विश्व को महिला हिंसा मुक्त बनाने वैश्विक अभियान का हिस्सा बने रायपुर के छात्र-छात्राएं 

1200 से अधिक युवाओं  ने लिया हिस्सा

पिछले 10 सालों में 6.8 प्रतिशत महिलाओं के खिलाफ बढ़ी हिंसा

रायपुर स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय के छात्र छात्राएं – महिला हिंसा खत्म करने 16 दिनो तक चलने वाले महिला हिंसा मुक्ति वैश्विक अभियान का हिस्सा बनते हुए ये शपथ लिया कि वे ऐसी बराबरी वाले समाज का निर्माण करेंगे जहां महिलाओं और लड़कियों को पुरूष एवं लड़कों के समान अधिकार मिलेगा ।

जेंडर आधारित हिंसा के विरूद्ध 16 दिवसीय एक्टिविज्म के वैश्विक अभियान की शुरूआत नंवबर 25 को नारी हिंसा मुक्त अंतर राष्ट्रीय अभियान से कि  जाती और इसका समापन मानव अधिकार दिवस यानि की 10 दिसंबर को की जाती है। इन सभी 16 दिनों में यह याद दिलाने की कोशिश की जाती है कि महिला हिंसा मानव अधिकारों का घोर उल्लंघन है। इन 16 दिनों में विभिन्न वर्ग के लोग जिसमें सिविल सोसाईटी, मीडिया एवं अन्य वर्गों के लोग एक साथ मिलकर महिला हिंसा के विरूद्ध सशक्त रूप से आवाज बुलंद करते हैं ताकि बराबरी का समाज का निर्माण किया जा सके जहां महिलाओं और लड़कियों को समानता का अधिकार मिलें और जेंडर के आधार पर भेदभाव न हो।

इस अभियान में ‘जश्ने नई सोच का’ कार्यक्रम के तहत इस बार रायपुर के पं रविशंकर शुक्ला आडिटोरियम में 900 से ज्यादा छात्र छात्राओं ने अपनी सहभागिता दर्ज की।यह कार्यक्रम ऑक्सफैम इंडिया, पंडित रविशंकर शुक्ला विश्वविद्यालय के महिला अध्ययन केंद्र, इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में किया गया। 2016 ऑक्सफैम इंडिया ने पटना में‘बनों नई सोच’ कार्यक्रम का आगाज किया था। यह अभियान खासकर समाज में व्याप्त उन कुरूतियों एवं संस्कारों को चुनौति देने के लिए था जो लोगों को महिला पर हिंसा एवं अत्याचार करने के लिए दुष्प्रेरित करता है।

“यह बात अपने आपमें काफी हृदय विदारक है कि महिला हिंसा विश्व स्तर पर व्याप्त है और तीन में एक  महिला को हिंसा या घरेलु हिंसा का शिकार होना पड़ता है। इससे भी बड़ी हैरानी की बात यह है कि भारत में 60 प्रतिशत महिला एवं पुरूष छोटे छोटे कारणों से महिला हिंसा को जायज ठहराते हैं। ऑक्सफैम इंडिया ने राष्ट्रीय स्तर पर बनों नई सोच अभियान के तहत लोगों के नजरीये में बदलाव एवं समाजिक नियमों में महिलाओं के प्रति सोच में बदलाव लाने के लिए जेंडर समानता के दृष्टिकोण से एक नई पहल की है जिससे के पुरूष एवं महिला दोनों के सोचों में बदलाव आएगा और दोनों जीवन में एक दूसरे को सम्मान करते हुए रह सकेंगें।”

सीईओ ऑक्सफैम निशा अग्रवाल.

