नई दिल्ली
शहर के तीन नगर निगमों के सफाई कर्मचारी आज दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष तत्काल अपनी हड़ताल वापस लेने और काम शुरू करने पर सहमत हो गए। सफाईकर्मियों का यह निर्णय तब आया जब नगर निगमों ने कहा कि उन्होंने वेतन जारी कर दिया है और सभी को यह दो दिन के भीतर मिल जाएगा। सफाई कर्मचारियों ने दावा किया कि उनमें से अधिकतर को जनवरी 2016 का वेतन नहीं मिला है, जबकि निगमों ने कहा कि वेतन पांच फरवरी को जारी कर दिया गया था।
दिल्ली के नगर निगमों ने मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायमूर्ति जयंत नाथ की पीठ को बताया कि कोष पांच फरवरी को जारी कर दिया गया था, लेकिन कुछ क्षेत्रीय कार्यालय बंद थे। हो सकता है कि सभी को वेतन नहीं मिल पाया हो और जिन्हें वेतन नहीं मिला है, उन्हें यह दो दिन के भीतर मिल जाएगा। पीठ ने इसके बाद दोनों पक्षों के बयानों को रिकॉर्ड किया और मामले को 10 फरवरी के लिए सूचीबद्ध कर दिया जब यह अन्य बकाया के भुगतान और निगमों के एकीकरण के मुद्दे पर भी दलीलें सुनेगी। यह मुद्दा आज सफाईकर्मियों का प्रतिनिधित्व कर रही यूनियनों ने उठाया।
अदालत ने निगमों के इस बयान को भी रिकॉर्ड में लिया कि कर्मियों को जनवरी महीने का वेतन जारी करने में कोई बाधा नहीं आएगी। संक्षिप्त सुनवाई के दौरान यूनियनों ने तर्क दिया कि सभी को वेतन नहीं मिला है जैसा कि नगर निगमों ने दावा किया है। उन्होंने यह भी कहा कि निगमों को तीन हिस्सों में बांटे जाने का परिणाम खर्च के तीन गुना बढऩे के रूप में निकला है। उन्होंने तीनों निगमों को एक किए जाने की मांग की।
अदालत बीरेंद्र सांगवान द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में कहा गया था कि सफाईकर्मियों की हड़ताल के कारण जगह-जगह बिखरे पड़े कूड़े को हटाया जाए तथा हड़ताल खत्म होनी चाहिए जिससे आम लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। सफाईकर्मियों का जवाब उनसे संबंधित यूनियनों को पांच फरवरी को अदालत द्वारा जारी किए गए नोटिस के अनुपालन में आया। नोटिस में उनसे जनहित याचिका तथा नगर निगमों के इस दावे पर जवाब मांगा गया था कि जनवरी 2016 तक का वेतन जारी किया जा चुका है।
अदालत ने उस तारीख पर यह टिप्पणी भी की थी कि सफाई कर्मचारियों को यदि उनका भुगतान हो चुका है तो वे अपनी हड़ताल से ‘‘शहर को बंधक नहीं बना सकते।’’ इसने दिल्ली सरकार से यह भी पूछा था कि क्या वह आवश्यक सेवा रखरखाव कानून (एस्मा) लागू करने का इरादा रखती है। इस पर, दिल्ली सरकार के स्थाई अधिवक्ता राहुल मेहरा ने आज अदालत को बताया कि शहर प्रशासन ने 2015 में एस्मा को रद्द कर दिया था। हालांकि याचिकाकर्ता ने कहा कि हरियाणा का एस्मा दिल्ली तक विस्तारित किया गया है।