कोरिया में कलयुग का भगीरथ …………………

कोरिया
(जे.एस.ग्रेवाल की रिपोर्ट)
 
कहते है जहां चाह होती है वहां राह निकल ही आती है, इसे बात को सार्थक कर दिखाया है कोरिया जिले के चिरमिरी नगर पालिक निगम वार्ड क्रमांक-01 के एक किसान श्यामलाल राजवाड़े नें। 40 वर्सीय इस नौजवान नें जिसका न तो स्वयं का घर है और न ही कोई स्थायी रोजगार, श्यामलाल के इस साहसिक कार्य के लिए सरकारी नुमाइंदो ने उसे आज तक किसी भी प्रकार की सहायता प्रदान नही की । परिणाम स्वरूप इस युग के भागीरथ ने आज भी अकेले ही अपने तालाब को पूरा करने की पुरजोर कोशिष में जुटा हुआ है ।
40 वर्षीय श्यामलाल राजवाड़े के परिवार में उनकी पत्नी फुलकुवर के अलावा तीन पुत्रियां चंदा, तारा व लक्ष्मी है श्यामलाल के पास खुद के रहने के लिए स्वयं का मकान तक नही है वह अपने परिवार के साथ ब्रिटिश ज़माने के एक रेल्वे के खाली पड़े एक क्वार्टर में रहता है श्यामलाल ने आज से लगभग 23 वर्ष पूर्व जब वह यहां रहने आया था तो उसने यहां पीने एवं निस्तार के लिए पानी की भारी किल्लत को देखा, पानी की इस किल्लत को दूर करने के लिए उसने पहले अपने जमीन पर एक कुंआ खोदने की सोची पर जब वह कुंआ खोद ही रहा था तो उसे लगा कि पानी की किल्लत तो पूरे वार्ड ग्राम में ही है तो फिर वह केवल अपने लिए कुंआ क्यों खोद रहा है  इसके बाद उसनें कुंआ खोदने का विचार त्याग दिया और अपनी ही जमीन पर एक तालाब खोदने का फैसला लिया जिससे वार्ड के सभी लोगो की पानी की समस्या दूर हो सके, आज उसके अथक प्रयासो से तालाब लगभग आधा तैयार हो गया है और आस पास के सैकड़ो लोगो की पानी की जरूरतो को वह अधुरा बना तलाब पूरा कर रहा है ।
       श्यामलाल अपने परिवार के भरण पोषण के लिए लोगो के यहां मजदूरी का कार्य करता है और दिनभर की हाड़तोड़ मजदूरी करने के बाद वह बचे समय में अपने तालाब की खुदाई करने का काम करता है, श्यामलाल के पास खुद की साड़े सात एकड़ जमीन है लेकिन उसके पास बैलो की जोड़ी नही है, जिसके कारण वह पहले दूसरो के खेत जोतता है और उसके बाद बदले में उनके बैल जोड़ी से अपने खेत जोतता है इसके बाद जो समय बचता है उसे वह तालाब पूरा करने में लगाता है। श्यामलाल ने इस तालाब के निर्माण को अपने जीवन का अहम उद्देश्य बना लिया है और पिछले 23 वर्षो से इस युग के कलयुगी भागीरथ ने रोज थोड़ा थोड़ा खुदाई का काम कर चाहे जैसी भी परिस्थितियाँ रहीं तपती धूप हो, मूसलाधार बारिष हो रही हो या फिर कड़ाके की ठंड पड़ रही हो, इस कलयुगी भागीरथ नें अपना तालाब खोदना जारी रखा और शायद यही कारण है कि श्यामलाल के मजबुत इरादों के सामने ये कड़े पत्थर भी हार गये। पहले उसके उपर हंसने वाले ग्रामीण भी अब उसकी लगन व मेहनत के कायल हो गए है तथा उसे सम्मान की नजरो से देखने लगे है।श्यामलाल ने जब इस बंजर व पथरीली जमीन पर तालाब बनाने का कार्य शुरू किया था तो आस पास के लोगो ने उसे पागल करार दे दिया था। लोगो का कहना था कि इस पथरीली जमीन पर तालाब तो क्या बनेगा उल्टे यह पागल अपनी जान इन्ही पत्थरो में दे देगा ।
       साजा पहाड नामक यह क्षेत्र 2004/05 के नगर निगम चुनाव के पूर्व ग्राम पंचायत था। यहां लगभग 150 परिवार निवास करते है तथा यहां की वोटर संख्या 700 के करीब है। आर्थिक रूप से यह क्षेत्र काफी पिछड़ा हुआ है, यहां के ज्यादातर निवासी खेती या मजदूरी का कार्य करते है नगर निगम में षामिल होने के सात साल बाद भी यहां की स्थिति ज्यों की त्यों है आज भी यहां के निवासी मूलभत सुविधाओ बिजली, पानी आदि जैसे समस्याओं से रोजाना दो-चार होते रहतें हैं, यहां के ज्यादातर निवासियो के पास खुद का मकान तक नही है तथा वे रेल्वे के कर्मचारियो व बिजली विभाग के द्वारा खाली किये गए मकानो में ही रह रहे है, सन् 1990 में जब श्यामलाल ग्राम साजापहाड़ में रहने पहुंचा तो उसने यहां पानी की किल्लत को देखते हुए इस समस्या के लिए किसी सरकार या नगर पालिका का मुंह ताकने के बजाय स्वयं ही पेयजल समस्या को दूर करने का बीड़ा उठाया और अपनी ही जमीन पर उसनें तालाब खोदना प्रारम्भ किया ।
      इस कलयुगी भागीरथ ने पिछले 23 वर्षों से लगातार अकेले एक तालाब को खोद रहा है लेकिन आज तक किसी प्रशासनिक अधिकारी या नेता नें न तो यहां का दौरा किया और न ही श्यामलाल को कोई मदद देने की बात की जबकि वह तालाब अपने लिए नहीं बल्कि पूरे गांव के लिए खोद रहा है। यह अपने आप में बेहद आष्चर्यजनक है, जबकि लगभग हर वर्ष  लोकसभा, विधानसभा, नगरीय निकाय आदि चुनावो में वोट लेने के लिए नेताओं का दौरा यहां होता ही रहता है उचे पदो पर बैठे तमाम लोगो की लगातार उपेक्षा व उदासीनता की कोई परवाह किये बगैर 40 वर्षीय श्यामलाल आज भी अकेले ही पूरे लगन से अपने तालाब को पूरा करने में जी जान से जुटा हुआ है उसकी दिली तमन्ना है कि वह अपने जीवनकाल में इस तालाब को पूरा कर दे ताकि इस गांव से पानी की समस्या हमेषा के लिए समाप्त हो जाये, लेकिन शासन प्रशासन अभी तक उदासीन बना हुआ है। हालांकि इसकी कभी कोई परवाह श्यामलाल ने न कभी पहले की थी और न ही अब कर रहा है