अचानक टीवी खोला और एक-दो न्यूज चैनल देखने के बाद क्रिकेट देखने लगा। विजय हजारे ट्रॉफी में दिल्ली और झारखंड का मैच चल रहा था। शायद वहां मैं रुकता नहीं, लेकिन धोनी बैटिंग कर रहे थे। सो, देखता चला गया। मैच एकतरफा दिल्ली की ओर जा रहा था, लेकिन धोनी उसे खींच रहे थे। वह अकेले कब तक खींचते? लेकिन दिल्ली उन्हें आउट नहीं कर पाई। और मैं भी आंखें हटा नहीं पाया। क्या धोनी का करिश्मा अभी बाकी है? क्या अब भी धोनी हमारी क्रिकेट के बड़े ब्रैंड हैं?
अभी एक हफ्ते पहले मुंबई में आइपीएल की दो नई टीमों के लिए खिलाड़ी चुने जाने थे। और मैं लगातार धोनी के बारे में सोच रहा था। फिलहाल वह टेस्ट क्रिकेट को ‘राम राम’ कह चुके हैं। वनडे टीम के वह कप्तान हैं, लेकिन उसके हालचाल बहुत अच्छे नहीं चल रहे। जिस दक्षिण अफ्रीकी टीम को टेस्ट में हमने आराम से हरा दिया, उसी टीम से धोनी की टीम वनडे हार गई। उस सीरीज में उनकी विकेटकीपिंग में वह बात नजर नहीं आई। और बैटिंग से ‘फिनिश’ गायब होती दिखी। लेकिन आईपीएल की नीलामी में साबित हुआ कि उनका करिश्मा अभी जारी है। उनकी हर चीज पर ठेस लगने लगी है, फिर भी ब्रैंड धोनी की चमक बरकरार है। अब धोनी पुणे के लिए खेलेंगे। अगले आइपीएल सीजन में चेन्नई सुपर किंग नहीं है। लेकिन उन्हें उतने ही पैसे मिलेंगे, जो चेन्नई में मिल रहे थे। यानी 12.50करोड़। दोनों टीमें उन्हें लेने को तैयार थीं। अब पहला मौका पुणे को मिलना था, सो, धोनी उनके हो गए। मजबूरी में दूसरी टीम को सुरेश रैना पर संतोष करना पड़ा।
महेंद्र सिंह धोनी यानी एमएसडी। आइपीएल की शुरुआत से ही वह चेन्नई सुपर किंग के लिए खेल रहे थे। श्रीनिवासन से उनकी नजदीकी इस कदर थी कि उन्हें मजाक या खुंदक में एमएसडी यानी ‘मद्रासी श्रीनिवासन का धोनी’ कहा जाता था। उनके घर रांची में लोग कहते थे कि धोनी को तो श्रीनिवासन ने गोद ले लिया है। एक मायने में चेन्नई, श्रीनिवासन और धोनी एक दूसरे के पर्याय हो गए थे। इसीलिए किसी दूसरी टीम में उन्हें देखना अजीब लग रहा है। कम से कम आइपीएल के लिए तो यह सच है। धोनी और श्रीनिवासन के रिश्ते जगजाहिर हैं। श्रीनिवासन जब बीसीसीआइ के पर्याय बन गए थे, तब धोनी का परचम भी लहरा रहा था। श्रीनिवासन ने धोनी को सब कुछ दिया। मजे-मजे में भारतीय टीम की कप्तानी इसीलिए धोनी कर सके। श्रीनिवासन की वजह से धोनी कप्तान ही नहीं मुख्य चयनकर्ता की भूमिका भी निभाने लगे थे। उनका कुछ भी कहना हुक्म जैसा हो जाता था। धोनी ने भारतीय टीम को एक खास ऊंचाई तक पहुंचाया। वनडे और टी 20 में तो वल्र्ड चैंपियन तक बनवाया। टेस्ट में भी वह सबसे कामयाब कप्तान जरूर हैं। लेकिन उसके साथ कई किन्तु परंतु जुडे़ हुए हैं।
अपने देश में तो टेस्ट उन्होंने जीते, लेकिन बाहर उनकी टीम कुछ खास नहीं कर पाई। कई सीरीज में तो बेहद खराब भी खेली। एक दौर तो वह भी आया था, जब उनकी टीम आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में एक भी टेस्ट बचा नहीं पाई थी। वे टेस्ट हारे ही नहीं थे, बचाते हुए भी नजर नहीं आए। बाहर की दो सीरीज में शून्य रहने के बावजूद उनकी कप्तानी पर कोई आंच नहीं आई थी। अक्सर एक दो सीरीज हारने के बाद कप्तानी चली जाती है। उनकी कप्तानी तो इंग्लैंड से अपने घर में हारने