हैरान करने वाली है ये दास्तान..भारत का एक ऐसा शहीद सैनिक, जो आज भी सरहद पर करता है ड्यूटी

फ़टाफ़ट डेस्क. किसी भी देश के सैनिक अपनी जान की परवाह किए बिना सीमा पर तैनात होकर देश के सरहद की रक्षा करते हैं. ताकि हम सुकुन के साथ रह सकें और बिना किसी डर के अपना जीवन व्यतीत कर सकें. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कोई सैनिक शहीद होने के बाद भी अपने देश की रक्षा के लिए सीमा पर तैनात हो और पूरी कर्तव्य निष्ठा से अपनी ड्यूटी निभा रहा हो. ये बात सुनकर अटपटा जरूर लग रहा होगा. लेकिन आज हम आपको भारतीय सेना के एक ऐसे साहसी सैनिक की दास्तान बताएँगे. जो हकीकत होकर भी अविश्वनीय है.

सिक्किम से सटी भारत-चीन सीमा पर एक ऐसे शहीद वीर जवान की दास्तान जिसने अपने जीवन में पूरी निष्ठा और कर्तव्य के साथ देश की सुरक्षा की लेकिन मौत के बाद भी. आज उसकी आत्मा सरहद की सुरक्षा बड़े ही मुस्तैदी से कर रही है. हैरान करने वाली बात तो यह है कि इसके लिए उसे सैलरी भी मिलती है और उसका प्रमोशन भी होता है और तो और इस शहीद सैनिक की याद में एक मंदिर भी बनाया गया है जो कि लाखों लोगों की आस्था का केन्द्र बना हुआ है. इसकी बात की पुष्टि भारतीय सेना के कई जवान और चीन के सेना ने की है.

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वैसे तो भारतीय पुलिस या फिर सेना जैसे सतर्क और बेहद संजीदा विभागों में अंधविश्वास नाम की कोई जगह नहीं होती, लेकिन यह वाकई हैरान कर देने वाली कहानी है भारतीय सेना के फौजी बाबा हरभजन सिंह की. जिसपे भारतीय सेना का विश्वास टिका हुआ है और यह कहानी हकीकत होकर भी अविश्वनीय है. बाबा हरभजन सिंह का जन्म 30 अगस्त 1946 में पंजाब के सदराना गांव में हुआ था जो कि अब पाकिस्तान में है. बाबा हरभजन सिंह ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव के ही एक स्कूल से प्राप्त की थी. और मार्च 1955 में उन्होंने ‘डी.ए.वी. हाई स्कूल’, पट्टी से मैट्रिक पास किया था.

हरभजन सिंह 9 फरवरी 1966 को भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट में सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे. इसके बाद 1968 में वो 23वें पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम में तैनात थे. हरभजन सिंह ने भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी अपनी यूनिट के लिए कई महत्वपूर्ण योगदान दिया था. बताया जाता कि 4 अक्टूबर 1968 को जब सैनिक हरभजन सिंह खच्चरों का काफिला लेकर जा रहे थे. उसी दौरान उनका पूर्वी सिक्किम के नाथू ला पास के पास पांव फिसल गया और गहरी खाई में गिरने से उनकी मौत हो गई. हम आपको बता दें कि खाड़ी के पानी का बहाव इतना तेज था कि वह उनके शरीर को बहाकर दूर ले गया.

वहीं जब कुछ दिनों तक बाबा हरभजन सिंह अपने कैंप पर वापस नहीं लौटे तो भारतीय सेना ने बाबा हरभजन सिंह को भगौड़ा घोषित कर दिया. ऐसा माना जाता है कि, वही वो दिन था जिस दिन बाबा हरभजन सिंह की आत्मा ने भारतीय सेना में अपनी दस्तक दी, उस रात बाबा हरभजन सिंह की आत्मा अपने साथी सैनिक प्रीतम सिंह के सपने में आई और अपने साथ हुई पूरी घटना की व् अपने मृत शरीर के स्थान की भी जानकारी उस सैनिक को दी. वहीं जब अगले दिन उस सैनिक ने अपने साथी सैनिकों को बाबा हरभजन सिंह की आत्मा के बारे में बताया तो उसमें में कुछ सैनिकों ने यह बात सिरे से नकार दी. जबकि कुछ सैनिकों ने उस सैनिक की बात पर भरोसा करते हुए उस जगह पर जाने का फैसला लिया.

आपको बता दें कि जैसे ही सैनिक वह उस जगह पर पहुंचे, तो उन लोगों को बाबा हरभजन सिंह का मृत शरीर उसी जगह और उसी हालत में मिला. जिसकी बात हरभजन सिंह की आत्मा ने अपने साथी सैनिक प्रीतम सिंह के सपने में कही थी. जिसे देखकर उन सैनिकों की पैरों तले जमीन खिसक गई. यही नहीं बाबा हरभजन सिंह की आत्मा ने अपने साथी सैनिक के सपने में अपने पैर की हड्डी टूटे जाने की भी बात कही थी. वो बात भी 100 फीसदी सही साबित हुई. जी हां जब पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आई तो यह साबित हो गया कि बाबा हरभजन सिंह के दाएं पैर की हड्डी टूट चुकी है.

