बस्तर संभाग के सात जिलों में ‘‘बायोटेक किसान हब’’ की स्थापना के लिए चार करोड़ रूपये की परियोजना मंजूर.. एक एकड़ के बायोटेक हब से किसानों को प्रति वर्ष होगी 02 लाख की आय

कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से संचालित की जाएगी परियोजना

रायपुर. भारत सरकार के कृषि एवं जैव प्रौद्योगिकी विभाग, नई दिल्ली द्वारा छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल बस्तर संभाग के सात जिलों बस्तर, बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा, कोण्डागांव, नारायणपुर एवं कांकेर में ‘‘बायोटेक किसान हब’’ की स्थापना की जाएगी. बायोटेक किसान हब की स्थापना हेतु आगामी दो वर्षों के लिए चार करोड़ दस लाख रूपये लागत की परियोजना स्वीकृत की गई है. इस परियोजना के तहत प्रत्येक जिले के 5 गांवों से 10-10 प्रगतिशील किसानों का चयनित किया जायेगा. इस प्रकार इस परियोजना से कुल 350 किसान लाभान्वित होंगे. बायोटेक किसान हब परियोजना के तहत चयनित किसानों की एक एकड़ भूमि पर प्रति वर्ष 2 लाख रूपये तक की आय अर्जित करने का मॉडल विकसित किया जाएगा. यह परियोजना इन जिलों में संचालित कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से क्रियान्वित की जाएगी.

‘‘बायोटेक किसान हब’’ परियोजना के तहत बस्तर अंचल के किसानों के 01 एकड़ खेत में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित धान की जिंक एवं प्रोटीन तत्वों से भरपूर जिंक राइस एम.एस. एवं प्रोटेजिन नामक धान की उन्नत किस्में लगाई जायेंगी और साथ ही किसानों के प्रक्षेत्र में समन्वित कृषि के मॉडल के तहत बकरी पालन इकाई की स्थापना भी की जायेगी जिसके अंतर्गत कृषकों को सिरोही, जमनापारी, ब्लैक बंगाल, बारबरी जैसे उन्नतशील प्रजातियों की 10 बकरी तथा एक बकरा प्रदान किया जाएगा. इस बकरी पालन इकाई से कृषकोें को प्रतिवर्ष लगभग 1 लाख रूपये तक की अतिरिक्त वार्षिक आय प्राप्त होगी. इस परियोजना के तहत किसानों के प्रक्षेत्रों में कम लागत की संरक्षित खेती के साधन बनाए जाएंगे. किसान रबी एवं गर्मी के मौसम में सब्जियों की खेती करेंगे तथा सब्जियों की खेती से औसतन 40 हजार रूपये वार्षिक आय अर्जित कर सकेंगे। प्रदेश के अन्य जिलों में भी इस मॉडल को विस्तारित करने की योजना पर कार्य किया जा रहा है.

इस परियोजना के सफल क्रियान्वयन हेतु डाॅ. गिरीश चन्देल, प्राध्यापक बायोटेक्नालाजी विभाग को परियोजना का प्रमुख अन्वेषक नामित किया गया है।
उल्लेखनीय है कि बायोटेक किसान हब परियोजना के तहत किसानों के प्रक्षेत्र में लगाई जाने वाली जिंक राइस एम.एस. में 26 पी.पी.एम. तक जिंक पाया जाता है जबकि धान की सामान्य किस्मों में 15 पी.पी.एम. तक ही जिंक पाया जाता है. इसी प्रकार प्रोटेजिन नामक धान की किस्म में 10 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है जबकि धान की सामान्य जातियों में 8 प्रतिशत तक ही प्रोटीन पाया जाता है. जिंक मानव शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है जिससे मानव शरीर अनेक प्रकार के संक्रमण से बच सकता है. जिंक की उचित मात्रा का सेवन करने से मौसमी बुखार, सर्दी, खांसी आदि संक्रमण से बचा जा सकता है. इसी प्रकार अधिक प्रोटीन वाली धान की किस्म प्रोटेजिन के चावल के उपयोग से बच्चों, तरूणों एवं युवाओं के भोजन में प्रोटीन की कमी को पूरा किया जा सकेगा. यह किस्में 125 से 130 दिन में पक जाती हैं तथा प्रति हेक्टेयर में 50 से 55 क्विंटल उपज देती है. इन किस्मों केे चावल में अधिक जिंक एवं प्रोटीन होने के कारण बाजार में 60 से 70 रूपये प्रति किलो की दर से विक्रय की जा सकता है. इन किस्मों के धान को लगाने से किसानों को प्रति एकड़ 60 हजार रूपये तक शुद्ध लाभ प्राप्त हो सकता है.