सिवनी-मालवा की आँगनवाड़ियों में कुछ अलग है माहौल…

सुनीता दुबे

रंग-बिरंगी कुर्सियाँ नन्हे-मुन्नों में कितना अद्भुत परिवर्तन ला सकती हैं, यह जानना है तो पहुँच जाइये होशंगाबाद जिले के सिवनी-मालवा तहसील की किसी भी आँगनवाड़ी में। साफ-सुथरे वेलड्रेस्ड बच्चे, कहीं-कहीं तो बच्चे टाई लगाकर, अच्छे जूते-मोजे पहनकर कंधे पर बाकायदा बस्ता टांगकर नियमित रूप से आँगनवाड़ी पहुँच रहे हैं। रोचक बात यह है कि इन बस्तों में बड़े भाई-बहनों की वो किताबें भी मिल जायेंगी, जो ये बच्चे पढ़ भी नहीं सकते!

कलेक्टर ने प्रकट किया आभार

वन मंत्री श्री सरताज सिंह द्वारा होशंगाबाद जिले की एकीकृत बाल विकास परियोजनाओं, सिवनी-मालवा के सभी 274 आँगनवाड़ी केन्द्र, केसला के 178 तथा होशंगाबाद ग्रामों के 51 केन्द्र को मिलाकर कुल 503 आँगनवाड़ी केन्द्र के बच्चों के लिये प्रति केन्द्र 20 के मान से कुर्सी तथा 75 केन्द्र के लिये रॉकर्स अटल बाल मित्र योजना में प्रदाय किये गये हैं। इससे आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा है एवं उनके कार्य में सकारात्मक बदलाव के साथ-साथ बच्चों को अच्छी नर्सरी शिक्षा एवं संस्थान देना सुविधाजनक हुआ है। माननीय मंत्री जी के उक्त कार्य से प्रेरित होकर अन्य गणमान्य व्यक्ति भी आँगनवाड़ी केन्द्रों के उन्नयन में सहभागी होंगे।

राहुल जैन
कलेक्टर

कुर्सियाँ खुशियों की पर्याय बन गई हों जैसे ! बच्चे खुश, आँगनवाड़ी कार्यकर्ता खुश, माँ-बाप खुश… मानो खुशी ने पूरे गाँव में ही पैर पसार लिये हों। बच्चे खुश… उनमें अहसास-ए-बेहतरी आया है। उनकी… माएँ जब खुशी-प्यार-गर्व की छलकती आँखों से अपने नौनिहालों को कुर्सी पर बैठा देखने आती हैं तो उनके चेहरों की चमक देखने लायक होती है। स्कूल में पढ़ने वाले बड़े भाई-बहन जब खुश होने के साथ मुँह लटका कर कहते हैं हमारे स्कूल में ये सब नहीं… हम भी एक बार कुर्सी पर बैठकर देख लें क्या?… तो छोटे भाई-बहनों में जो बड़प्पन छा जाता है… वह काबिले गौर है। प्लास्टिक की छोटी-सी कुर्सी कितनी महत्वपूर्ण हो सकती है इसका पता आँगनवाड़ी आकर ही चलता है। पहले अनुशासन का पाठ पढ़ाने का असफल प्रयास करने वाली कार्यकर्ता हतप्रभ है। बच्चे खुद-ब-खुद आँगनवाड़ी आ रहे हैं और रोज आ रहे हैं। शत-प्रतिशत उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। कतार में खड़े होने की कभी न सुनने वाले बच्चे स्वयं ही अब अपनी कुर्सी कतार से जमाकर बैठ रहे हैं। जैसे कहीं कुछ चमत्कारिक घट गया है। मशक्कत के बाद कहना मानने वाले बच्चे रातों-रात अनुशासित-संस्कारी हो गये हैं। किताबें खोलकर ध्यान से पढ़ रहे हैं। घर में खाने में नखरे दिखाने वाले बच्चे कुर्सी पर बैठकर सुबह 9 बजे नाश्ता कर रहे हैं तो पढ़ाई के बाद ‘चेयर-रेस’ खेलकर आँगनवाड़ी में भरपूर खाना खाकर घर लौट रहे हैं। माँ-बाप खुश… बच्चे ने भरपेट खाना खाया। गरीब माँ-बाप खुश बच्चों के खाने की परवाह नहीं, आँगनवाड़ी कार्यकर्ता खुश, कुपोषण घट रहा है। स्वस्थ बच्चे बढ़ रहे हैं।

