इस फिल्म के टाइटल में शुरू से ही कन्फ्यूजन रहा है। ‘क्या कूल हैं हम’… पता नहीं चलता कि ये बता रहे हैं या पूछ रहे हैं? अगर ये पूछ रहे हैं तो जवाब है नहीं और अगर बता रहे हैं तो भी जवाब है नहीं, क्योंकि केकेके सीरिज की इस तिसरी किस्त को तो देख कर ऐसा ही लगता है।
इस फिल्म की कहानी कागज पर तो अच्छी लग सकती है, लेकिन परदे पर नहीं। इसकी वजह है फूहड़पन, द्विअर्थी संवादों की भरमार और अश्लीलता की हद, जिस पर सेंसर द्वारा 150 कट्स के बाद भी लगाम नहीं लगाई जा सकी।
ये कहानी है कन्हैया (तुषार कपूर) और उसके जिगरी दोस्त रॉकी (आफताब शिवदासानी) की। रॉकी एक ऊल-जलूल हरकत के चलते एक दिन कन्हैया की नानी स्वर्ग सिधार जाती है, जिसके चलते उसका पिता (शक्ति कपूर) उसे घर से निकाल देता है। घर से निकाले जाने के बाद दोनों किसी तरह से पहुंच जाते हैं थाईलैंड, जहां उनकी मुलाकात होती है उनके एक पुराने दोस्त मिकी (कृष्णा अभिषेक) से।
मिकी, डर्टी पिक्चर्स यानी हॉट फिल्में बनाता है। इंटरनेट और डीवीडी पर बिकने वाली उसकी इन फिल्मों में दो लड़कियां (क्लाडिया और गिजेल) तथा दो लड़के (एंडी और डैनी सुरा) काम करते हैं। मिकी की इन फिल्मों को आधार है हिट-सुपरहिट बॉलीवुड फिल्में, जिनके छद्म नाम रख कर वह अश्लील फिल्में बनाता है। वह कन्हैया और रॉकी को भी नि फिल्मों में काम करने के लिए राजी कर लेता है।
एक दिन कन्हैया की नजर शालू (मंदना करीमी) पर पड़ती है, जिसे देखते ही उसे उससे प्यार हो जाता है। दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती हैं और बात शादी तक पहुंच जाती है। शालू शादी के लिए राजी हो जाती है और एक दिन अपने पिता (दर्शन जरीवाला) के साथ कन्हैया के घर आना चाहती है। वो उसके परिवार से मिलना चाहती है। ये सुनते ही कन्हैया परेशान हो जाता है, लेकिन मिकी उसे आश्वासन देता है कि वह सब संभाल लेगा।
मिकी, रॉकी को कन्हैया का बाप बनने को कहता है। लेकिन रॉकी मना कर देता है और वहां से भाग जाता है। ऐसे में मिकी खुद कन्हैया का बाप बन जाता है। वह अपनी फिल्मों की हीरोइनों को उसकी बहनें बना देता है और हीरोज को उसका जीजा। शालू अपने पिता के साथ जब कन्हैया के घर आती है। वह सब लोगों से मिल ही रही होती है कि रॉकी, कन्हैया का पिता बन कर आ जाता है। सारी बात उलझ जाती है। कन्हैया इसे सुलझा पाए इससे पहले मुंबई से उसका असली पिता भी आ जाता है। एक ही घर में कन्हैया के तीन-तीन पिता हो जाते हैं। ये सारी मुश्किलें सुलझाते सुलझाते बेचारे कन्हैया का तो हार्टफेल ही हो जाता है।
अपनी पिछली दो किस्तों के मुकाबले यह किस्त काफी कमजोर दिखती है और उसकी सबसे बड़ी वजह है इसकी कहानी। हालांकि पिछली दो किस्तों की कहानियों में भी कोई वाऊ फैक्टर नहीं था, लेकिन वो हंसाती और गुदगुदाती रहती थीं। ये बात इस फिल्म में भी है, लेकिन लगता है कि लेखक का सारा ध्यान केवल एक पंक्ति वाले चुटकुलों, डबल मिनिंग जोक्स पर ही रहा है। रही सही कसर हीरोइनों ने बेहद कम कपड़े पहन कर पूरी कर दी है।
इंटरवल से पहले की फिल्म केवल बॉलीवुड की हिट फिल्मों का मजाक बनाने में गुजार दी गयी है। बाद में भी ये सब ही जारी रहता है। ये सारी बातें जब सीमा से परे जाने लगती हैं तो बोर करती हैं। ऐसा लगता है कि अगर इन फिल्मों पर कॉमेडी करने के अलावा इनके पास कोई काम न होता तो ये दो घंटे की फिल्म एक घंटे में ही खत्म हो जाती।
हालांकि फिल्मों पर स्पूफ कोई नहीं बात नहीं है, लेकिन यहां रचनात्मकता का घोर अभाव दिखता है, क्योंकि निर्देशक ए सर्टिफिकेट की आड़ में सिर्फ और सिर्फ सेमी न्यूड सीन्स और उत्तेजकता प्रदान करते दिखते हैं। कृष्णा अभिषेक की मौजूदगी कॉमेडी नाईट्स या कॉमेेडी सर्कस से ज्यादा नहीं है। तुषार का लल्लूपन और रॉकी का जिगेलो स्टाइल थोड़ी देर के बाद उकताहट पैदा करता है। जो लोग इस तरह की फिल्मों को पसंद करते हैं उनके लिए ये सब कूल हो सकता है, वर्ना तो यहां हॉट के अलावा कुछ नहीं है। परिवार के साथ तो यह फिल्म भूलकर भी न जाएं। प्रेमिका संग जाने का जोखिम भी आपके ही सिर है। हां, छड़े दोस्तों के साथ आप एंन्जाय कर सकते हैं।