कोरबा से विपिन कुमार की खास खबर..
जाते जाते साल २०१३ ने कोरबा के एक परिवार को वो खुशिया दी जिसका इंतज़ार परिवार करीब ८ सालो से कर रहा था,,, ९ सालो के इंतज़ार के बाद अब परिवार न सिर्फ खुश है बल्कि पुलिस को धन्यवाद भी दे रहा है और पुलिस के मेहनत से एक बिछड़ा हुआ परिवार सालो बाद मिल सका है,, क्या है बिछड़े परिवार कि दास्तान …. एक ख़ास रिपोर्ट में ….
थाने में अपने परिवार के साथ खड़ी ये है जयमनिया जो करीब ९ सालो बाद अपने परिवार वालो से मिल सकी है और ये मिलन किसी फ़िल्म कि हैप्पी एंडिंग से कम नहीं,,, जयमनिया कि कहानी भी एक हिंदी फ़िल्म कि तरह ही है जिसमे छोटी से उम्र में बिछड़ी जयमनिया ९ साल बाद अपने परिवार से मिल सकी !
दरअसल वर्ष २००४ में कोरबा के वनांचल इलाके लेमरू से करीब ४ लड़कियो के जशपुर कि एक महिला ने काम दिलाने का लालच देकर अपने साथ ले गई थी इनमे से ३ लड़किया कुछ महीनो बाद लौट आई मगर जयमनिया वापस नहीं लौटी,,,, सालो बाद भी वापस नहीं आने पर जयमनिया के परिजनो ने इसकी तलाश कि मगर कोई सफलता नहीं मिली उन्होंने दिल्ली भी जाकर खोजने कि कोशिश कि मगर सफलता नहीं मिल सकी !
गोपाल वैश्य ( थानाप्रभारी कटघोरा)
२००४ में काम के बहाने ले गए थे, तीन लौट आये मगर ये नहीं आई थी, परिजनो ने भी ढूंढने कि कोशिश की !
पहली बार गए तो नहीं मिली, दूसरी बार में एक रिटायर्ड एयर फ़ोर्स के अधिकारी के घर पर मिली, आरोप महिला जो लेकर गई थी उसे गिरफ्तार कर लिया गया है !
परशुराम (लड़की का भाई)
डिटेल : हमलोग घर पर नहीं थे तब ले गई थी, बहुत ढूंढे मगर नहीं मिली !
घर जाना चाहती थी, मगर पता नहीं था, वहा अच्छे से रखते थे, !
बहुत दिनों तक अलग थे, अब बहुत अच्छा लग रहा है, अब नहीं भेजूंगी !
जियामणि ( लड़की )
मै अब परिवार को छोड़ कर नहीं जांउगी !
करीब ९ सालो तक अपने लाड़ली बेटी से दूर रहने वाले इस परिवार ने पुलिस से गुहार लगाई और कटघोरा पुलिस कि टीम ने मामले में अपहरण और काम के नाम पर नाबालिक को बेचने का मामला दर्ज कर दिल्ली रवाना हुई मगर एक बार पुलिस को पहली बार में सफलता नहीं मिली और फिर दूसरी बार पुलिस दिल्ली रवाना हुई और इस बार पुलिस ने एक रिटायर्ड एयर फ़ोर्स के अधिकारी के घर से लड़की को बरामद किया जहा वो खाना बनाने का काम करती थी,,,,, इधर जयमनिया ने भी बताया कि उसने कई बार अपने परिवार से मिलने कि कोशिश कि और उसको रखने वाले परिवार ने भी इस ओर प्रयाश किया मगर उन्हें सफलता नहीं मिल सकी वो हर दिन अपने परिवार से मिलने के सपने देखकर ज़िंदा थी !
इधर सालो बाद दिल्ली जैसे महानगर से आदिवासी बाहुल्य इलाके में पहुची जियामनी अपने परिजनो से मिलकर काफी खुश है साथ ही उसका पूरा परिवार भी इससे फुला नहीं समा रहा है अब परिजनो का कहना है कि वो अपने बेटी को कभी भी काम के लालच में नहीं भेजेंगे,,,,,,, दिल्ली से वापस लौटी जियामनी छग कि भाषा तो नहीं बोल पा रही मगर अपनी माँ कि बाते सुनकर उसके आँखों में ख़ुशी के आंशु देखे जा सकते है और वो भी अब अपने परिवार को छोड़कर वापस जाना नहीं चाहती !
अब देर से ही सही मगर एक परिवार एक बार फिर वापस मिल सका है मगर इस मामले ने ये साफ़ कर दिया है कि काम के बहाने नाबालिकों के बेचे जाने का खेल किस कदर खेला जाता है और इसमें कितने परिवार का दर्द समाया होता है !