आदिवासियों की खुलेगी किस्मत. एक पेड़ के नीचे गढ़ेंगे ज़िन्दगी

रायपुर. बस्तर संभाग के सभी जिलों में साल वनो की बहुलता है. पर यह शायद ही किसी ने सोचा होगा कि कोण्डागांव जिले के अनमोल साल वनो का उपयोग किसी खेती के लिए हो सकता है. वह भी ऐसी खेती जो आने वाले तीन-चार सालों में पूरे इलाके के आर्थिक व सामाजिक दृश्य को बदल देगी. वैसे तो बस्तर के साल वन स्थानीय निवासियों के लिए इच्छा पूर्ति करने वाला पेड़ का दर्जा रखता है. वनों से क्षेत्र के निवासी अब तक मात्र लकड़ी, वनोपज या अन्य दैनिक घरेलू सामान को जुटाने का साधन के रूप मे करते थे. पर इन ठोस पेड़ों के उपयोग को बहुआयामी बनाते हुए स्थानीय निवासियों के जीवन की दशा और दिशा को बदलने वाले प्रमुख आर्थिक संसाधन के केन्द्र के रुप में विकसित करने की योजना बनाई जा रही है. व्यावहारिक तौर पर साल वृक्ष के पेड़ तले काली मिर्च के रोपण को अनुकूल पाया गया है और इस पेड़ के लंबे और विशालकाय तने कालीमिर्च की लताओं की बढ़ोतरी में उपयोगी होंगे. 

कोण्डागांव जिले के विकासखण्ड फरसगांव के ग्राम लंजोड़ा के पारा सल्फीपदर को  जिला प्रशासन ने कालीमिर्च की खेती के लिए चयन किया. इसका प्रमुख कारण स्थानीय ग्रामीणों द्वारा गावं सीमा के समीप एक हजार एकड़ में फैले हुए प्राकृतिक साल वनो का सुरक्षा और संवर्धन का प्रयास करना रहा है. बिना किसी शासकीय प्रयास व दबाव के इस वन ग्राम के निवासियों ने आने वाले पीढ़ियो के भविष्य को. इन वनो को सुरंक्षा करके रखा हुआ है. जिसके लिए जिले के अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा यहां के साल वन क्षेत्रफल की दृष्टि से घना है. जिनकी संख्या 59 हजार बताई गई है. ग्रामवासियों की माने तो उनके पूर्वजों ने ही इस वनो की सुरक्षा का आधार रखा है. जिसे वे आज तक निभाते चले आ रहे है. वनो के संरक्षण के लिए हर रविवार ग्राम के लोगों की बैठक होती है. जिसमें 72 परिवार में से किसी न किसी सदस्य का शामिल होना जरुरी होता है. अवैध कटाई रोकने के लिए सामुहिक प्रयास किया जाता है. वनो की रखवाली के लिए समिति भी बनाए गए है. जो नियमित रुप से इन वनों की सुरक्षा के लिए तैनात रहते है.

उत्साहित ग्रामवासियों ने काली मिर्च परियोजना का जोरदार समर्थन करते हुए अपने विचारो को साझा किया. स्थानीय निवासी बिसरु राम नेताम ने बताया कि हम लोगो ने तो जैसे-तैसे अपना जीवन गुजार लिया है पर आने वाले पीढ़ी के भविष्य के लिए जी-जान से इस योजना को सफल बनायेंगे. अधिकारियों ने हमें बताया कि वनो का तो आप लोगो ने संरक्षण किया ही है. अब इन्ही वनो से आपको और आमदनी कराई जायेगी. इसी पर स्थानीय किसान लखमू राम नेताम ने बताया कि वनो का संरक्षण हमारे पूर्वजों ने शुरु किया था. उससे प्रेरित होकर व इलाके में घट रहे वन की प्रतिशत को देखकर गांव के लोगो ने वनो को बचाने के लिए लगातार बैठके की. वन बचाने के अलावा इन वनों से हमें अलग से आमदनी भी होती है. तो यह हमें और हमारे बच्चों के लिए सुनहरा अवसर होगा. गांव की एक अन्य ग्रामीण महिला लछंतीन नेताम ने बताया कि हम वनों को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है. इसके लिए वनो से दातौन व पत्ते-झाड़ियां लाने एवं पशु चराई भी बंद कर दिया गया है और वन की सुरक्षा के लिए तैनात समिति के सदस्य बारी-बारी से संपूर्ण वन क्षेत्र का लगातार दौरा करते रहते है.  

AADIWASI

कृषि वैज्ञानिक ने ग्रामीणों को बताया कि काली मिर्च के पौधो को पूरा विकसित होने में 2 से 3 साल लग जाते है. इसके बाद इनकी लताओं में फल आना शुरु हो जाता है. इस प्रकार हर एक पौधे से 1500  की आमदनी होगी. साथ ही वृक्षो के बीच की भूमि पर केयूकंद, सेमर, नांगर, शकरकंद, जिमीकंद, कोचई, तिखुर, अदरक, हल्दी जैसे मसाले वाले पौधे भी उगाए जा सकते है. साथ ही गांव के 10-10 एकड़ की खाली जमीन पर केले और पपीते के पौधे भी लगाये जायेंगे ताकि साल के 6 महीने के भीतर ग्रामीणों को अतिरिक्त आय का जरिया मुहैया कराया जा सके. इसके अलावा जिला प्रशासन ने स्थानीय ग्रामीणों को तात्काल लाभ कराने के लिए सामुदायिक वन अधिकार पट्टे भी दिए जा रहे है, ताकि ग्रामीण बे-रोक-टोक पौधो का सुरंक्षा कर सके.

काली मिर्च की खेती से कोण्डागांव जिले के अलावा राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर भी मशहूर होने के साथ-साथ ही अन्य ग्रामों के लिए एक रोल मॉडल बनने को नजर आ रहा है. इस दौरान ‘न वनो को काटेंगे-न काटने देंगे‘ और ‘पेड़़ बचाओ भविष्य के लिए‘ जैसे स्लोगन को ग्रामीणों द्वारा दोहराया जा रहा है. इन ठेठ ग्रामीणों ने सही मायने में पर्यावरण संदेश को समाहित करके एक योग्य उदाहरण दिया है और भविष्य को बेहतर करने की कोशिश की है.