छेर छेरता माई मोरगी मार दे, कोठी के धान हेर दे….!

सरगुजिहा छेरता गीत के साथ शुरू हुआ छेरता का त्यौहार..

अंबिकापुर – देश दीपक “सचिन”

सरगुजा के मूल पर्वो में से एक छेरता पर्व को हर साल यहाँ के मूल लोगो के द्वारा बड़े ही हर्सोल्लास से मनाया जाता है, इस अवसर पर रात में छोटे छोटे बच्चे अपने घरो गाँव मोहल्ले में निकलते है और सरगुजिहा लोकड़ी गीत “लोक लोकड़ी लोकड खेरिका, ककई गाँछ दे देवर मोनसा” जैसे गीत गाँव के हर घर के दरवाजे पर गाते है और इस त्यौहार को मनाने के लिए नए धान की मांग करते है, इसी धान के चावल से पकवान तैयार कर पूरा गाँव यह त्यौहार मनाता है,वही दिन के समय में छेरता गीत “छेर छेरता माई मोरगी मार दे, कोठी के धान हेर दे” इस सरगुजा छेरता गीत के साथ दिन के समय में छेरता के रूप में नया धान घर घर से एकत्र किया जाता है।

गौरतलब है की हिन्दू पंचांग के अनुसार पूस मास की पूर्णीमा के दिन छेरता त्यौहार सम्पूर्ण सरगुजा में मनाया जाता है, इस त्यौहार को खेती के समापन के रूप में मना जाता है और किसान अपनी फसल को पूर्णतः समाप्त कर कोठी यानी की भण्डार गृह में रख देते है, और इसी वजह से यह त्यौहार मनाया जाता दरअसल खेती में साल भर के मेहनत का सफल परिणाम आने के बाद की खुशी के रूप में यह पर्व मनाया जता है यही कारण है की इस दिन नए धान के चावल के ही पकवान बनाए जाते है।

इस दिन सरगुजिहा लोग रात में लोकड़ी गीत गाते हुए गावं में घर घर से धान एकत्र करते है और दिन में छेरता गीत गाते हुए घर घर से धान माँगते है और फिर सामूहिक रूप से पकवाना बनाकर पर्व को मनाया जाता है, छेरता गीत गाते हुए ये लोग अपने हाथो में एक डंडा लिए होते है और उस डंडे को जमीन में पीट पीट कर गीत गाते है, और “सरना” यानी की गाँव के देवता के समक्ष इस डंडे को विसर्जित करते है।

बहरहाल सरगुजा के आदिवासी समुदाय में लोक प्रिय यह त्यौहार अब शहर में उत्तर प्रदेश, बिहार मध्यप्रदेश व अन्य प्रदेशो से आ कर सरगुजा में बस चुके लोगो में भी काफी लोकप्रिय हो चुका है और ये लोग भी स्थानीय ग्रामीणों के साथ इस पर्व का आनंद लेते है।

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