विगत 10 सालों में भारत के प्रायः सभी राज्यों ने महिला हिंसा में कमी लाने प्रयास किए हैं और थोड़ी बहुत सफलताएं भी हाथ लगी है। छत्तीसगढ़ उन राज्यों में से हैं जहां पर महिला हिंसा में बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्य सर्वे -3 के मुताबिक साल 2005-06 के मुताबिक दंपती के मध्य हिंसा की दर 29.9 प्रतिशत थी जो कि पिछले 10 सालों में 6.8 प्रतिशत बढ़ी है।  उसी प्रकार से राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थय सर्वे -4 के मुताबिक 36.7 प्रतिशत है जो कि राष्ट्रीय औसत 28.5 प्रतिशत से काफी अधिक है। “इस बात से ईंकार नहीं किया जा सकता है कि पिछले 10 सालों में महिला एवं लड़कियों के प्रति हिंसा के दर में तीव्र गति से बढ़ोत्तरी हुई है जो कि एक खतरे की घंटी जैसी है। इसलिए सरकार को बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओं अभियान के साथ बेटों को सिखाओ, बेटों को समझाओं जैसे अभियान भी चलाने चाहिए ताकि मर्दानगी वाली पुरानी रूढ़ीवादी सोच में बदलाव लाया जा सके। ताकि वे महिलाओं और लड़कियों को अपने समान ही बराबर समझे”- निशा अग्रवाल ने कहा।

कुलपति रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय प्रो. शिव कुमार पांडेय ने कहा कि “समाज मे महिलाओं के प्रति सोच में बदलाव लाने की जरूरत है जिससे की गैरबराबरी का प्रश्न ही ना रहे। ऩई पीढ़ी को इसके बारे में संवेदनशील और शिक्षित करना होगा।“कुलपति इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय प्रो. मांडवी सिंह. ने कहा कि – “कला अभिव्यक्ति का अच्छा एवं सशक्त माध्यम है महिला हिंसा के विरोध में यह एक कारगर औजार साबित हुआ है। तारे जमीं जैसे फिल्मों ने जनमानस पर अच्छा प्रभाव डाला है।“

महिला आयोग कि अध्यक्षा हर्षिता पांडेय ने कहा कि  “ महिला हिंसा के विरूद्ध जीरो टालरेंस की नीति अपनानी पड़ेगी और इस संबंध में युवा एक गेमचेंजर के रूप में कार्य करेगा। रही महिला आयोग की बात तो महिला आयोग महिला हिंसा के संबंध में अब कानूनी जागरूकता फैला रही है जिसका असर अब कार्यक्षेत्र में कार्य करने वाली महिलाओं में दिखने लगा है” रानु भोगल, एडोकॉसी और केमपेन के निदेशक, ऑक्सफाम इंडिया ने कहा कि लैंगिक समानता के लिए बहुत से काम किए जाने चाहिए।

कार्यक्रम ‘जश्ने नई सोच का’ के तहत इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़, महिला अध्ययन केंद्र और पं रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों एकल नृत्य एवं नाटकों के माध्यम से नारी की समाज में स्थिति को प्रस्तुत किया गया, चंद्रिका बैंड द्वार पंडवानी लोक गीतों के माध्यम से नारी की व्यथा एवं उसके सपनों की अभिव्यक्ति की गई, सैंड आर्टिस्ट बादल बोराई द्वारा नारी की परिस्थिति एवं समाज में बराबरी की उसकी लड़ाई, सैंड आर्ट के माध्यम से सशक्त तरीके से उकेरा गया तथा रिदम क्वीन वुमेन बैंड द्वारा अपने कला की प्रस्तुती दी गई। कार्यक्रम के दौरान छात्र छात्राओं और कलाकारों ने पितृसत्ता को चुनौती देते हुए स्त्री पुरूष समानता का संदेश देने का जो प्रयास किया गया उसे दर्शकों ने खूब सराहा।

ऑक्सफैम इंडिया  के रिजनल डॉयरेक्टर आनंद शुक्ला सरकार के कार्यों की सराहना की और कहा इस क्षेत्र में और कार्य करने की जरूरत है।

अंत में धन्यवाद ज्ञापन डा. रिता वेणुगोपाल ने किया। अगर कोई भी व्यक्ति हमारे इस अभियान से जुड़ना चाहता है तो वो हमें इस नंबर पर मिस काल दें -9700089555