खंडवा… लिव इन रिलेशनशिप पर पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह न तो पाप है और न ही अपराध, तो जाहिर है निचली अदालत कैसे इस पर कोई नाफरमानी कर सकती थी। लिहाजा जब लिव-इन का मामला आया, तो अजीब-ओ-गरीब फैसला कोर्ट ने सुना डाला। खंडवा की एक अदालत ने कहा कि अगर किसी शादीशुदा पुरुष की लिव-इन पार्टनर है, तो वह अपनी पत्नी और लिव-इन पार्टनर को बराबर से समय दे। मध्य प्रदेश के इस जिले की लोक अदालत के जज गंगा चरण दुबे ने ओमकारेश्वर के मानधाता क्षेत्र में रहने वाले बसंत नाम के बिजली विभाग के रिटायर्ड कर्मचारी के मामले में अजब फैसला सुनाया। बसंत के घर में तीन कमरे हैं, जिनमें एक में उनकी पत्नी, दूसरे में बच्चों और तीसरे कमरे में उनकी लिव इन पार्टनर रहती है। बीच का कमरा बाकी दोनों कमरों से जुड़ा हुआ है। रोज-रोज घर में कटाजुझ मचने लगी। ऐसा पिछले दो साल से चल रहा था। रोज रोज के झगड़ों से आजिज आकर बसंत की पत्नी ने कोर्ट में केस दाखिल कर दिया। पत्नी ने आरोप लगाया कि बसंत ज्यादातर समय लिव-इन पार्टनर के साथ गुजारते हैं। मामले की सुनवाई में जज ने दोनों पक्ष को सुना और पाया कि जब दोनों की पूरी सहमति है तो लिव-इन रिलेशनशिप में रखना गुनाह नहीं है। कहीं न कहीं पत्नी को भी घर में अपनी सौतन समान महिला को रखने में भी आपत्ति नहीं दिखी, लिहाजा कोर्ट ने बसंत को आदेश दिये कि वो अपनी पत्नी और लिव-इन पार्टनर को बराबर से समय दे। यानी महीने के 15 दिन वो अपनी घरवाली के साथ रहे और बाकी के 15 दिन बाहर वाली के साथ