नारायणपुर। हसदेव अरण्य क्षेत्र के परसा कोल ब्लाक के समर्थन में रावघाट संघर्ष समिति व आदिवासी जन वन अधिकार मंच ने अडानी कंपनी की ओर से जबरन खनन कार्य का विरोध किया। उन्होंने कहा कि सरकार वर्षों से आदिवासियों के कला संस्कृति, भाषा, बोली संरक्षण की बात करती है पर उनको उनके अधिकारों से वंचित कर कुचल रही है।
वहीं सरकार ने वन अधिकार मान्यता कानून 2006 के तहत अनुसूचित जनजाति व अन्य परंपरागत वन निवासियों को पर्यावास अधिकार, सामुदायिक वन अधिकार, व्यक्तिगत वन अधिकार के तहत अधिकार देने की बात करती है। वही दूसरी ओर सरकार की नजर जहां आदिवासी समुदाय वर्षों से निवासी करती आ रही है जहां जल, जंगल, जमीन, खनिज संपदा है उसे हड़पने में लगी हुई है। नियम कानून का उल्लंघन कर फर्जी ग्राम सभा कराकर उद्योगपतियों, कार्पोरेट कंपनियों से व्यापार का सौदा कर खदानों को बेच रही है और आदिवासी, दलितों को अपनी आस्था, संस्कृति, आजीविका से वंचित कर विस्थापित होने पर मजबूर कर रही है।
आदिवासी जन वन अधिकार मंच व रावघाट संघर्ष समिति की ओर से मांग करते है कि छत्तीसगढ़ के घने जंगल में से एक हसदेव अरण्य में सरकारी आकड़ों के मुताबिक 95 हजार पेड़ काटने प्रस्तावित है। सामाजिक कार्यकर्ताओं का अनुमान है कि कटने वाले पेड़ो की संख्या दो लाख से अधिक होगी। हसदेव के जंगलों में बाघों और हाथियों का बसेरा है और यह जैव विविधता से भरपूर है।
हसदेव अरंय उजड़ने से सैकड़ों जनजाति परिवार को उजड़ने का खतरा मंडरा रहा है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में वरिष्ठ कांग्रेसी में नेताओं ने कहा था कि हसदेव अरंय को उजड़ने नही दिया जाएगा। आदिवासी जन वन अधिकार मंच व रावघाट संघर्ष समिति पेड़ों की कटाई का विरोद्ध करते हुए हसदेव बचाने का समर्थन किया। सरकार से मांग करती है हसदेव अरण्य अंर्तगत पेड़ों की कटाई पर रोक लगाते हुए सदियों से निवास कर रहे आदिवासियों को न्याय दें। इस दरमियान सोमनाथ उसेंडी, उपाध्यक्ष लखन नुरेटी, लच्छिम दुग्गा,
सतीश बुई, रमेश मंडावी, रामसाय दुग्गा, कुशल चंदेल, बिंदेश्वर महावीर, दिगंबर, शंकर मातलाम, सोमजी कावड़े, नरसिंह मंडावी, सुरज नेताम आदि मौजूद रहे।