हमें क्या लेना ‘आप’ से। या कि उसके उत्कर्ष से। या फिर 2-जी, आदर्श, कॉमनवेल्थ और कोलगेट जैसे घोटालों से। या फिर ‘नमो लहर’ से। न तो हमें बिजली-पानी ही मयस्सर है और न भरपेट भोजन। क्या होती है सरकार और उसकी कल्याणकारी योजनाएं, हमें नहीं पता। स्कूल तो हम जाते ही नहीं और जाने के लिए हमसे कोई कहने वाला ही है। हम जंगलो में रहने वाले शायद देश के नीति-नियंताओं रचित ‘आम आदमी’ की परिभाषा में भी न आते हों। भोजन की एक प्लेट से तीन बच्चे अपना पेट भरते हुए शायद ऐसा ही कुछ सोच रहे हों। तस्वीर उस वक्त ली गई जब छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के वन ग्राम दोंदरो की एक बारहमासी नदी के तट पर पिकनिक मनाने पहुंचे दल ने खुद भोजन कर लेने के बाद ‘बचे-खुचे’ भोजन की ताक में पास ही बैठे कुछ वनवासी बच्चों को भोजन देने बुलाया।
यह लेख अरूण राठौर, संजयनगर, बालको, कोरबा, छ.ग 495684 द्वारा स्वयं के विचार पर आधारित है…
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