फोर्ट कोच्चि ..Fort Kochi in Kerala

Fort Kochi in Kerala
Fort Kochi in Kerala

फोर्ट कोच्चि के ऐतिहासिक शहर को यदि अच्छी तरह देखना हो तो पैदल चलना सबसे अच्छा विकल्प है। विश्राम के बाद सूती कपड़े, मुलायम जूते और और हां, स्ट्रॉ हैट पहन कर बाहर निकलें। इतिहास में पगे इस द्वीप के हर हिस्से में आपके लिए कुछ न कुछ आकर्षक जरूर मौजूद मिलेगा। यहां की दुनिया अपने आप में अनूठी है जिसमें बीते युग की छवि स्पष्ट नजर आती है और अपने अतीत पर इसे अब भी गर्व है। यदि आप इतिहास के गंध को पहचान सकते हैं तो कोई भी बाधा आपको इन सड़कों पर निकलने से नहीं रोक सकतीं।    

के. जे. मार्शल स्ट्रीट से सीधे निकलकर और बायीं ओर मुड़ने पर आपको फोर्ट इमेनुएल की झलक मिलेगी। यह किला कभी पुर्तगालियों का हुआ करता था और यह कोचीन के महाराजा और पुर्तगाली के शासक (जिसके नाम पर इस किले का नाम पड़ा) के बीच गठबंधन का प्रतीक है। इस किले का निर्माण 1503 में करवाया गया था और 1538 में इसका सुदृढ़ीकरण हुअ। थोड़ा और आगे चलकर आप डच कब्रगाह पहुंच जाते हैं। 1724 में प्रतिष्ठापित और दक्षिण भारत के चर्च के देखरेख के तहत आने वाले इस कब्रिस्तान के कब्रों के पत्थर यहां आने वाले पर्यटकों को उन यूरोपीय लोगों की याद दिलाते हैं जिन्होंने अपने देशों के औपनिवेशिक प्रसार के लिए अपना घर-बार छोड़ा था।   

अगला दर्शनीय स्थल है ठाकुर हाउस जो औपनिवेशिक युग के कंक्रीट निर्मित नमूने के रूप में खड़ा है। यह भवन सादगी पूर्ण ढंग से सुंदर है। पहले इसे कुनल या हिल बंगलो के नाम से जाना जाता था। ब्रिटिश शासन के दौरान यह यह नेशनल बैंक ऑफ इंडिया के प्रबंधकों का आवास हुआ करता था। अब यह चाय के प्रसिद्ध व्यापारिक फर्म ठाकुर एंड कम्पनी की मिल्कियत है।   

आगे बढ़िए और आपको एक अन्य औपनिवेशिक संरचना देखने को मिलेगी- डेविड हॉल। इसका निर्माण 1695 के आस-पास डच ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा करवाया गया था। इस हॉल का मूल संबंध प्रसिद्ध डच कमांडर हेनरिक एड्रियन वान रीड ड्रैकेस्टन से था, जिनकी ख्याति केरल की प्राकृतिक वनस्पतियों पर लिखी गई उनकी किताब- होर्टस मलाबैरिकस को लेकर अधिक फैली। यद्यपि, डेविड हॉल का नाम इसके परवर्ती मालिक डेविड कोडर के नाम पर पड़ा।   

चार एकड़ में फैले परेड ग्राउण्ड को पार करने के बाद, जहां कभी पुर्तगाली, डच और ब्रिटिश मिलिट्री परेड आयोजित किया करते थे, आप सेंट फ्रांसिस चर्च पहुंचेंगे। यह चर्च भारत में सबसे पुराना यूरोपियन चर्च है। 1503 में पुर्गालियों द्वारा बनाए जाने के बाद से यह कई चरणों से होकर गुजरा है। यह वही चर्च है जहां वास्को डि गामा को दफनाया गया था। इस कब्र के पत्थर को आज भी देखा जा सकता है।   

चर्च रोड पैदल भ्रमण करने के लिए बहुत ही उपयुक्त है जहां टहलते हुए आप अरब सागर से आने ठंडी हवा को अपने शरीर पर महसूस कर सकते हैं। समुन्दर के थोड़ा और करीब जाएं। आप कोचीन क्लब पहुंचेंगे। यहां एक समृद्ध पुस्तकालय और खेल की ट्रॉफियों का भव्य संग्रह है। यह क्लब एक सुन्दर दृश्यों वाले पार्क में स्थित है। इस क्लब का माहौल आज भी ब्रिटिश युग की याद दिलाता है। 

चर्च रोड पर वापस आकर बायीं ओर आपको एक अन्य शानदार दुर्ग- बैस्टियन बंगलो दिख पड़ेगा। इंडो-यूरोपियन स्टाइल की यह अद्भुत संरचना सन 1667 में बनकर तैयार हुई थी और इसका नाम पुराने डच किले के स्ट्रॉम्बर्ग बैस्टियन के स्थान के नाम पर पड़ा जहां यह अवस्थित है। अब यह उप समाहर्ता का आवास है।

