भोपाल। इस समय पूरी दुनिया में सबसे बड़ा सवाल यही है कि कोरोना की वैक्सीन कब आयेगी। जब ये सवाल हमने भोपाल में एम्स के निदेशक और कोरोना की वैक्सीन के देशव्यापी शोध से जुड़े प्रोफेसर सरमन सिंह से पूछा तो उनका जबाव था कि दुनिया में सौ से ज्यादा लेब में वैक्सीन पर काम चल रहा है। जिनमें तीस से ज्यादा में काम बहुत आगे बढ़ गया है।
मगर सबसे बेहतर काम आक्सफोर्ड यूनिवरसिटी की लेब का है जिसके बारे में उम्मीद कर सकते हैं कि वो जनवरी तक आ जाना चाहिये। आक्सफोर्ड यूनिवरसिटी की वैक्सीन ही हमारे देश में सीरम इंस्टीटयूट की मदद से मिलेगी। ये खुशी की बात है मगर वैक्सीन बनाने में इतनी देर क्यों हो रही है इसका जबाव जब प्रोफेसर साहब ने दिया तो हमारे भी होश उड़ गये।
प्रोफेसर सरमन सिंह ने कहा कि कोरोना का वायरस तेजी से अपना रूप बदल रहा है जिसे वैज्ञानिक भाषा में म्यूटेशन कहते हैं। ये बदलाव या रूपांतरण जेनेटिक तरीके से होता है। प्रोफेसर सिंह ने दावा किया कि उन्होनें करीब 1325 सेंपल कोरोना के देखें हैं जिनमें से वो 88 से ज्यादा में बदला हुआ मिला। अब ये शोध का विषय है कि वायरस अपने को बार-बार बदल क्यों रहा है।
क्या ये वायरस वैक्सीन से बचने के लिये अपना रूप बदल रहा है या फिर ये संक्रमण तेजी से फैलाने के लिये ऐसा कर रहा है। या फिर तेजी से एक देश से दूसरे देश में वातावरण के अनुसार अपने को ढालने के लिये रूपांतरित हो रहा है। वायरस का ये बर्ताव वैक्सीन बनाने वाले वैज्ञानिकों के लिये मुश्किल का सबब बन रहा है। अब वैक्सीन ऐसी हो जो वायरस के सारे रूपों पर प्रभाव डाले, इसलिये वैक्सीन के बनाने में देरी हो रहीं हैं और जब तक वैक्सीन नहीं आयेगी तब तक सावधानी और सतर्कता ही बचाव है।
आम जनता भीड़-भाड़ से बचे, अंजान जगह और अंजान आदमी के संपर्क में आते ही मास्क पहने, हाथों को सेनेटाइज रखें। इन सारी सावधानियों के चलते ही आम लोग इस वायरस से बच पायेंगे। प्रो सरमन सिंह ने बताया कि बहुत सारे शोध इस वायरस पर चल रहें हैं जिससे इसके बर्ताव पर नजर रखी जा रहीं हैं।
मगर ये वाइरस पिछले सारे वायरस से अधिक घातक और संक्रामक साबित हो रहा है।