जशपुर के कोसे के धागों की डिमांड गुजरात से लेकर उत्तर प्रदेश के बनारस में भी…!

जशपुर (कृष्णमोहन कुमार)  छत्तीसगढ़ राज्य के अंतिम छोर पर बसा आदिवासी बाहुल्य जशपुर जिला पहले कभी मानव तस्करी के कारण सुर्खियों में बना रहता था, लेकिन वही जशपुर जिला आज टसर उत्पादन के मामले में अव्वल है,यहाँ कलेक्टर के विशेष पहल पर कुकुन से धागे निकालने का काम महिला स्व सहायता समूहों से करवाया जा रहा है, यही नही इससे इन महिलाओं को अच्छी खासी आमदनी भी हो रही है।

टसर उत्पादन से कुकुन बैंक तक का सफर 

जशपुर जिले में पहले कभी लोगो को खेती किसानी का कार्य सम्पन्न हो जाने के बाद ,लोग काम की तलाश में पलायन करते दिख जाया करते थे। लेकिन अब जिला प्रशासन की विशेष पहल पर जिले के रहवासियों को जिले में ही रोजगार उपलब्ध कराने कुछ जगहों को चिन्हाकित कर टसर उत्पादन के काम मे रेशम विभाग ने लगाया है, जहाँ किसानो को रेशम विभाग ने 10 -10 की टोली बनाकर अपने प्लांटेशन में हरित कीड़े से टसर उत्पादन करवा रहे है, जिसके बाद इन टसरो को कुकुन बैंक में किसानों से खरीदा जाता है,यही नही कोसे(टसर) का उत्पादन करने वाले किसानों को एक फसल में 40 से 45 हजार की आमदनी होती है,और अब किसान लगातार टसर की दो फसले ले रहे है,जिससे टसर उत्पाद करने वालों किसानों को आर्थिक मजबूती मिली है।

100 महिलाओं से शुरू हुआ था पायलट प्रोजेक्ट

जिले में पहले कभी कोसा उत्पादन के बाद उसे निर्यात कर दिया जाता था,लेकिन जिले में पदस्थ रेशम विभाग के सहायक संचालन बी पी विश्वास की नई सोच ने बदल दिया,सहायक संचालक  ने वर्ष 2015 में एक पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत करते हुए 100 महिलाओं को लेकर कोसे से धागे निकालने का प्रशिक्षण दिलवाया और अब ये महिलाएं रिलिंग मशीन के माध्यम से कोसे के कुकुन से धागे निकालने का काम करने लगी,जिसके बाद  कलेक्टर के प्रयासों ने इस पायलट प्रोजेक्ट को वृहद आकार दिया।

एनयूएलएम और मुख्यमंत्री कौशल विकास से बदली किस्मत

डॉक्टर प्रियंका शुक्ला ने बतौर कलेक्टर पदस्थापना के बाद रेशम विभाग के अधिकारियों से चर्चा कर कोसे के कुकुन से धागे निकालने के काम मे ग्रामीण परिवेश की महिलाओं की सहभागिता पर जोर दिया,और इस ओर काम करते हुए रेशम विभाग के अधिकारियों ने एनयूएलएम(राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन) की महिला स्व सहायता समूह की महिलाओं को मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना के तहत 45 दिनों का प्रशिक्षण दिया,उसके बाद इन महिलाओं की किस्मत ही बदल गई।

महिलाये हो रही आत्मनिर्भर

आदिवासी बाहुल्य जशपुर जिले में ग्रामीण परिवेश की महिलायें अपने घरों की चार दिवारी से निकलकर रेशम विभाग की इस प्रोजेक्ट से जुड़कर आत्मनिर्भर बनने के पथ पर अग्रसर हो चली है,रेशम विभाग ने कुकुन से धागे का प्रशिक्षण लेने वाली 10 महिलाओं को 7000 मेहनताने पर ट्रेनर की नौकरी दे दी।

1600 हेक्टेयर में टसर उत्पादन का प्लांटेशन

रेशम विभाग के सहायक संचालक बताते है कि उन्होंने जशपुर जिले के कांसाबेल ब्लाक 2 धागीकरण केंद्र की स्थापना की,इसके अलावा कांसाबेल ब्लाक में ही कुकुन बैंक भी संचालित किए जा रहे है,जहाँ किसान टसर (कोसे) का उत्पाद कर बेचने पहुँचते है।कुकुन से रिलिंग मशीनों के माध्यम से धागे निकालने का हब बनाने में रेशम विभाग ने कड़ी मेहनत की ,उन्होंने टसर (कोसा) उत्पादन करने के लिए 1600 हेक्टेयर में साजा तथा अर्जुनी प्रजाति के पौधों का प्लांटेशन किया और आज उनकी मेहनत रंग लाई,कुकुन से धागे निकालने के लिए डीएमएफ फंड से रिलिंग मशीने खरीदी गई,भविष्य में धागीकरण केंद्रों को जिले के प्रत्येक ब्लाकों में संचालित करने की कार्य योजना बनाई गई है। वही छत्तीसगढ़ के इन कोसे के धागों की डिमांड अब गुजरात से लेकर उत्तर प्रदेश के बनारस में भी हो रही है।

अब कोसे के धागे से कपड़े बुनने की तैयारी

दरसल छत्तीसगढ़ का जशपुर जिला झारखंड और उड़ीसा प्रान्तों को जोड़ता है,जहाँ बतौर कलेक्टर प्रियंका शुक्ला अपनी पदस्थापना के बाद से ही मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना से ग्रामीण आदिवासी महिलाओं को जोड़ने प्रयासरत है,इसी का परिणाम है,की महज 100 महिलाओं को लेकर शुरू की गई कुकुन से धागे निकालने की मुहिम में आज एनयूएलएम की 60 समूहों की  1200 महिलायें जुड़ी हुई है,यही नही भविष्य में कोसे के कपड़े बुनाई करने की योजना पर भी काम किया जा रहा है।