फ्लाप हुआ संपूर्ण स्वच्छता अभियान

कहीं चारदीवारी बनाकर छोड़ दी टाॅयलेट , तो कहीं सीट तक नहीं लगाई गई 

कोरिया (J.S.ग्रेवाल की रिपोर्ट )

नगरीय व ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं, पुरुष व बच्चे खुले में शौच न जाएं, इसके लिए केंद्र सरकार ने 2019 तक सभी नगरीय व ग्रामीण क्षेत्रों में सौ फीसदी टाॅयलेट बनाने का लक्ष्य रखा है। इसके तहत नगरीय व ग्राम पंचायत स्तर पर टाॅयलेट बनाने का काम शुरू किया गया पर जिले व निकाय अधिकारियों द्वारा टाॅयलेट बनाने की संख्या पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। पर स्थल चयन के अभाव में अधिकांश टाॅयलेट बेकार साबित हो रहे हैं।

जिले के विकासखंडों की बात करें तो संपूर्ण स्वच्छता अभियान का सपना पूरा होता नहीं दिख रहा है। हालांकि अधिकारी इस सपने को कागज में पूरा करने का दावा करते हैं। लेकिन गांवाें में जाने से स्थिति स्पष्ट हो जाती है। कहीं टाॅयलेट में चारदीवारी बनाकर छोड़ दी गई है, तो कहीं सीट नहीं है। कहीं चारदीवारी नहीं है तो कहीं दरवाजा गायब है। जहां दोनों है तो टाॅयलेट यूज करने वाला ही नहीं है। टाॅयलेट बनाने में नियम दिखावे के लिए फाॅलो किए जा रहे हैं। इसलिए ग्रामीण इनका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। कई गांवों में तो स्थिति ऐसी है कि पहले भी टाॅयलेट अधूरे बने थे। फिर से नए व अधूरे टाॅयलेट बना दिए हैं। ग्रामीण टाॅयलेट का उपयोग लकड़ी रखने के काम में ला रहे हैं। एक ग्रामीण से इस बारे में पूछा कि टाॅयलेट में लकड़ी क्यों रखते हैं। उसने कहा यह टाॅयलेट रहा ही कब? अब 2019 तक स्वच्छ भारत का सपना कैसे पूरा होगा, इस पर ही सवाल उठने लगा है।

sauchalye 1209 शौचालय बनें :  818 अब भी अधूरे 
जिला पंचायत से मिली जानकारी के अनुसार मनरेगा व स्वच्छ भारत मिशन के तहत टाॅयलेट बनाए जा रहे हैं। मनरेगा के तहत 117 लाख की लागत से 1510 टाॅयलेट बनाए जाने हैं। इसके लिए 2804 परिवारों को पंजीकृत किया गया है। इनमें से 483 में कार्य प्रगति पर है, 209 पूर्ण हैं। वहीं अभी 818 पर काम शुरू ही नहीं हुआ है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत 3 करोड़ 36 लाख लागत से 21,343 टाॅयलेट बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इसमें बीपीएल के साथ बीपीएल परिवार के गरीबों को भी चिन्हांकित कर योजना से जोड़ा गया है। बीपीएल परिवार के लिए 9765 टाॅयलेट बनाना तय किया गया है। इनमें 4203 पूर्ण हैं। वहीं एपीएल परिवार के लिए 11578 टाॅयलेट बनाए जाने हैं। इनमें से 2968 पूर्ण हैं।

लोगों के साथ मजाक 
जिस तरह टाॅयलेट बनाए जा रहे हैं उससे एेसा लगता है कि खुले में शौच जाने वालों के साथ जिला व स्थानीय प्रशासन द्वारा मजाक किया जा रहा है। आज भी गांव के अलावा नगरीय निकाय की महिलाएं, युवतियां खुले में शौच जाने के लिए मजबूर हैं। टाॅयलेट बनाने में भ्रष्टाचार का कोई अंत नजर नही आ रहा है।

खानापूर्ति हो रही 
कहा जा रहा है कि टाॅयलेट बनाने में  लागत अधिक आ रही है, बजट उसके अनुरुप नहीं है। इसलिए टाॅयलेट बनाने में दिक्कत है। अधूरे निर्माण की यदि एक बड़ी वजह यह भी है, तो आधे अधूरे काम पर पैसे क्यों खर्च किए जा रहे हैं।

जाने का रास्ता ही नहीं, उपयोग कैसे करें 
टिकरापारा में टाॅयलेट कुछ इस तरह बनाया गया है कि स्थानीय नागरिक इसका उपयोग कैसे करें, समझ नहीं पा रहे हैं। चार महीने पहले इस तरह दीवार रहित टाॅयलेट बनाया गया है। इसका उपयोग ही नहीं हो रहा है। ग्रामीण इसे लेकर परेशान हैं।