रायपुर. शहर में रामनवमी की धूम देखने को मिल रही है। राम मंदिरों में बड़े जोर शोर से तैयारी चल रही है। राजधानी के 200 साल पुराने जैतुसाव मठ में रामनवमी के अवसर पर 11 क्विंटल मालपुआ तैयार किये जा रहे हैं। मठ में माता सीता की रसोई में हर साल यहां भगवान राम को प्रिय भोग मालपुआ औऱ पंजीरी बनता है।
ऐसे होती है मालपुआ बनाने की शुरुआत
सोमवार से ही मालपुआ बनना शुरू हो गया है औऱ भगवान राम के जन्म होने तक यहां मालपुआ छनाता रहेगा। सबसे पहले भट्टी बनाते हैं उस पर तय और लकड़ी रखते हैं। भट्टी के सामने द्विप प्रज्वलित कर पूरे मंत्रोच्चार के साथ पूजा होती है, इसके बाद अग्निदेव की पूजा होती है फिर मालपुआ बनना शुरू होता है। पहला मालपुआ अग्निदेव को समर्पित होता है। मालपुआ बनाने वाली हेमा दीदी ने बताया की गेहूं आटा में दूध डालकर खूब फेटा जाता है, इसके बाद गुड़, सौंफ, काली मिर्च डालकर भी फेटते है, उसके बाद घी में इसे बनाते हैं। मालपुआ बनने के बाद इसे गाय के चारे, पैरा के उपर रखकर सुखाया जाता है। कीड़े-मकोड़े और चींटिंया पास न फटके इसकी विशेष व्यवस्था की जाती है। शुरुआती दौर में मात्र 11 किलो का मालपुआ बनाया जाता था। भक्तों की संख्या बढ़ने के साथ ही प्रसाद की मात्रा भी बढ़ती चली गई। वर्तमान में 11 क्विंटल से अधिक का मालपुआ बनाया जा रहा है।
रामनवमी के महत्व
रामनवमी का महत्व बताते हुए मंन्दिर के पुजारी अजय तिवारी ने बताया कि, राम भगवान का जन्म हिन्दू नववर्ष के में राजा राम चैत्र नवरात्र के नवमी तिथि, अभिजीत मुहूर्त में भगवान राम का 12 बजे जन्म हुआ, औऱ रामनवमी के दिन जैतुसाव मठ में भी ऐसे ही 12 बजे मठ में खुद ढोल बाजे औऱ फटाखे फोड़कर उनका जन्मोत्सव मनाएंगे। भगवान को पंचामृत से स्नान करवाएंगे। सुबह की आरती के बाद उनके जन्म के बाद फिर आरती होगी।
केले के पत्ते से सजाया गया है जैतुसाव मठ
रामनवमी के अवसर पर जैतुसाव मठ की सजावट केले के पत्तों से होगी। दिन भर भजन गाना आतिशबाजी होगी। मालपुआ का भोग शाम 5 बजे के बाद भक्तों में बांटा जाएगा। 2 3 दिनों तक प्रसाद बाटा जाएगा। इसके साथ ही पंजीरी का भोग भी भगवान को लगेगा।
200 साल पहले हुआ था जैतुसाव मठ का निर्माण
जैतुसाव मठ भगवान राम की याद में बनाया गया है। उस समय यह मंदिर उमा बाई ने बनवाया था अपने पति जैतुसाव अग्रवाल की याद में। उनके पति के नाम से महंत लक्ष्मी नारायण अग्रवाल ने मंदिर का नामकरण किया, यह मठ धार्मिक, समाजिक, शैक्षणिक और राजीनीतिक का केंद्र बिंदु रहा है।
देश के आज़ादी के समय इस मठ में स्वंत्रता संग्राम सेनानी लोग एकत्रित होकर रणनीति तैयार करते थे। उस समय मठ के महंत लक्ष्मी नारायण दास, रविशंकर शुक्ल, पं सुंदरलाल शर्मा, छेदीलाल, ठाकुर प्यारेलाल, खूबचंद बघेल आदि छत्तीसगढ़ के स्वंत्रता संग्राम में जो भाग लेते थे उनकी बैठके होती थी। 1932-33 में महात्मा गांधी ने भी यहां बैठक ली थी। उनकी याद में मठ में गांधी जी की मूर्ति भी है। यहाँ डॉ राजेंद्र प्रसाद प्रथम राष्ट्रपति आये, जवाहरलाल नेहरू यहां भोजन किये थे, मोरार जी देसाई, राष्ट्रीय स्तर के नेता आते जाते थे।