क्रांति कुमार रावत की खास रिपोर्ट –
सरगुजा। परसा कोल खदान के समर्थन में दर्जनों AC गाड़ियों में भरकर लाये गए लोगों ने कलेक्टर साहब के समक्ष खदान खुलवाने जमकर नारे बाजी की। कुछ दिन बाद राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ के सीएम की मुलाकात हुई तत्पश्चात परसा कोल खदान की मंजूरी प्रशासन द्वारा जारी कर दी गई।
खोल लो खदान पर कुछ सवाल है जिसके बारे में विचार जरूर करियेगा –
कलेक्टर सरगुजा के समक्ष जिन लोगों ने रोजगार चाहिए बोलकर समर्थन दिया उन लोगों ने कभी यह हिम्मत की वह चालू खदान में काम मांग ले या मांगा तो उसे काम मिला क्या ?
खदान को समर्थन देने वाले यह बता दें क्या ईमानदारी से बिना किसी के बुलावे पे कलेक्टर से मिलने गए?
नहीं गए कम्पनी के लोगों का प्रोपोगेंडा यहाँ भी सामने AC गाड़ियों में भरकर लोगों के लिए vip खाना के पैकेट के इंतजाम किए गए जिसका लोगों ने खूब आनंद उठाया और समर्थन बोलकर चले आये।
ठीक उसी दिन खदान के विरोध वाले लोग भी एक कमांडर जीप में सवार होकर आये और खदान के विरोध में ज्ञापन देकर गांव लौटकर फिर से ग्राम हरिहरपुर में धरना प्रदर्शन पर बैठे हुए है। इनका धरना अभी भी 2 मार्च से जारी है।
खदान के दुष्प्रभाव से शायद आप परिचित नहीं है आइये आपसे रूबरू करवाते है कि – 2012 से संचालित परसा ईस्ट एवं केते बासेन कोल परियोजना में ग्राम केते के 192 परिवार पूरी तरह से विस्थापित हुए थे।
बसाहट की इतनी बुरी स्थिति है की वहाँ सामान्य जीवन जी पाना मुश्किल है कारण 20 फिट बाई 21 फिट का एक घर जिसमें 1 बेडरूम किचन व बरामदा बना है कल्पना कीजिए कि कैसे इस घर मे लोग माँ बाप व बाल बच्चों के साथ रहेंगे। ग्रामीणों के साथ उनके मवेशी भी है उनका क्या हुआ यह किसी को पता नहीं।
192 विस्थापित परिवारों के लिए 72 घर करीब बने हैं 20 फीट बाई 21 फीट के इस घर में शुरू के कुछ दिन तो लगभग 40 के करीब परिवारों ने यहां आश्रय लिया परंतु अव्यवस्थाओं की वजह से व जगह छोटा पड़ने के कारण अभी कुछ परिवार ही बसाहट में रह रहा है।
मुआवजा मिलने के बाद कोल खनन कंपनी द्वारा शुरुआत में स्थानीय लोगों को ₹6000 (छः हजार)प्रति माह की दर से साफ-सफाई व अन्य कार्यों के लिए मजदूरी में गांव के लोगों को रखा कुछ लोगों को काम पसंद आया कुछ को नहीं आया कई लोगों ने काम छोड़ दिया । ग्राम केते के गिनती के कुछ लोग अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार लाएं और घर बनवाए जमीन खरीदी और कुछ व्यवसाय किए ऐसे लोगों की संख्या काफी कम है।
खदान खोलने के उस दौर में दलाल भी काफी सक्रिय रहे दलालों के चक्कर में पड़कर सैकड़ों परिवार के लोगों ने मुआवजा की राशि को गवां दिया है अब उनके पास बमुश्किल ही जीवन यापन के लिए रुपए बचे हैं ।
कुछ ग्रामीण वापस जंगल की ओर रुख करते हुए खदान के बगल में झोपड़ी नुमा घर बनाकर रह रहे हैं व जंगल की चीजों से अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
वहीं खदान में काम करने आये कम्पनी के लोगों को वन बीएचके, टू बीएचके, थ्री बीएचके एसी कमरों वाले मकान रहने को दिए गए है।
खदान के शुरू होने से साल्ही व परसा ग्राम में जलस्तर काफी नीचे चले जाने से लोगों को पानी के लिए कंपनी द्वारा संचालित टैंकर के भरोसे रहना पड़ रहा है कुआं एवं बोरिंग की हालत खस्ता हाल है।
