सोलापुर: महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में गुरुवार को एक अनोखा मोर्चा निकला। जिले के सैकड़ों कुंवारों ने कलेक्टर दफ्तर पर मोर्चा निकालकर उनकी शादी कराने की मांग की। दूल्हे के लिबास में घोड़ी पर सवार होकर आए युवकों ने शिकायत की कि लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या कम होने की वजह से उन्हें ऐसी लड़कियां नहीं मिल रही हैं जिनसे वे शादी कर सकें, इसलिए या तो सरकार दुल्हन दिलाने में उनकी मदद करे या फिर गर्भ में लिंग परीक्षण पर सख्ती कर रोक लगाए।
घोड़ी पर सवार ‘दूल्हों’ की बारात सोलापुर में निकली। साथ में बैंड बाजा भी था, लेकिन यह बारात दुल्हन के घर ना जाकर जिला कलेक्टर के दफ्तर पहुंच गई। गुरुवार को सोलापुर में निकला यह अनोखा मोर्चा ऐसे कुंवारों का था जिन्हें शादी के लिए लड़कियां नहीं मिल रही हैं। दुल्हन को कोई चार साल से तलाश कर रहा है तो कोई पांच साल से।
एक युवक ने कहा कि, ”मैं पिछले चार साल से शादी के लिए लड़की तलाश रहा हूं। लड़कियों की अपेक्षा है कि लड़का अच्छा कमाने वाला होना चाहिए, शहर में रहने वाला होना चाहिए। खेती करने वाले के पास कम से कम 15 एकड़ जमीन होनी चहिए।”
एक अन्य युवक ने कहा कि, ”शिक्षित होकर भी नौकरी नहीं है। नौकरी है तो लड़कियां शादी के लिए तैयार नहीं होती हैं। इस वजह से माता-पिता और भाई-बहन भी मानसिक परेशानी से गुजर रहे हैं।”
सोलापुर में इस अनोखे मोर्चे का आयोजन क्रांति ज्योति परिषद ने किया था। इसमें बड़ी संख्या में अविवाहित युवक दूल्हे के लिबास में घोड़ी पर सवार होकर शामिल हुए और कलेक्टर को ज्ञापन दिया। इनकी शिकायत है कि शादी की उमर होने के बाद भी इन्हें शादी के लिए दुल्हन नहीं मिल रही है और इसके लिए सरकार जिम्मेदार है।
क्रांति ज्योति परिषद के अध्यक्ष रमेश बारस्कर ने कहा कि, ”सबको लगेगा ऐसे कोई पत्नी मांगता है क्या? पत्नी तो खोजनी पड़ती है, लेकिन सबके मां-बाप लड़की खोज-खोज कर थक गए हैं। अपने लड़के के लिए लड़की नहीं मिलने से उनको ब्लड प्रेशर, डायबिटीज हो रही है। हमारा मानना है कि यह जिम्मेदारी सरकार की भी है क्योंकि सरकार की गलत नीतियों की वजह से एक हजार लड़कों की तुलना में 907 लड़कियां हैं। कहने का मतलब यह है कि लड़कों की संख्या ज्यादा है और लड़कियों की कम।”
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में 1000 पुरुषों की तुलना में 943 महिलाएं हैं। महाराष्ट्र में यह संख्या 929 है और इसकी सबसे बड़ी वजह है लिंग भेद।
देश में लिंग परीक्षण पर पाबंदी है, लेकिन मोर्चे में शामिल दूल्हों का आरोप है कि आज भी अवैध लिंग परीक्षण और गर्भपात आम बात है। नतीजा लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या घटने से गरीब किसान और मजदूर वर्ग के लड़कों को दुल्हन नहीं मिल रही हैं।
महाराष्ट्र में कहते हैं ‘मुलगी शिकली प्रगति झाली’, मतलब लड़की पढ़ेगी तो घर में प्रगति आएगी, लेकिन इसके लिए पहले लड़की बचनी तो चाहिए, क्योंकि आज भी देश में एक बड़ा वर्ग है जो लड़कियों को बोझ मानता है। इसलिए सरकार को कोसने के साथ समाज की मानसिकता बदलने की भी जरूरत है।