डिप्रेशन निगल रहा युवा जिंदगियां-डाँ. माधुरी

  • 20 प्रतिश मरीज ही करा रहे समय पर इलाज
  • लोगों को मानसिक रोग की सही पहचान नहीं

अम्बिकापुर

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सरगुजा संभाग में पिछले एक-दो माह में लगातार कई युवाओं ने आत्महत्या की। इनमें कुछ ने पढ़ाई में सफल न होने पर तो कुछ ने प्रेम में असफल होने तो कई युवाओं ने पारिवारिक कलेश के चलते आत्महत्या कर ली। इस माह के अंदर अब तक तीन बालिकाओं ने अपने ऊपर मिट्टी तेल डालकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। इनमें दो बालिकायें परीक्षा में फेल होने व एक 13 साल की बालिका कक्षा 6 वीं में पास होने के बाद अभिभावक के द्वारा महज यह कहने कि इतने कम नम्बर क्यों आये, इस कारण से अग्रिस्नान कर लिया। यह तीनों घटनायें आज के युवाओं की सोंच को लेकर बुद्धिजीवियों को सोंचने पर मजबूर करती है। यह सिलसिला वर्तमान में रोज जारी है। इस बारे में मनोविशेषज्ञ से चर्चा की गई तो उनका कहना है कि आज के समय में सबसे ज्यादा युवा डिप्रेशन में चल रहे हैं। यही नहीं मानसिक रोगों के इलाज को लेकर इनके मन में कई भ्रांतियां होती है। इन्हें लगता है कि मनोचिकित्सक बस नींद की दवा देता है या फिर पूरी जिंदगी दवा खानी पड़ेगी।

रघुनाथ जिला अस्पताल की मनोरोग विशेषज्ञ डाँ. माधुरी मिंज ने बताया कि आत्महत्या करने वाले रोग भले ही सुसाईड नोट मेें करियर और निजी परेशानियां को अपनी मौत की वजह बताते हैं लेकिन हकीकत यह है कि आत्महत्या का कदम उठाने वाले 80 फीसदी लोग डिप्रेशन के शिकार होते हैं। मनोविशेषज्ञ ड. माधुरी मिंज ने बताया कि यदि इन लोगों ने वक्त रहते अपनी बिमारी को पहचान कर इलाज कराया होता तो शायद वे जिंदा होते। युवाओं को मानसिक रोग की सही पहचान भी नहीं होती है। बढ़ते तनाव को वह सहज भाव में ले जाते हैं और अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं। बाद में जब कोई रास्ता नजर नहीं आता तो आत्महत्या जैसे कदम उठाते हैं।

375 मनोरोगी व 84 मंद बुद्धि सामने आये
जिला अस्पताल में मनोविशेषज्ञ की पदस्थापना के 4 माह में ही 375 मनोरोगी सामने आये हैं। यह आंकड़ा अम्बिकापुर रामानुजगंज, शंकरगढ़, वाड्रफनगर के क्षेत्र में दर्ज किया गया है। मनोविशेषज्ञ ड. माधुरी मिंज के अनुसार इसके अलावा 84 मंद बुद्धि भी उपचार के लिये पहुंचे हैं। इनमें सभी की उम्र 0 से 60 साल के बीच की है और ज्यादातर गरीब घरों के लोग हैं। इस बारे मे जानकारी लेने पर उन्होंने बताया कि गरीब घरों में जल्दी विवाह होने व बच्चे जल्दी होने से उनका मानसिक विकास नहीं हो पाता। इस कारण से बच्चे मंदबुद्धि हो जाते हैं।

अपनी बातें करनी होगी शेयर
आज के परिवेश में अभिभावकों को अपने बच्चों से ज्यादा से ज्यादा उम्मीदें होती है। अपनी इसी उम्मीद को पूरा करने बच्चों पर ज्यादा बोझ लाद दिया जा रहा है। अभिभावकों की उम्मीद को पूरा नहीं कर पाने पर बच्चे डिप्रेशन में चले जाते हैं। ड. मिंज का कहना है कि इस चीज को अभिभावकों को समझना होगा, हर बातें अभिभावकों व बच्चों दोनों को एक-दूसरे से शेयर करनी होगी। तब जाकर बच्चों को डिप्रेशन से बचाया जा सकेगा।