के बाद भी नहीं गई थी। अपनी क्रिकेट में यह मिसाल ही थी। ऐसा परम सौभाग्य शायद ही किसी भारतीय कप्तान को मिला हो। क्या रुतबा था धोनी का? श्रीनिवासन उनके खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे। बाहर और अंदर सीरीज हार जाने के बाद चयन समिति ने उन्हें कप्तानी से हटाने का फैसला कर लिया था। लेकिन उसे श्रीनिवासन ने पलट दिया। उनके वीटो से ही धोनी की कप्तानी बच सकी। अब कप्तान तो नहीं हटे, लेकिन चयनकर्ता को जरूर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
र्मोंहदर अमरनाथ उसमें सबसे ज्यादा मुखर थे। श्रीनिवासन ने उन्हें बाहर कर ही दम लिया। जब मोहिंदर अमरनाथ को मुख्य चयनकर्ता होना था, तब उन्हें चयन समिति छोड़नी पड़ी। अपने धोनी के खिलाफ आवाज उठाने वाले को श्रीनिवासन कैसे बर्दाश्त कर सकते थे? वह भी एक दौर था। आज अलग दौर है। यह दौर पिछले साल ही शुरू हो गया था। श्रीनिवासन जब कमजोर पड़ने लगे, तो धोनी भी हिलने लग गए। पिछले आस्ट्रेलियाई दौरे में अचानक आखिरी टेस्ट से पहले उन्होंने टेस्ट क्रिकेट छोड़ने का ऐलान कर दिया। उनके घायल होने की वजह से विराट कोहली ने पहले टेस्ट में कप्तानी की थी। चर्चा तो तब भी थी कि बोर्ड अब उन्हें कप्तान के तौर पर नहीं चाहता। वक्त को बदलता देख कर धोनी टेस्ट क्रिकेट से अलग हो गए। श्रीनिवासन और कमजोर हुए। क्रिकेट सुप्रीमो को सुप्रीम कोर्ट ने किनारे लगा दिया। शायद उसके अलावा श्रीनिवासन को हटाना मुमकिन नहीं था। बॉस दरकिनार हुए, तो धोनी पर भी ठेस लगने लगी। अपने करीबी लोगों से उन्होंने कहा था कि वह अगले वल्र्ड कप यानी 2019 तक खेलना चाहते हैं। लेकिन अभी तो नहीं लगता कि वह टी20 वल्र्ड कप से आगे खेल पाएंगे। अब नया बोर्ड उनसे छुटकारा पाना चाहता है। विराट को तीनों फॉर्मेट का कप्तान बनाए जाने की मांग उठने लगी है। बोर्ड भी विराट पर मेहरबान है। ऐसे में धोनी कब तक टिक पाएंगे? यह कहना मुश्किल है। अभी तो धोनी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में टिके रहने की लड़ाई लड़ रहे हैं। वनडे और टी 20 की कप्तानी उनके पास है। वह ज्यादा दिन टिकनेवाली नहीं है। बोर्ड उनके साथ नहीं है। एक क्रिकेटर के तौर पर उनका ढलान साफ-साफ देखा जा सकता है।
हाल ही में हुई दक्षिण अफ्रीकी सीरीज में वह खेलते हुए नहीं, संघर्ष करते हुए नजर आए। कप्तानी को लेकर तो तमाम सवाल उठे ही, विकेटकीपिंग और बैटिंग तक में वह सहज नहीं दिखे। उनके पूरे ‘रिफ्लेक्सेज’ में एक जड़ता नजर आई थी। वह बुनियादी तौर पर ‘रिफ्लेक्स प्लेयर’ ही हैं। और वही उनका साथ छोड़ता नजर आया था। लेकिन वह कम जिद्दी भी नहीं हैं। शायद उसी जिद की वजह से उन्होंने घरेलू क्रिकेट में खेलना तय किया। वह भी किसी और की कप्तानी में। और दिल्ली वाले मैच में उनकी बैटिंग फॉर्म वापस आती दिखाई दी। आस्ट्रेलिया में होने वाली वनडे सीरीज और वल्र्ड कप टी 20 के लिए यह अच्छी खबर भी है। यह तय है कि वह अपने आखिरी दौर में चल रहे हैं। मार्च के बाद नहीं लगता कि धोनी वनडे और टी 20 भी खेल पाएंगे। हालांकि अभी वह एक दो साल खेलना चाहेंगे। अकेले आइपीएल से बात नहीं बनती। उसके साथ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में बने रहना जरूरी होता है।