73 साल पहले मारे गए भारत के अंतिम चीते का सिर मिला बस्तर में

बस्तर – वर्ष 1947 में भारत के अंतिम तीन चीतों का शिकार कोरिया महाराजा रामानुज प्रताप सिंहदेव ने बैकुंठपुर के सलका जंगल में किया था। उन्होंने एक चीता का सिर बस्तर महाराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव को भेंट किया था। देश के उस अंतिम चीते का सिर आज भी जगदलपुर राजमहल के दरबार हाल में शोभायमान है। रणथंभौर फाउंडेशन, चाणक्यपुरी नई दिल्ली द्वारा संकटग्रस्त वन्यजीवों पर वर्ष 1997 में विशेष अंक प्रकाशित किया था। जिसमें ‘भारत में विलुप्त एक शालीन जीव- चीता’ पर विशेष आलेख भी प्रकाशित है। इसमें उल्लेखित है कि देश के आखिरी चीते मध्यप्रदेश, बिहार, उड़ीसा में देखे अथवा मारे गए थे। आखरी तीन चीते कोरिया (मध्यप्रदेश) में सन 1947 में मारे गए थे। वर्ष के आखिरी दिनों की एक रात अचानक उस इलाके के महाराजा रामानुज प्रताप सिंहदेव की गाड़ी के सामने पड़ गए थे। उन्होंने दो गोलियों से ही तीनों को ढेर कर दिया था। तीनों नर थे और संभवतः एक ही ब्यायी मां के थे।
बताया गया कि उन दिनों भी शिकार में मारे गए वन्यजीवों के पुतले बेंगलुरू में ही बनाए जाते थे। सलका जंगल में मारे गए चीतों का सिर और खाल कोरिया महाराजा ने बेंगलुरु भिजवाया था। चीतों के दो पुतले कोरिया पैलेस में रखे गए।
बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव और सुकमा जमींदार परिवार के कुमार जयदेव बताते हैं कि कोरिया महाराजा रामानुज प्रताप सिंहदेव ने चीता का तीसरा पुतला, जुलाई 1947 में बस्तर महाराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव को सत्ता का पूर्ण अधिकार मिलने की खुशी में भेंट किए थे। बस्तर से कोरिया राजपरिवार का संबंध वर्षों पुराना है। 73 साल पुराना चीता का वह सिर आज भी जगदलपुर राजमहल के दरबार हाल में प्रवीरचंद्र की तस्वीर के ठीक ऊपर टंगा है। बताते चलें कि भारत में चीता का सफाया 1947 में हो चुका है।आमतौर पर लोग अब तेन्दुआ को ही चितवा या बुंदिया बाघ कह देते हैं।
बस्तर- कोरिया महाराजा में समानता-
कोरिया नरेश रामानुज प्रताप सिंहदेव का जन्म वर्ष 1901 में हुआ और 1909 को मात्र नौ वर्ष की अल्पायु में राजा बनाया गया।वहीं 16 साल बाद वर्ष 1925 को बालिग होने पर सत्ता का पूर्ण अधिकार मिला। इसी तरह वर्ष 1929 में जन्मे बस्तर महाराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव का छह: वर्ष की उम्र 1935 में राजतिलक किया गया था, वहीं बालिग होने पर जुलाई 1947 को सत्ता का पूर्ण अधिकार दिया गया। कोरिया महाराजा ने 15 दिसंबर 1947 को तथा बस्तर महाराजा ने एक जनवरी 1948 को विलयपत्र में हस्ताक्षर कर अपनी- अपनी रियासत का विलय भारत गणराज्य में कराया था।