को सीधे रोजगार मिलता है, वहीं प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से तीस हजार लोगों को रोजगार मिलता है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है और यहां विविध जलवायु एवं भूमि है। यहां अंबिकापुर में लीची, मैनपाट में आलू की फसल होती है, बस्तर में नारियल एवं मसाले की फसल होती है और जशपुर में अधिक गुणवत्तापूर्ण एवं महंगी दामों में बिकने वाली ग्रीन टी का उत्पादन होता है। छत्तीसगढ़ से रोज कंटेनर भर सब्जियां इंग्लैण्ड के बाजारों में भेजी जा जाती है। छत्तीसगढ़ छोटा राज्य है, लेकिन यहां के किसानों ने उद्यानिकी के क्षेत्र में बहुत तरक्की की है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में खाद्यान्न के खराब होने के कारण प्रतिवर्ष लगभग 45 हजार करोड़ का नुकसान होता है। यदि हम इस नुकसान को कम कर सकें तो बड़ी बात होगी। खा़द्यान्नों एवं फसलों को सुखाकर, जूस एवं खाद्य प्रसंस्करण की तमाम प्रविधियों का उपयोग कर अधिकाधिक संरक्षित करने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य में धान का उत्पादन बढ़ा है और अब जरूरत है इसकी उत्पादकता को तेजी से बढ़ाया जाए।
कृषि मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल ने एग्रीकल्चर का विस्तार करते हुए कहा कि हमारे देश में कृषि का विधान है और यहां की संस्कृति कृषि पर आधारित है। हमारे विश्वविद्यालय द्वारा अनुसंधान को बढ़ावा दिया जा रहा है, लेकिन इसके साथ ही हमें यह भी देखने की जरूरत है कि नवीन अनुसंधान हमारे कृषकों के लिए कितने उपयोगी है। हमारे किसान दूसरी फसल क्यों नहीं ले पाते, उस पर विचार करने तथा उन्हें मार्गदर्शन देने की आवश्यकता है। हमारा हर किसान वैज्ञानिक है। हमारी छत्तीसगढ़ में पुन्नी छेर-छेरा जैसे पर्व में धान को मिश्रित करने की परम्परा रही है। यही वजह है कि आज छत्तीसगढ़ में धान की 24 हजार से ज्यादा प्रजातियां है। उन्होंने कहा कि भारत को फिर से सोने की चिड़िया बनाने का एकमात्र माध्यम कृषि है। इसके लिए हमें अपने सीमांत किसानों के जीवन में खुशहाली एवं आर्थिक समृद्धि लानी होगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश के किसानों की मेहनत एवं लगन से छत्तीसगढ़ को दूसरी बार कृषि कर्मण पुरस्कार प्राप्त हुआ। कृषि कार्य को घाटे का सौदा की जगह मुनाफे का व्यवसाय बनाने की जरूरत है।
अपने दीक्षांत संबोधन में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के सेवानिवृत्त उपमहानिदेशक (उद्यानिकी) पद्मश्री डॉ. के. एल. चड्डा ने कहा कि उन्होंने कल रायपुर जिले के बाद इसके समीप के ग्रामीण क्षेत्रों एवं खेतों में जाने का अवसर मिला और उन्होंने पाया कि छत्तीसगढ़ के किसान न केवल जागरूक और समर्पित है बल्कि वे विश्व की उत्कृष्ट तकनीकी का भी उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने कृषि एवं उद्यानिकी एवं अन्य संबंधित क्षेत्रों के विकास के लिए राज्यपाल जी के सोच, चिंतन और दर्शन की भी तारीफ की। उन्होंने कहा कि यह सुखद बात है कि इस विश्वविद्यालय में हर वर्ष 1800 विद्यार्थी प्रवेश लेते हैं और इस दृष्टि से यह देश की दूसरी बड़ी यूनिवर्सिटी है। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि ‘सभी को खाद्यान्न देने और हमेशा देने’ की जिम्मेदारी आपकी है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2011-12 में देश का रिकार्ड 259.30 मिलियन टन का खाद्यान्न उत्पादन हुआ है। उन्होंने बताया कि देश में उद्यानिकी का तेजी से विकास हो रहा है। केवल 15 प्रतिशत फसलीय क्षेत्र से देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 30 प्रतिशत और निर्यात में 52 प्रतिशत की भागीदारी हो गयी है। देश में पहली बार उद्यानिकी फसलों का उत्पादन 261.8 मिलियन हो गया है, जो खाद्यान्न उत्पादन से भी अधिक है। उन्होंने विश्वविद्यालय द्वारा ‘विजन 2030’ बनाने तथा 5 नये कृषि और एक-एक उद्यानिकी एवं कृषि इंजीनियरिंग महाविद्यालय प्रारंभ करने की तारीफ की। उन्होंने आफ सीजन में तथा सालभर सब्जी एवं फूलों की खेती करने पर जोर दिया। हाईटेक उद्यानिकी करने, प्रभावी जल प्रबंधन करने, रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का किफायती उपयोग करने, पोस्ट हारवेस्ट मैनेजमेंट बनाने पर भी जोर दिया।