पांच साल से जीआईएस सर्वे अधूरा, निगम को लाखों का नुकसान

कोरिया
चिरमिरी से रवि कुमार 

शहरीकरण की भौगोलिक स्थिति जानने के लिए पांच साल पहले शुरू हुई जियोग्राफिक इंफार्मेशन सिस्टम (जीआईएस) सर्वे अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। इसके लिए नियुक्त एजेंसी की सर्वे रिपोर्ट भी गलत साबित हुई है। इसी वजह से यह अभी तक ऑनलाइन भी नहीं हो पाई है। इससे निगम को चिरमिरी के शहरीकरण की वास्तविक स्थिति की जानकारी नहीं मिल पाई है और इसकी वजह से निगम को हर साल लाखों रुपए के संपत्तिकर का नुकसान हो रहा है।

नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग ने फरवरी 2011 में प्रदेश के 10 नगर पालिक निगम का भौगोलिक स्थिति के आधार पर संपत्तिकर, भवन अनुज्ञा और ई-गवर्नेंस योजना लागू करने के लिए जीआईएस सर्वे कराने को कहा था। इसका ठेका आर्यंश सॉफ्टवेयर साल्युशंस प्राइवेट लिमिटेड पुणे को दिया गया। तत्कालीन अवर सचिव एमआर ठाकुर के आदेश के अनुसार एजेंसी को सभी नगर पालिक निगमों के प्रत्येक वार्ड के घरों का सर्वे और डाटा बेस तैयार कर जून 2012 तक सौंपना था। एजेंसी नगर पालिक निगम चिरमिरी के वार्डों का पूरा सर्वे नहीं कर पाई है।

ऐसे किया रैंडम जांच

निगम की राजस्व विभाग की टीम ने सर्वे रिपोर्ट की पुष्टि के लिए प्रत्येक वार्ड के 10-15 मकानों की रैंडम जांच की। वहां की स्थिति का जायजा लिया। इसमें नाप जोख का आंकड़ा गलत साबित हुआ। इसके बाद संपदा विभाग ने भी वार्डों में जाकर मकानों की जांच की, इसमें गड़बडियां सामने आईं। इसकी वजह से एजेंसी की रिपोर्ट लौटा दी गई।

क्या है जीआईएस

यह एक भू-विज्ञान सूचना प्रणाली है। यह संरचनात्मक डाटा बेस पर आधारित है। यह विश्व में भौगोलिक सूचनाओं के आधार पर जानकारी प्रदान करती है। संरचनात्मक डाटाबेस तैयार करने के लिए वीडियो, भौगोलिक फोटोग्राफ और जानकारी जरूरी है।

निगम को नुकसान

– मकानों का सही ढंग से नापजोख नहीं होने से कर दाताओं से संपत्तिकर
कम मिल रहा है।

– कच्चा या पक्का मकान, आवासीय या व्यावसायिक प्रयोजन की सही
जानकारी नहीं मिलने से संपत्तिकर तय नहीं हो पा रहा।

– सर्वे में छूट गए मकान मालिक संपत्तिकर, भू भाटक नहीं देंगे। इससे
राजस्व का नुकसान होगा।

– ऑनलाइन के बाद जमीन मालिक को भवन अनुज्ञा में दिक्कत होगी। बिना
अनुमति मकान बनाते हैं तो निगम को विकास शुल्क नहीं मिलेगा।

– संपत्तिकर दाताओं डाटा एंट्री नहीं होने से निगम को ठेका पद्धति से काम
लेना पड़ रहा है। उनके वेतन में हर साल 15-20 लाख रुपए अतिरिक्त
खर्च हो रहा है।

 

इसलिए पड़ी जरूरत

– चोरी छिपे मकान निर्माण पर रोक लगाना

– खाली जमीन और मकानों का डाटा बेस तैयार कर जोन और वार्ड के
अनुसार ऑनलाइन संपत्तिकर तय करना

– डाटा बेस के अनुसार ऑनलाइन भवन अनुज्ञा की अनुमति देना

– ई-गवर्नेंस स्कीम लागू करना

– पुरातात्विक कार्य और अपराध विज्ञान

– कौन से क्षेत्र में प्रदूषण कितना है। आसानी से समझा जा सकेगा और
वर्गीकृत भी किया जा सकता है।