‘कुर्सियाँ क्या आईं जैसे बच्चों का स्टेण्डर्ड बढ़ गया है’’ कहना है बराखड़खुर्द आँगनवाड़ी कार्यकर्ता श्रीमती अनुराधा अश्वारे का। बच्चों में बहुत आत्म-विश्वास आया है। पहले वे न तो आँगनवाड़ी में आने में खास रुचि लेते थे, न कुछ नया सीखने में। हाथ धोना, साफ-सफाई, नमस्ते, गुड मार्निंग हम पहले भी सिखाते थे… पर असर नहीं होता था। अब स्थिति बिलकुल उल्टी है। हमारी आँगनवाड़ी में 5-6 स्कूल जाने वाले बच्चे भी हैं जो कुर्सियों के मोह में आँगनवाड़ी आ जाते हैं, जिन्हें वे और शिक्षक समझाकर स्कूल भेजते हैं। कई बार तो ऐसी नौबत आ जाती है कि 1 बजे छुट्टी हो जाने के बाद भी कोई-कोई बच्चा घर जाने से इंकार कर देता है। ऐसे में उनकी मम्मी को बुलाकर भिजवाना पड़ता है।

केसला तहसील के गोमतीपुरा आँगनवाड़ी की कार्यकर्ता श्रीमती माधुरी रावत कहती हैं कि पहले वर्षा के दिनों में भवन छोटा होने से बहुत परेशानी होती थी। सीलन भरे फर्श पर दरी बिछाकर बैठाना पड़ता था। बच्चे आने को तैयार नहीं होते थे। बच्चों को रोज लाना सबसे बड़ी चुनौती भरा काम होता था। जैसे-तैसे 11 बजे तक बच्चे लाये जाते थे। अब शत-प्रतिशत उपस्थिति है। बच्चे खुद-ब-खुद समय पर 9 बजे आ जाते हैं। कुर्सी पर बैठने से साफ-सफाई भी है। बच्चे अब बीमार भी अपेक्षाकृत कम हो रहे हैं। जो भी पढ़ाओ-सिखाओ मन लगाकर ग्रहण कर रहे हैं। मक्का की निंदाई चल रही है। माँ चिन्तामुक्त होकर खेतों में जा रही हैं। बच्चे सुबह का नाश्ता तो अच्छी तरह खाने लगे ही हैं, दोपहर का भोजन भी भरपेट कर रहे हैं। हमारी आँगनवाड़ी में तो डेढ़ साल-ढाई साल के भी बच्चे आ रहे हैं। बच्चे की रुचि देखकर माँ भी बस्ते में स्लेट, कापी, पेंसिल रखने लगी हैं। गाँव से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर केसला में स्कूल है। इसलिये 5 साल तक के बच्चे आँगनवाड़ी में ही आते हैं। जबसे कुर्सी आई है तब से न केवल साफ-सुथरे ढंग से आने लगे हैं बल्कि स्कूल ड्रेस की तरह यूनीफार्म, जूते-मोजे, टाई की माँग भी करने लगे हैं। यह कहना है भरलाय की कार्यकर्ता श्रीमती लीला वर्मा, नदीपुरा की कुमारी अपूर्वा नागेश और सिवनी-मालवा वार्ड क्रमांक-9 की आँगनवाड़ी कार्यकर्ता श्रीमती ममता भदौरिया का।

कुर्सियाँ वितरित करने का यूँ आया विचार

वन मंत्री श्री सरताज सिंह पिछले एक साल के दौरान सिवनी-मालवा और केसला तहसील की 503 आँगनवाड़ी में 10 हजार 60 कुर्सी वितरित करवा चुके हैं। तकरीबन एक वर्ष पूर्व क्षेत्र में भ्रमण के दौरान श्री सिंह ने देखा कि आँगनवाड़ी में बैठने के लिये बच्चों के पास कोई संतोषजनक व्यवस्था नहीं है। उस आँगनवाड़ी को उन्होंने 20 कुर्सी भिजवाईं। आज स्थिति यह है कि सिवनी-मालवा और केसला तहसील की सभी आँगनवाड़ी में कुर्सी हैं।