2012 में उक्त खदान शुरू करने के लिए लाखों पेड़ों की बलि दी गई जोकि सैकड़ों साल पुराने पेड़ थे जिनसे हमें प्राणवायु मिलती थी. पेड़ों के काटे जाने का दुष्परिणाम यह हुआ कि लगातार मौसम में बदलाव देखने को मिलने लगा गर्मी लगातार बढ़ने लगा है।
खदान खोलने के बाद सबसे बड़ी त्रासदी के रूप में लोगों की मौत सामने आई कोयले का परिवहन ट्रकों से होने के दौरान 5 से 7 सालों में हजारों की संख्या में लोग इनकी चपेट में आकर अपनी जान गवा चुके हैं।
जिस तरह से फेस 2 खदान खोलने के लिए कंपनी एवं प्रशासन के लोगों द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं उससे तो यही लगता है कि हम आने वाले दिनों में और भी भीषण त्रासदी के शिकार होंगे लाखों की संख्या में सैकड़ों साल पुराने पेड़ कटेंगे गर्मी बढ़ेगी जलस्तर नीचे जाएगा।
वन परिक्षेत्र उदयपुर के जंगल में मौजूद 21 प्रकार के लघु वनोपज/वन औषधियों का सफाया लगभग तय है शासन द्वारा वन से प्राप्त होने वाले लघु वनोपजों के लिए 975₹ से 30 हजार ₹ प्रति क्विंटल तक कि उचित दर भी निर्धारित की गई है।
यदि जंगल के पेड़ पौधे न कटे तो गांव के ग्रामीण जिस तरह से सैकड़ों वर्ष पूर्व से इनके दादा परदादा या स्वयं अपना जीवन यापन किए इन जंगलों के भरोसे इसी तरह से यह भी अपना जीवन यापन कर सकते हैं परंतु जल जंगल जमीन के चले जाने से इनकी जीवन शैली पर भी काफी बुरा प्रभाव देखने को मिलेगा।
अब हम बात करेंगे नदियों नालों की ग्राम केते के बारहमासी जिंदा नाला का अस्तित्व भी खदान खोलने से खत्म हो गया है। ठीक इसी तरह से हमारे यहां और नाले नदी हैं जिनका अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा चोरनई व अटेम् जो कि हमारे ग्रामीणों के लिए जीवन रेखा का काम करती है। हजारों लोगों व मवेशियों का निस्तार का काम भी इन्हीं नदी नालों से चलता है इस पर भी विराम लगने की आशंका है।
इन सारी परिस्थितियों के लिए क्या हम तैयार हैं?
हम वैश्विक स्तर पर पर्यावरण की सुरक्षा के लिए तमाम प्रकार की बातें करते हैं परंतु जमीनी सच्चाई यही है कि हम अपने यहां की सैकड़ों वर्ष पुराने पेड़ों को काटकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने का काम खुद से करते हैं।
कोल प्रभावित ग्राम घाटबर्रा परसा बासेन केते परोगिया शैदु सुसकम फतेहपुर हरिहरपुर साल्हि ग्राम में जनवरी 2021 से सितंबर 2022 तक वन्य जीव द्वंद काफी बढ़ा है। इस अवधि में वन्य प्राणियों भालू, हाथी व तेंदुआ के हमले से 5 व्यक्ति की मौत हुई है। 22 व्यक्ति घायल हुए है तथा 94 मवेशियों को जंगली जानवरों के हमले के कारण जान से हाथ धोना पड़ा है। परसा कोल ब्लॉक के लिए लाखों पेड़ पौधों के कटने से स्थिति और भयानक हो सकती है।
यदि आपको यह लगता है कि यह समस्या सिर्फ विकास खंड उदयपुर के कोल प्रभावित ग्रामीणों की है तो आप गलत है। इसका प्रभाव हर उस व्यक्ति पर पड़ेगा जो जीवन में सांस लेना चाहता है पर्यावरण ही नहीं रहेगा तो सांस की आस छोड़नी पड़ेगी खुद ही विचार करिए क्या हम इन परिस्थितियों के लिए तैयार हैं यदि नहीं तो ग्रामीणों के संघर्ष में शामिल होने के लिए जो आप कर सकते हैं वह करिए।