बिहार के बगहा स्थित बनकटवा में बाबा विश्वंभर नाथ मंदिर में साक्षात नारायण वास करते हैं। यहां पर शालिग्राम महाराज स्थापित हैं, जिन्हें लोग भगवान विष्णु के रूप में पूजते हैं। मंदिर में स्थापित शालिग्राम का आकार लगभग 164 वर्षों से लगातार बढ़ रहा है। कभी लोगों ने शालिग्राम पत्थर को एक मटर के दाने की साइज में देखा था लेकिन आज इसका आकार इतना बड़ा हो गया है कि इसे उठाने के लिए 4-5 लोगों को जुटना पड़ता है। नेपाल के राजा की ओर से लोगों को मटर के दाने के आकार के भगवान मिले थे।
दरअसल 1857 में क्रांति के समय नेपाल के राजा जंग बहादुर सीवान गए थे। वहां से लौटते वक्त वो बगहा पहुंचे तो यहां के हलवाई रामजीआवन भगत ने राजा का स्वागत बड़े धूमधाम से किया था। रामजीआवन ने एक मंदिर बनाया था। राजा उनके स्वागत से खुश हो गए और उनके बुलावे पर मंदिर परिसर में गए जहां पर उन्होंने रामजीआवन भगत को नेपाल आने का आमंत्रण दिया। रामजीआवन भगत नेपाल गए तो वहां के राजपुरोहित ने राजा की ओर से उन्हें मटर के आकार जितना एक शालिग्राम भेंट किया। रामजीआवन भगत उसे लेकर भारत आए और यहां मंदिर में स्थापित कर दिया।
इस बात को करीब 164 वर्ष हो गए हैं। स्थानीय नरसिंह यादव के मुताबिक स्थापना के बाद से आज तक शालिग्राम का आकार बढ़ता ही जा रहा है। आज इस मंदिर को श्री बाबा विश्वंभर नाथ के नाम से जाना जाता है। मंदिर में स्थापित शालिग्राम का आकार लगभग 164 वर्षों से लगातार बढ़ रहा है। कभी लोगों ने शालिग्राम पत्थर को एक मटर के दाने की साइज में देखा था लेकिन आज इसका आकार इतना बड़ा हो गया है कि इसे उठाने के लिए 4-5 लोगों को जुटना पड़ता है। शालिग्राम महाराज का आसान साल में एक बार जन्माष्टमी के दिन ही बदला जाता है।
मंदिर के पुजारी विवेकानन्द द्धिवेदी के मुताबिक शालिग्राम महाराज का आसान साल में एक बार जन्माष्टमी के दिन ही बदला जाता है। श्री बाबा विशंभर नाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। यह कछुए के आकार के हैं। इन्हें साल में एक बार जन्माष्टमी के दिन ही आसन से उतारा जाता है। श्रद्धालुओं के अनुसार, इसमें शालिग्रामजी का साक्षात वास है, इसलिए इसके आकार में निरंतर वृद्धि हो रही है। यह मंदिर काफी पुराना है और दूर-दूर से लोग यहां दर्शन करने आते हैं। शालिग्राम भगवान के भारत आने की कथा भी रोचक है।
लोगों के लिए यह किसी रहस्य से कम नहीं है। बगहा के बाबा विश्मभर नाथ मंदिर के शालिग्राम की कहानी आज भी लोगों को सीधे धार्मिक मान्यताओं से जोडता है, यही कारण है कि शालीग्राम महाराज के दर्शन के लिए लोग दुर दुर से आते है।