यह बात बिल्कुल हैरान कर देने वाली और अजीब थी. की एक सैनिक जिसकी मौत हो चुकी हो और फिर उसकी आत्मा किसी दूसरे सैनिक के सपने में आकर अपने बारे में बताए, यह बात काफी हद तक अविश्वसनीय थी लेकिन बाबा हरभजन सिंह की एक-एक बात सत्य साबित हुई. आपको बता दें कि बाबा हरभजन सिंह की आत्मा फिर से उसी सैनिक के सपने में आई और सपने में आकर यह कहा कि आज भी वह अपने कार्य में कार्यरत हैं और आज भी वे अपनी ड्यूटी पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभा रहे हैं. इसके साथ ही बाबा हरभजन सिंह ने उनकी समाधि बनाए जाने की भी इच्छा प्रकट की. जिसके बाद बाबा हरभजन सिंह की इच्छा का मान रखते हुए एक समाधि भी बनवाई गई.

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भारतीय सेना ने साल 1982 में उनकी समाधि को सिक्किम की राजधानी गंगटोक में जेलेप्ला दर्रे और नाथुला दर्रे के बीच में बनवाया. और लगभग 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित बाबा हरभजन सिंह के मंदिर से आज लाखों लोगों की आस्थाएं जुड़ी हुई है. लोग दूर-दूर से इस मंदिर में अपना मत्था टेकने आते हैं. इस मंदिर में बाबा हरभजन सिंह की एक फोटो, उनके जूते और अन्य सामान रखें हुए हैं. बाबा हरभजन सिंह की समाधि के बारे में यह भी मान्यता है कि यहां पर अगर किसी बोतल में पानी भरकर 21 दिनों तक रखा जाता है. तो उस पानी में ऐसे अद्भुत चमत्कारी गुण उत्पन्न हो जाते हैं. जिसके सेवन से किसी भी गंभीर बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है. बाबा के मंदिर की चौकीदारी भारतीय सेना के जवान करते हैं. और उनके जूते की पॉलिश व् उनकी वर्दी भी साफ करते हैं और उनका बिस्तर भी लगाते हैं. वहां तैनात सिपाहियों के मुताबिक साफ किए हुए जूतों पर कीचड़ लगी होती है और उनके बिस्तर पर सिलवटें भी देखी जाती हैं.

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सरहद पर बाबा हरभजन सिंह की मौजुदगी पर अपने देश के सैनिकों को तो भरोसा है ही. इसके साथ ही चीन के सैनिक भी इस बात को मानते हैं और खौफ खाते हैं कि बाबा बॉर्डर पर आज भी मुस्तैद हैं. कहा जाता हैं कि मौत के बाद बाबा हरभजन सिंह नाथुला के आस-पास चीन सेना की गतिविधियों की जानकारी अपने साथियों को सपने में देते रहते हैं, जो कि हमेशा की तरह सही साबित होती है. आपको बता दें कि चीनी सैनिकों ने भी बाबा हरभजन सिंह की आत्मा को कई बार एक सफेद घोड़े पर सवार होकर बॉर्डर पर गश्त करते हुए देखा था. वहीं जब यह बात हद से ज्यादा बढ़ने लगी तो चीन के सैनिकों ने भारतीय सैनिकों से इस बारे में बात की थी. जिसके बाद भारतीय सैनिकों ने कहा था कि उस वक्त बॉर्डर पर कोई भी सैनिक पहरा नहीं देता है लेकिन अगले ही दिन बाबा हरभजन सिंह की आत्मा ने अपने दोस्त को सपने में बताया कि उनकी आत्मा ही घोड़े पर बैठकर भारतीय सीमा की मुस्तैदी से सुरक्षा करती है.

ऊपर बताये गए तथ्य के आधार पर बाबा हरभजन सिंह को मरने के बाद भी एक सैनिक की तरह भारतीय सेना की सेवा में रखा गया है. वे आज भी भारतीय सेना में अपना कर्तव्य पूरी ईमानदारी और निष्ठा से निभा रहे हैं. और तो और सेना के नियमों के अनुसार उनका प्रमोशन भी होता है. बाबा हरभजन सिंह को नाथू ला का हीरो भी कहा जाता है. फिलहाल भारत और चीन के सैनिक बाबा हरभजन सिंह के होने पर भरोसा रखते हैं इसलिए दोनों देशों की हर फ्लैग मीटिंग पर एक कुर्सी बाबा हरभजन सिंह के नाम की भी रखी जाती है. ताकि बाबा हरभजन सिंह हर मीटिंग अटेंड कर सकें. इसके अलावा भारतीय सैनिकों का यह भी कहना है कि बाबा हरभजन सिंह उन्हें चीन की तरफ से होने वाले हमलों को लेकर पहले ही सतर्क कर देते हैं. वहीं अगर भारतीय सैनिकों को चीनी सैनिकों के द्वारा उठाया गया कोई भी कदम अच्छा नहीं लगता तो हरभजन सिंह की आत्मा चीनी सैनिकों को भारतीयों सैनिकों की नाराजगी के बारे में भी बता देती हैं. ताकि शांति के साथ मिलकर आपस में समझौता किया जा सकें.

बहरहाल आप शहीद सैनिक हरभजन सिंह की इस तरह की गतिविधियों पर भरोसा करें या ना करें या फिर इसे अंधविश्वास कहें. लेकिन भारतीय सैनिकों का आज भी बाबा हरभजन सिंह के होने पर यकीन हैं. इसके साथ ही कई लोगों की आस्था भी बाबा हरभजन सिंह के मंदिर से जुड़ी हुई है. जो की शहीद होने के बाद भी आज अपने देश की सेवा में सीमा पर तैनात हैं.