- तीन दिन बाद इसी जगह नवरात्र पर लगेगा मेला,
- लाखों की संख्या में दर्शन को आते है श्रद्धालु
- दुर्लभ प्रजाति के प्राकृतिक औषधीय पौधे जलकर राख
अम्बिकापुर(उदयपुर से क्रांति रावत)
सरगुजा जिले के वनांचल क्षेत्र उदयपुर अंतर्गत स्थित दर्शनीय स्थल और आम लोगों के आस्था का प्रतीक रामगढ़ पहाड़ जलकर राख में तब्दील हो गया है। जिसे देखकर दिवंगत पूर्व सांसद एवं संत कवि पवन दीवान की छत्तीसगढ़ी कविता ‘‘राखबे त राख, नई राखबे त झन राख। तहुं होबे राख, महूं होहूं राख’’ चरितार्थ हो रही है। 631 सीढि़यों की पहाड़ी जलकर राख होने से आज वीरान और उजाड़ नजर आ रही है। सीढि़यों से जैसे जैसे उपर की ओर बढ़ते जायेगें पूरे जंगल क्षेत्र में सिर्फ धुंआ, राख, लकडि़यों के जले अवशेष ही नजर आते है। हरियाली मानों कहीं खो गयी है। मंदिर से 20 मीटर की दूरी पर कच्चे केला के पौधों के बीच श्रद्धालुओं के बिश्राम के लिए बनायी गयी घास फुस की झोपड़ी भी पुरी तरह से जलकर राख हो चुकी है। घांस फुस, छोटे पौधे और हरी पत्तियां अब देखने को भी नहीं मिल पा रही है। पहली बार इतनी भयानक आग इस पहाड़ पर लगी और सब कुछ जलकर राख हो गया। जिस तरह से यहां के पर्यावरण को नुकसान पहुंचा है आने वाले कई सालों तक इसकी भरपाई संभव नहीं । बड़े पेड़ जिनकी जड़े गहराई में है वह खड़े तो है पर आग से बुरी तरह झुलसकर अपनी बर्बादी की दास्तां खुद ही बयां कर रही है और शायद यही कह रही है कि इस दर्द को समझने वाला शायद कोई नहीं है।
वन परिक्षेत्र उदयपुर अंतर्गत आने वाले इस दर्शनीय स्थल में पहाड़ी के उपर श्रीराम जानकी जी का मंदिर है जिसके भीतर श्री विष्णुजी, राम-सीता, लक्ष्मण और बजरंग बली की हजारों साल पुरानी प्रतिमा है जिन्हे देखने हर साल लाखों की संख्या में श्रदालु आते है। मंदिर से बांयी तरफ जानकी तालाब है जहां बारहों महीने पीने का स्वच्छ पेयजल उपलब्ध होता है। इसी रास्ते से आगे दांयी ओर पार्वती गुफा और चंदन माटी तालाब है। इनकी सुंदरता और इनकी शीतलता लोगों को अनायास ही अपनी ओर खींच लाते है। पहाड़ी के ठीक पीछे की ओर लगभग 50 फीट नीचे गौतम बुद्ध की हजारों साल पुरानी प्रतिमा है, जिसमें उनके बाल्यवस्था से बोधी प्राप्ति तक विभिन्न अवस्थाओं को दर्शाया गया है। यहां तक लोगों का पहुंच पाना मुश्किल होता है । किसी जानकार व्यक्ति के साथ रहे बिना यहां पहुंच पाना संभव नही है। इसके अतिरिक्त भी रामगढ़ पहाड़ कई ऐतिहासिक और पौराणिक रहस्यों को समेटे हुये है। जो गहन शोध का विषय है। रामगढ़ पहाड़ के हर भाग में विभिन्न प्रजातियों के पेड़ पौधों के अलावा दुर्लभ प्रजाति के प्राकृतिक औषधीय पौधे भी पाये जाते है। शासन द्वारा करोड़ों रूपये खर्च कर कई तरह की योजनायें बनाकर उनके संरक्षण एवं संवर्धन का भी प्रयास किया जा रहा है परंतु जैव विविधताओं से लबरेज इस प्राकृतिक उपहार को सहेज पाने में वन विभाग नाकाम हो रहा है। गर्मी के मौसम के आने से पहले ही वनों को आग से बचाने के लिए लाखों रूपये खर्च कर तरह तरह की कार्यशाला एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये गये फिर भी रामगढ़ पहाड़ को जलने से वन विभाग नहीं बचा सका। विभाग द्वारा उदयपुर सब डिवीजन में एसडीओ, रेंजर, सर्किल इंजार्च, बीटगार्ड, चैकीदार, फायर वाचर, नियुक्त हैं। इन सबके बावजूद लगातार दो हफ्तों तक रामगढ़ पहाड़ जलता रहा और किसी को पता भी नहीं चला आज भी वन विभाग के लोग बिल्कुल खामोश और अनजान बने हुये है जैसे कुछ हुआ ही नही हो। जबकि दो दिनों पूर्व तक धधक धधक कर जलते हुये लौ को रात में दूर से ही देखा जा सकता था।