अम्बिकापुर..(पारसनाथ सिंह).. कला शिक्षा की मोहताज नहीं होती है.. और कलाकार किसी अवसर का इंतजार नहीं करता है.. इस बात को सरगुजा जिले के शिवमंगल ने सच कर दिखाया है.. मिट्टी को जीवंत आकार देने वाले सरगुजा के शिवमंगल की बनाई कलाकृति अनमोल और अद्वितीय हैं .. लेकिन इनमे सबसे खास है उनके द्वारा बनाया गया.. रूखा दिया.. जो चमत्कार तो नहीं लेकिन नायाब जरूर है…
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ के कई शहरो के लिए अलावा उत्तरांचल, नागालैंड, पश्चिम बंगाल, पंजाब और आसाम जैसे प्रदेशो मे अपने हुनर का लोहा मनवा चुके.. शिवमंगल छत्तीसगढ के आदिवासी बाहुल्य सरगुजा जिले के आरा गांव के रहने वाले हैं.. पेशे से कुम्हार और हुनर से मिट्टी के अनमोल कारीगर शिवमंगल पढे लिखे नहीं है.. लेकिन उनकी वैज्ञानिक प्रतिभा ने उन्हे मशहूर कर दिया है.. और मिट्टी पर किए गए उनकी कारीगरी को देखकर आप भी दांतो तले उंगली दबा लेंगे.. और यही वजह है कि विज्ञान का ज्ञान लिए बगैर शिवमंगल आज पूरे देश मे महशूर हैं..
30 साल से मिट्टी की कलाकृतियां बनाने वाले शिवमंगल क्या क्या बनाते हैं… अब हम आपको बताएगें.. जिस रूखे दिए के कारण शिवमंगल को ख्याति प्राप्त है.. वो रूखा दिया क्या है… दरअसल आम तौर पर हम दिए मे तेल डालकर रख देते हैं.. और तेल खत्म होने के बाद दिया बुझ जाता है.. लेकिन शिवमंगल ने जिस रूखे दिए का अविष्कार किया है.. वो एक बार तेल भरने मे कमसे कम 24 घंटे से अधिक जल सकता है.. क्योकि किसी पक्षी की तरह दिखने वाले इस दिए के ऊपर एक आईल टैंक होता है.. जिससे वैज्ञानिक तरीके से तेल पक्षी के चोंच से गिरता है.. और फिर अगर तेल दिए मे भर गया.. तो पक्षी के चोंच से टपकने वाला तेल टपकना बंद हो जाता है..
वैसे जानकार इसके पीछे की वजह हवा के दबाव को मानते हैं.. लेकिन हैरानी तो तब होती है कि विज्ञान का ज्ञान लिए बगैर शिवमंगल ने अपने हुनर से रूखे दिए मे एयर सिस्टम बनाया विकसित कर लिया.. बहरहाल पक्षी की तरह दिखने वाले और पक्षी के चोंच से वायु के दबाव मे काम करने वाले रूखे दिए के अलावा मिट्टी के शंख और घंटे भी बनाते हैं… जो किसी असली शंख या घंटे की तरह ही बजते है.. तो ऐसे मे आपको भी शिवमंगल की इस अकल्पनीय प्रतिभा का कायल तो होना ही पडेगा….
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