पास में ही वास्को डि गामा स्क्वॉयर है। थोड़ी देर सुस्ताने के लिए उपयुक्त यह एक संकरा सागर तट (प्रोमिनेड) है। यहां आपको स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों और नारियल पानी के स्टॉल मिलेंगे। थोड़ी देर इन सबका आनंद उठाइए और उठते-झुकते चाइनीज फिशिंग नेट की ओर नजर डालिए। ये नेट्स कुबलाय खान के दरबार के व्यापारियों द्वारा 1350 और 1450 के बीच लगवाए गए थे।

तरोताजा होकर अब आप पीयर्स लेस्ली बंगलो की ओर जा सकते हैं। यह बंगलो एक खूबसूरत किला है जो कभी एक जमाने में पीयर्स लेस्ली एंड कंपनी नामक कॉफी मर्चेंट का दफ्तर हुआ करता था। इस भवन पर पुर्तगाली, डच और स्थानीय प्रभाव दिखाई पड़ता है। जल के सम्मुख पड़ने वाला इसका बरामदा इसकी भव्यता में चार चांद लगा देता है। दायीं ओर मुड़कर आप पुराने हार्बर हाउस पर आ पहुंचते हैं जिसका निर्माण 1808 में हुआ था और यह प्रसिद्ध चाय व्यापारी कैरिएट मोरन एंड कम्पनी की मिल्कियत था। पास में ही शानदार कोडर हाउस है जो कोचीन इलेक्ट्रिक कम्पनी के मालिक सैमुअल एस. कोडर द्वारा 1808 में बनवाया गया था। इस भवन की स्थापत्य कला औपनिवेशिक से इंडो-यूरोपियन स्थापत्य की ओर संक्रमण को दर्शाता है। 

पुनः दायीं ओर मुड़ें और आप प्रिंसेस स्ट्रीट जा पहुंचेंगे। यहां की दुकानों से आप ताजे फूल खरीद सकते हैं। इस इलाके की प्राचीनतम सड़कों में से एक इस सड़क के दोनों ओर यूरोपियन शैली के भवन बने हैं। यहीं लोफर्स कॉर्नर अवस्थित है। यह कोच्चि के मौजमस्ती एवं क्रीड़ा पसंद लोगों के लिए एक पारंपरिक स्थल रहा है।  

लोफर्स कॉर्नर से उत्तर की ओर बढ़ने पर आप सांता क्रूज बैसिलिका पर आ पहुंचेंगे जो पुर्तगालियों द्वारा निर्मित एक ऐतिहासिक चर्च है। इसे 1558 में पोप पॉल IV द्वारा दरजा बढ़ाकर कैथेड्रल घोषित कर दिया गया। 1984 में पोप जॉन पॉल II ने इसे बैसिलिका का दरजा दे दिया। बर्गर स्ट्रीट और डेल्टा स्टडी पर एक नजर डालने के बाद आप फिर से प्रिंसेस स्ट्रीट और उसके बाद रोज स्ट्रीट पहुंचेंगे। डेल्टा स्टडी एक हेरिटेज बंगलो है जिसका निर्माण 1808 में हुआ था। यह अब एक हाई स्कूल के रूप में बदल गया है। रोज स्ट्रीट पर वास्को हाउस स्थित है। माना जाता है यह वास्को डि गामा का आवास था। यह पारंपरिक और विशुद्ध यूरोपियन भवन कोच्चि के सबसे पुराने पुर्तगाली भवनों में से एक है।   

बायीं ओर मुड़ने पर आप रिड्सडेल रोड पर आ पहुंचते हैं जहां आपको VOC गेट दिखाई पड़ता है जो परेड ग्राउंड के सम्मुख है। इस गेट का निर्माण 1740 में हुआ था और इसका यह नाम इसपर अंकित डच ईस्ट इंडिया कंपनी के मोनोग्राम (VOC) के कारण पड़ा। इसके पास ही युनाइटेड क्लब है जो कभी कोच्चि के अंग्रेजों के चार एलीट क्लबों में से एक था। अब यह पास में स्थित सेंट फ्रांसिस प्राइमरी स्कूल की कक्षाएं चलती हैं।

अब यहां से सीधे चलिए तो आप सड़क के अंतिम सिरे पर पहुंच जाएंगे और वहां आपको बिशप हाउस मिलेगा जिसका निर्माण 1506 में हुआ था। कभी यह पुर्तगाली गवर्नर का आवास हुआ करता था। यह परेड ग्राउंड के पास एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित है। भवन का सम्मुख भाग विशाल गोथिक मेहराबों से युक्त है और यह भवन डायोसीज ऑफ कोचीन के 27वें बिशप डॉम जोस गोम्स फेरेरिया के अधीन था जिनका अधिकार क्षेत्र भारत के अतिरिक्त बर्मा, मलाया और सिलोन तक था।

हां, अब समय है भ्रमण के समापन का। गुजरे जमाने के अहसास के साथ जो अब भी आपके जेहन में बना होगा, सम्मोहक दृश्यों की झलकियां आपके आंखों में होंगी और  आपके जुबान पर अब भी देसी खानों का जायका बसा होगा, क्या ऐसा नहीं लगता कि आप इस भ्रमण पर दुबारा आना  चाहेंगे!