अध्यात्म डेस्क. कार्तिक मास में भगवान सूर्य की पूजा की परंपरा है. शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि को छठ का महापर्व मनाया जाता है. इस पूजा की शुरुआत मुख्य रूप से बिहार और झारखण्ड से हुई जो अब पूरे देश में फैल चुकी है. कार्तिक मास में सूर्य अपनी नीच राशि में होता है. इसलिए सूर्य देव की विशेष उपासना की जाती है, ताकि स्वास्थ्य की समस्याएं परेशान न करें. षष्ठी तिथि का संबंध संतान की आयु से होता है और सूर्य भी ज्योतिष में संतान से संबंध रखता है. इसलिए सूर्य देव की षष्ठी पूजा से संतान प्राप्ति और और उसकी आयु रक्षा दोनों हो जाती है. इस बार छठ पर्व 18 नवंबर से 21 नवंबर तक चलेगा.null
छठ की पूजन विधि क्या है.?
कुल मिलाकर यह पर्व चार दिनों तक चलता है. इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होती है और सप्तमी को अरुण वेला में इस व्रत का समापन होता है. कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को “नहाए-खाए” के साथ इस व्रत की शुरुआत होती है. इस दिन से स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाता है. दूसरे दिन को “लोहंडा-खरना” कहा जाता है. इस दिन दिन भर उपवास रखकर शाम को खीर का सेवन किया जाता है. खीर गन्ने के रस की बनी होती है.
तीसरे दिन दिन भर उपवास रखकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. अर्घ्य दूध और जल से दिया जाता है. चौथे दिन बिल्कुल उगते हुए सूर्य को अंतिम अर्घ्य दिया जाता है. इसके बाद कच्चे दूध और प्रसाद को खाकर व्रत का समापन किया जाता है.
छठ पूजा या व्रत के लाभ क्या हैं?
जिन लोगों को संतान न हो रही हो या संतान होकर बार बार समाप्त हो जाती हो ऐसे लोगों को इस व्रत से अदभुत लाभ होता है. अगर संतान पक्ष से कष्ट हो तो भी ये व्रत लाभदायक होता है. अगर कुष्ठ रोग या पाचन तंत्र की गंभीर समस्या हो तो भी इस व्रत को रखना शुभ होता है. जिन लोगों की कुंडली में सूर्य की स्थिति खराब हो अथवा राज्य पक्ष से समस्या हो ऐसे लोगों को भी इस व्रत को जरूर रखना चाहिए.