छत्तीसगढ़: वनराज मुर्गियां पालन में लागत कम और मुनाफा ज्यादा: दो महीने में समूह की महिलाओं को 63 हजार रुपए का हुआ लाभ

गौठानों में किए जा रहे विभिन्न आजीविकामूलक कार्यों से आत्मनिर्भरता प्राप्त कर रही महिलाएं अपने परिवारों का संबल बनने के साथ ही समाज के लिए भी एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं। दुर्ग जिले के मतवारी गांव की महिलाओं ने वनराज प्रजाति की मुर्गियां का पालन शुरू किया। दो महिने के भीतर ही मुर्गियां तैयार हो गई और इन्हें विक्रय करने पर 63 हजार रूपए का लाभ इन ममहिलाओं को हुआ है। ग्राम मतवारी के गौठान में जिला प्रशासन ने मुर्गी शेड का निर्माण कराया। पशुधन विकास विभाग की बैकयार्ड पोल्ट्री योजना के तहत मिली सहायता से पहली बार महिलाओं ने वनराज प्रजाति की मुर्गियां पाली। लाभ से उत्साहित महिलाएं पुनः चूजों को खरीदकर इनका पालन कर रही है।  
         

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की महत्वाकांक्षी नरवा, गरुवा, घुरूवा, बाड़ी योजना के अंतर्गत गौठानों को स्वावलंबी बनाया जा रहा है। आराधना स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष बसंत बाई ने बताया कि हमें गौठान में मुर्गी शेड मिला है। उन्होंने बताया कि मुर्गियों के चूजे दो महीने के भीतर तैयार हो जाती है और अब तक बेचने पर 63 हजार रुपए की कमाई हो चुकी है। उन्होंने शासन से मिली मदद के बारे में बताते हुए कहा कि उन्हें चूजों के पालन सबंधी प्रशिक्षण दिया गया है। मुर्गी शेड के साथ ही पंखे और बिजली की सुविधा हमें शासन द्वारा उपलब्ध कराई गई है।  स्वसहायता समूह की महिलाओं ने बताया कि इस बार उन्होंने पुनः 300 चूजे खरीदे हैं और इनका पालन कर रही हैं। उम्मीद है वनराज फिर अच्छी कीमतों में बिकेंगे।

जिला पंचायत सीईओ ने बताया कि स्वसहायता समूहों को बैकयार्ड पोल्ट्री योजना के तहत सहायता दी गई है और मनरेगा के अंतर्गत शेड का निर्माण कराया गया है। पशुधन विकास विभाग के उपसंचालक ने बताया कि प्रत्येक ब्लाक में प्रमुख गौठानों में ऐसे मुर्गी पालन शेड बनाए जा रहे हैं, जिनके माध्यम से आजीविकामूलक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। पशुधन विकास विभाग के सहायक शल्यज्ञ डॉ. मिश्रा ने बताया कि वनराज प्रजाति की मुर्गियां की इम्युनिटी अच्छी होती है और इनका लालन-पालन भी कठिन नहीं है और इनकी अच्छी कीमत मिलती है।