बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने निलंबित एडीजी जीपी सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए सशर्त जमानत दे दी है। सिंगल बेंच ने उन्हें जेल से रिहा करने का आदेश जारी किया है। निलंबित एडीजी राजद्रोह के अलावा आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का आरोप झेल रहे हैं। वे 120 दिनों से जेल में हैं। आर्थिक अपराध एवं अन्वेषण ब्यूरो(ईओडब्ल्यू) की टीम ने निलंबित एडीजी को 11 जनवरी को नोएडा से गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के बाद ईओडब्ल्यू के अधिकारियों ने पूछताछ के लिए सात दिनों तक रिमांड पर रखा।
पूछताछ के बाद 18 जनवरी को विशेष अदालत के समक्ष पेश किया गया। अदालत ने एडीजी सिंह को जेल भेजने का आदेश दिया। इस पर जीपी सिंह ने निचली अदालत में जमानत के लिए आवेदन पेश किया था। वहां राहत नहीं मिले पर हाई कोर्ट में याचिका दायर की। हाई कोर्ट ने भी जमानत देने से इन्कार कर दिया था। याचिकाकर्ता सिंह ने जमानत आवेदन पर अंतरिम राहत की गुहार लगाई थी। कोर्ट से अंतरिम जमानत याचिका खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर जमानत की गुहार लगाई। सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिल पाई थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने निलंबित एडीजी के जमानत आवेदन पर शीघ्र सुनवाई करने के हाई कोर्ट को निर्देश दिए थे।
गिरफ्तारी को लेकर उठाए सवाल
जस्टिस दीपक तिवारी की सिंगल बेंच में याचिकाकर्ता की ओर से वकील आशुतोष पांडेय ने कहा कि प्रदेश के एक वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी को नियम विस्र्द्ध तरीके से बिना मामला दर्ज किए गिरफ्तार किया गया है। किसी भी आइपीएस अधिकारी के खिलाफ प्रकरण दर्ज करने से पहले केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय से अनुमति लेनी पड़ती है। याचिकाकर्ता के मामले में ऐसा नहीं किया गया है। वकील ने कानूनी पहलुओं को सामने रखते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति नहीं हुई है। इसके बाद भी उनको जेल में बंद रखा गया है। आरोप पत्र दाखिल होने के बाद जमानत किसी भी आरोपित का मौलिक अधिकार माना जाता है। इस प्रकरण में सभी नियमों को दरकिनार कर दिया गया है।
विचारण शुरू नहीं हुआ और जेल की मिली सजा
जमानत आवेदन में याचिकाकर्ता निलंबित एडीजी ने कहा है कि ईओडब्ल्यू की जांच पूरी हो गई है। जांच पड़ताल के बाद ब्यूरो ने विशेष अदालत में चार्जशीट पेश की है। चार्जशीट के बाद अब कोर्ट में ट्रायल शुरू होगा। विचारण से पहले ही उनको सजा सुना दी गई है और जेल में बंद कर दिया है। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि जांच एजेंसियों द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब भी दे दिया है। जांच एजेंसी को पूरा सहयोग किया है। जांच के दौरान संपत्ति का ब्योरा पेश करने की मोहलत भी मांगी थी। उसे अवसर नहीं दिया गया है। याचिकाकर्ता ने आशंका जाहिर की है कि उनके साथ विद्वेषवश कार्रवाई की जा रही है और उन्हें जानबूझकर फंसाया जा रहा है।