मेढक मेढकी की शादी कराने से होगी बारिश… या जंगल बचाने से?..

अम्बिकापुर. कभी रूढीवादी सोंच .. तो कभी प्रकृति का बिगडता संतुलन लोगों को अंध विश्वास की ओर ढकेल देता है.. ऐसा ही एक बार फिर देखने को मिला सरगुजा जिले के धौरपुर इलाके मे.. जहां इंद्रदेव को खुश करने के लिए कई गांव वालो ने एकजुट होकर मेढक और मेढकी का एक अनोखा विवाह किया.

सरगुजा जिले मे पहले तीनो मौसम अपने निश्चित समय मे शुरू और समाप्त हो जाते थे. लेकिन अब बारिश की बेरूखी ने लोगो को इतना परेशान कर दिया है कि अपनी धान की फसल उगाने के लिए ग्रामीणों को परंपरागत टोटके का इस्तेमाल करना पड रहा है. दरअसल जिले मे अब तक हुई कम बारिश की वजह से धान के पौधे तैयार तो हो गए हैं लेकिन उन्हे खेतो मे रोपने के लिए पर्याप्त बारिश ही नहीं हुई है. लिहाजा जिले के धौरपुर इलाके के कई गांव के लोग अब इंद्र देव को खुश करने के लिए मेढक मेढकू का विवाह करा रहें है. इस अनोखे विवाह के पीछे एक पुरानी परंपरा है. कि जब कभी बेहतर बारिश ना हो तो.. मेढक मेढकी का विवाह करा दो और बारिश हो जाती है.. वही धौरपुर इलाके के रहने वाले समाजसेवी राजेश सिंह सिसोदिया की माने तो ये इलाके की पुरानी परंपरा है. जिसके करने के बाद लोग ये मानते है कि बेहतर बारिश हो..

छत्तीसगढ़ का सरगुजा अपने संतुलित मौसम की वजह के लिए जाना जाता है. लेकिन कटते जंगल की वजह से जल चक्र का संतुलन बिगड़ा और पिछले कुछ वर्षो मे यहां संतुलित बारिश नहीं हो रही है. जिसकी वजह से लोगों को अंधविश्वास रूपी टोटके का सहारा लेना पड रहा है. लेकिन दूसरी ओर कृषि मौसम वैज्ञानिको का अपना अलग वैज्ञानिक तर्क है..

बारिश का ना होनी की एक मात्र वजह अंधाधुंध पेडों की कटाई है. लेकिन अपनी जरूरत और कब्जे की मंशा से लगातार जंगल काटे जा रहें है.. लिहाजा बारिश तो होती है. लेकिन जब जरूरत होती है.. तब कि जगह तब होती है. जब जरूरत नहीं है.. बहरहाल मेढक मेढकी की शादी कराने से बारिश होती है. या फिर प्रकृति के मिजाज से.. ये तो सर्वविदित है.. खैर हमारा मकसद किसी की परंपरा पर सवाल खडा करना नहीं.. बल्कि पेड बचाओ बेहतर बारिश पाओ के फार्मूले को लोगो तक पहुंचाना है..