विश्व आदिवासी दिवस पर निकाली भव्य रैली और सभा का आयोजन

अम्बिकापुर (उदयपुर से क्रांति रावत) विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर सरगुजा जिले के उदयपुर विकासखंड में ग्राम डूमरडीह भव्य कार्यक्रम का आयोजन कर आदिवासी दिवस मनाया गया इस अवसर पर लोगों ने अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा का संकल्प लिया ।

हजारों की संख्या में उपस्थित लोगों ने रैली निकाली तथा सभा का आयोजन किया सभा को संबोधित करते हुए विभिन्न वक्ताओं ने अपने अपने विचार रखें लोगों ने कहा विश्व आदिवासी दिवस न केवल मानव समाज के एक हिस्से की सभ्यता एवं संस्कृति की विशिष्टता का द्योतक है, बल्कि उसे संरक्षित करने और सम्मान देने के आग्रह का भी सूचक है. आदिवासी समुदायों की भाषा, जीवन-शैली, पर्यावरण से निकटता और कलाओं को संरक्षित और संवर्धित करने के प्रण के साथ आज यह भी संकल्प लिया जाए कि अपनी आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने में उनके साथ कदम-से-कदम मिला कर चला जाए. आज जब हम धूमधाम से विश्व आदिवासी दिवस मना रहे हैं, तब हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि हम आदिवासी-मूलवासी लोगों की दशा और दिशा की ईमानदारी से समीक्षा करें. हम यह देखें कि जो संवैधानिक अधिकार भारतीय संविधान ने हमें दिया है, इसे अपने समाज-राज्य और देश-हित में उपयोग कर पा रहे हैं या नहीं. चाहे जल-जंगल-जमीन पर परंपरागत अधिकार हो, पांचवीं अनुसूची में वर्णित प्रावधान हो। ग्रामसभा का अधिकार हो हमें इसका कितना अधिकार मिला है और हम इसका कितना उपयोग कर रहे है इस पर चिंतन करने की आवश्यकता है।

विश्व आदिवासी दिवस मनाने के लिए रंगमंच में विभिन्न लोकगीत, संगीत और नृत्य से लोगों के दिलों में अपनी पहचान और इतिहास को उभारने की कोशिश कर रहे हैं। हमें बिरसा मुंडा का संघर्ष प्रेरणा देता है। समाज के अंदर हो रही घटनाओं पर हमें चिंतन करने की जरूरत है. जल संकट गहरा होता जा रहा है, पर्यावरण प्रदूषण को खत्म करता जा रहा है. आज सिर्फ दो ही रास्ते हैं- या तो चुनौतियों से समझौता कर लें, या घायल शेर की तरह अपने को बचायें. यही रास्ता आदिवासी-शहीदों का इतिहास है. जब तक जल-जंगल-जमीन, नदी-पहाड़, झील-झरना बचा रहेगा, तब तक आदिवासी समाज की भाषा-संस्कृति, सरना-ससनदीरी, अस्तित्व और पहचान बची रहेगी. कई राज्यों में विकास अभी अपने मानक स्तर तक नहीं पहुंचा है। सबसे ज्यादा जरूरत इस वक्त शिक्षा को लेकर काम करने की है. आदिवासियाें में शिक्षा का बहुत अभाव है और शैक्षणिक संस्थाओं की कमी है. जब तक आदिवासी समुदायों में शिक्षा नहीं बढ़ेगी, तब तक उनका विकास नहीं होगा, वे लड़के-लड़कियां जिनके पास थोड़े पैसे हैं, वे बड़े शहरों में जाकर उच्च शिक्षा हासिल तो कर लेते हैं, लेकिन आदिवासी समुदाय की अधिकतर आबादी उच्च शिक्षा से वंचित है. शिक्षा की कमी की वजह से ही हम अपने संसाधनों के दोहन को पूंजीपतियों के हाथ से बचा नहीं पाते है. हालांकि, कानून से संसाधनों की लूट रोकी जा सकती है, लेकिन उनका पालन नहीं हो पाता. इसलिए जरूरी है कि वहां शिक्षा का प्रसार हो और शैक्षणिक संस्थाओं का विस्तार हो, ताकि लोग अपने कानूनी अधिकार को समझ सकें. आदिवासी समुदायों के साथ शोषण भी बहुत होता है, क्योंकि वे गरीब और मजदूर वर्ग के लोग हैं.

कार्यक्रम के आयोजन में सरपंच सोनतराई नवल सिंह वरकड़े , रामनगर सरपंच रोहित सिंह टेकाम, संजय कमरों ,आशा पोया जयनाथ केराम, जनपद सदस्य बाल साय कोर्राम और गोंडवाना महासभा ,अजाक्स संघ, भारत पंडो आदिवासी समाज , सर्व आदिवासी समाज कर्मचारी संघ और गोंड युवा शक्ति हरिहरपुर के लोग इस अवसर पर हजारों की संख्या में उपस्थित होकर अपनी एकजुटता दर्शायी।