(पत्रकार अशोक शुक्ला)
सतना: बीते दिन18 सितम्बर को ओवीसी के महाकुंभ महा सम्मेलन मे जोर देकर एक ही बात को बार-बार दोहराया गया कि उनका यानि कि ओवीसी समाज लोगो को अपने साथ जोड़ने का काम करता है, वह कभी भी सामाजिक ताने बाने को तोड़ने का काम नही करता है, अब ऐसे मे यह सवाल उठना लाजिमी है,, कि यदि ओबीसी के बड़े नेताओं का यह दावा सच्चा है,, तब इसे ओवीसी का महाकुंभ क्यों कहा गया ? इसके अलावा इसे सर्वसमाज के सम्मेलन के तौर पर आयोजित करने की जरुरत क्यों महसूस नही की गई ? वास्तव मे राजनीति का यही वह दोगला चरित्र है, जिसे अमूमन लोग समझ नही पाते है, और आसानी से राजनैतिक कारोबारियों के बहकावे मे आ जाते है।
बहरहाल जातियों मे बंटी देश की राजनीति रोज ही गिरगिट की तरह रंग बदल रही है,, खैर जाति जोड़ो और जाति तोड़ो की शुरुआत इस मुल्क मे तब हुई जब एक खास तबके के लोगों को जोड़कर कांशी राम जी ने बहुजन समाज पार्टी बनाई थी,, बाद मे यही तबका मायावती जी के साथ भी जुड़ा रहा,, 1998 के दशक मे भाजपा के पितृ पुरुष कुशाभाऊ ठाकरे जी ने ओवीसी को बीजेपी से जोड़ दिया,, बाद मे मंडल आयोग की सिफारिशें लागू किये जाने से नाराज सवर्ण समाज भी भाजपा के पाले मे आ गया था,, नतीजतन जहां बीजेपी मजबूत हुई वहीं कांग्रेस कमजोर होती चली गई जाहिर है, कि सवर्णो के ढुलमुल रवैये और दलितो के मायावती प्रेम की वजह से भाजपा के लिये यह जरुरी हो गया था, कि वह ओवीसी को साधने के लिये पूरा जोर लगाये लिहाजा उसने पहले ओवीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देकर महिमा मंडित करने का काम किया और अब सरकारी खर्चे पर इस समाज के लिये बड़े-बड़े आयोजन किये जा रहे है, सागर के बाद बीते दिन सतना मे भी इस तरह का आयोजन हुआ है,, आगे जबलपुर और ग्वालियर मे इस तरह के सम्मेलन आयोजित किये जाने की योजना है।
जहां तक ओवीसी समाज की राजनैतिक उपयोगिता का प्रश्न है, तो निसंदेह मध्यप्रदेश मे यह समाज बड़े उलट फेर की ताकत रखता है, लेकिन जिस तरह से अब तक इस समाज के अनेक तबकों मे सिर्फ एक ही तबके को राजनैतिक महात्वाकांक्षा पूरी करने का मौका दिया गया है,, उससे कुशवाहा, रजक, बारी, वर्मन और जायसवालों के कुनबे अंदर ही अंदर सुलग रहें अतः अब बीजेपी पटेल और लोधी वोट बैंक के अलावा ओवीसी के दूसरे बड़े वोट वैंको को भी साधने की कोशिश करेगी संभवतः इसी लिये इन दिनो शिवराज ओवीसी के महाकुंभ मे बढचढकर हिस्सा भी ले रहे है।
उधर राजनैतिक पंडितो का मानना है, कि ओ बी सी की मुख्य पन्द्रह जातियों मे से पांच ऐसी हैं जो अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा के पूरी ना होने से बीजेपी से खासी नाराज चल रही है, जिसके चलते बीजेपी के मिशन 2018 खटाई मे पड़ सकता है,, फिलहाल एक ओर जहां बीजेपी ओवीसी की नाराजगी को दूर करने के लिये छटपटा रही है तो वहीं बीजेपी के लोधी व कुर्मवंशी नेता अपनी राजनैतिक पूछ परख के कम हो जाने के खतरे को भांपकर दूसरे दलों मे अपनी संभावनायें तलाश रहे है ।