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एस. के. पाटिल ने स्वागत भाषण में बताया कि दीक्षांत समारोह में 735 स्नातक, 121 स्नातकोत्तर एवं 14 पी.एच.डी. हैं, तथा 06 छात्रों को स्वर्ण पदक प्रदान किये जा रहे हैं। वर्तमान में विश्वविद्यालय में कृषि व कृषि अभियांत्रिकी संकाय के अंतर्गत 31 महाविद्यालय कार्यरत हैं जिनमें 21 कृषि महाविद्यालय, 4 कृषि अभियांत्रिकी महाविद्यालय एवं 6 उद्यानिकी महाविद्यालय हैं। इनके अलावा 8 अनुसंधान केन्द्र एवं 20 कृषि विज्ञान केन्द्र भी कार्यरत हैं। वर्ष 2012-13 में 5 नवीन कृषि महाविद्यालय, 1 उद्यानिकी महाविद्यालय एवं 1 कृषि अभियांत्रिकी महाविद्यालय प्रारंभ किये गये हैं। उन्होंने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा 2013 में कृषि शिक्षा के स्तर के मूल्यांकन के लिए उच्चस्तरीय समिति की अनुशंसा पर विश्वविद्यालय को प्रथम बार मान्यता प्रदान की गयी हैं। इससे आने वाले 8 वर्षों में प्रारंभ होने वाले नेशनल एग्रीकल्चर एजुकेशन प्रोग्राम के अंतर्गत विश्वविद्यालय को मिलने वाली सहायता में वृद्धि होगी। उन्होंने बताया कि कृषि विज्ञान केन्द्र, कांकेर को जोन-7 का उत्कृष्ट कृषि विज्ञान केन्द्र का अवार्ड भारत शासन द्वारा दिया गया है। उन्होंने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर की केन्द्रीय चॉवल अनुसंधान प्रयोगशाला की स्थापना लगभग पूरी हो चुकी है, जहां पर एक ही स्थान पर विभिन्न विषयों की प्रयोगशाला सुविधा विद्यार्थियों एवं अनुसंधानवेत्ताओं को प्राप्त होगी। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ के दो किसान महासमंुद के ग्राम बंसुला के किसान श्री तुलसीदास साव एवं कोण्डागांव के श्री शिवनाथ यादव को पादप अनुवांशिकी संसाधनों के संरक्षण, धान के स्थानीय प्रभेदों का संरक्षण कार्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए पादप जीनोम संरक्षण कृषक सम्मान 2012 से सम्मानित किया गया है।
समारोह में बीएससी (कृषि) की छात्रा कु. सोनल तोलवानी, एम.एस.सी. (कृषि) की छात्रा कु. प्रीशिला कुजूर, पीएचडी (कृषि) की छात्रा कु. सरिता साहू एवं एम.टेक (कृषि अभियांत्रिकी) के छात्र हिमांशु शेखर पाण्डे को विश्वविद्यालय स्वर्ण पदक प्रदान किया गया। इसी तरह कु. सोनल तोलवानी एवं कु. प्रीशिला कुजूर को डॉ. व्ही. पी. शुक्ला मेमोरियल गोल्ड मेडल भी प्रदान किया गया। दीक्षांत समारोह के पहले राज्यपाल एवं कुलाधिपति श्री शेखर दत्त, अतिथिगणों, विश्वविद्यालय के प्रबंध मंडल, प्रशासनिक परिषद् एवं विद्या परिषद के सदस्यों के साथ शोभायात्रा के रूप में मंच पर पहुंचे। कार्यक्रम के प्रारंभ में विश्वविद्यालय का कुलगीत गाया गया। कुलपति डॉ. पाटिल ने विद्यार्थियों को दीक्षोपदेश दिया। इस अवसर पर प्रमुख सचिव एवं कृषि उत्पादन आयुक्त श्री अजय सिंह, प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतिगण सहित बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित थे। कार्यक्रम प्रारंभ करने की अनुमति कुलसचिव के. सी. पैकरा ने ली, उन्होंने कार्यक्रम के अंत में आभार भी व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. श्वेता रामोले ने किया।