अम्बिकापुर 11 जून 2014
रामगढ़ महोत्सव के विशेष संदर्भ में
महाकवि कालिदास की अनुपम रचना ‘‘ मेघदूतम’’ की रचना स्थली और विश्व की सर्वाधिक प्राचीनतम् शैल नाट्यशाला के रूप में विख्यात ‘‘रामगढ़’’ में है। इस ऐतिहासिक धरोहर को संजोए रखने और इसके संवर्धन के लिए हर साल आषाढ़ के पहले दिन यहां रामगढ़ महोत्सव का आयोजन किया जाता है।
प्राचीनतम नाट्यशाला- प्राकृतिक सुषमा से सम्पन्न रामगढ़ पर्वत के निचले शिखर पर अवस्थित ‘‘सीताबेंगरा’’ और ‘‘जोगीमारा’’ गुफाएं प्राचीनतम शैल नाट्यशाला के रूप में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। ये गुफाएं तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मौर्यकाल के समय की मानी जाती हैं। जोगीमारा गुफा में मौर्य कालीन ब्राह्मी लिपि में अभिलेख तथा सीताबेंगरा गुफा में गुप्तकालीन ब्राह्मी लिपि में अभिलेख है। जोगीमारा गुफा में भारतीय भित्ति चित्रों के सबसे प्राचीन नमूने अंकित हैं।
रामगढ़ की मूर्तियों का ऐतिहासिक तथ्य
पुरातात्विक दस्तावेजों के रूप में मूर्तियों, शिलालेखों एवं ताम्रपत्रों का बड़ा महत्व है। रामगढ़ मंे ऐसे महत्व की वस्तुएं उपलब्ध है। जोगीमारा गुफा में लगभग 8 मूर्तियां संग्रहित हैं। इन मूर्तियों का आकार, प्रकार एवं ऊंचाई तथा आकृतियों के उत्कीर्ण करने की शैली से स्पष्ट होता है कि ये मूर्तियां राजपूत शैली में निर्मित की गई हैं। राजपूत शैली में चेहरे का उभार, ऊंचाई, लम्बी नाक, क्षीण कटि, नितम्बों का उभार, जांघों एवं पिंडलियों का उन्नत्तोदर क्षेत्र अर्द्धकोणाकार पंजे आदि परिरक्षित होते हैं। मूर्तियों के मुख मण्डल पर चिंतन की मुद्रा राजपूत शैली से अलग भाव भंगिमा लगती है। इन तथ्यों से ये मूर्तियां लगभग 2 हजार वर्ष पूर्व की लगती हैं।
रामगढ़ के शिलालेख
रामगढ़ पहाड़ी के ऊध्र्व भाग में दो शिलालेख मौजूद हैं। प्रस्तर पर नुकीले छेनी से काटकर लिखे गए इस लेख की लिपि पाली और कुछ-कुछ खरोष्टी से मिलती जुलती है। लिपि विशेषज्ञों ने इसे एक मत से पाली लिपि माना है। इस पर निर्मित कमलाकृति रहस्यमय प्रतीत होती है। यह आकृति कम बीजक ज्यादा महसूस होता है।
रामगढ़ पर श्रीराम का आगमन
भगवान राम के रामगढ़ आने का प्रमाण आध्यात्म रामायण के अनुसार यह है कि महर्षि जमदग्नि ने राम को भगवान शंकर द्वारा दिया गया वाण ’’प्रास्थलिक’’ दिया था। जिसका उपयोग उन्होंने रावण के विनाश के लिए किया था। रामगढ़ के निकट स्थित महेशपुर वनस्थली महर्षि की तपोभूमि थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि वनवास के दौरान भगवान राम महर्षि जमदग्नि के आश्रम आए थे तथा ऋषि की आज्ञा से कुछ दिनों तक रामगढ़ में वास किया था।
कालीदास के ’’मेघदूतम’’ की रचनास्थली
रामगढ़ को महाकवि कालीदास की अमरकृति मेघदूतम् की रचनास्थली मानी जाती है। संस्कृत अकादमी भोपाल द्वारा इस ओर विशेष ध्यान देने पर रामगढ़ पुरातात्विक दृष्टि से विशेष अध्ययन का केन्द्र बन गया। रामगढ़ के शिलाओं का इतिहास जानने की शुरूआत उज्जैन निवासी डाॅ. हरिभाऊ वाकणकर ने की। इन्होंने रामगढ़ के समीपवर्ती क्षेत्र का गहन अध्ययन किया। इस कार्य में उनके सहयोगी छायाकार पूना निवासी श्री उदयन इन्दूरकर का विशेष योगदान रहा।
रामगढ़ स्थित हाथी पोल
सीताबेंगरा के ही पाश्र्व एक सुगम सुरंग मार्ग है, जिसे हाथी पोल कहते हैं। इसकी लम्बाई लगभग 180 फीट है। इसका प्रवेश द्वार लगभग 55 फीट ऊंचा है। इसके अंदर से ही इस पास से उस पार तक एक नाला बहता है। इस सुरंग में हाथी आसानी से आ-जा सकता है। इसलिए इसे हाथी पोल कहा जाता है। सुरंग के भीतर ही पहाड़ से रिसकर एवं अन्य भौगोलिक प्रभाव के कारण एक शीतल जल का कुण्ड बना हुआ है। कवि कालीदास ने मेघदूत के प्रथम श्लोक में जिस ’’यक्षश्चक्रे जनकतनया स्नान पुण्योदकेषु’’ का वर्णन किया है वह सीता कुण्ड यही है। इस कुण्ड का जल अत्यन्त निर्मल एवं शीतल है।
सरगुजा अपने अतीत के गौरव और पुरातात्विक अवशेषों के कारण भारत में ही नहीं, अपितु एशिया में भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। सरगुजा चारों ओर अपने गर्भ में अनेक ऐतिहासिक तथ्यों को संजोए हुए है। इन ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक स्थानों में से जो कुछ तथ्य प्राप्त हुए हैं, उन्हें देख सुनकर सहसा विश्वास नहीं होता है। सरगुजा जिले में अब तक प्राप्त विवरण के अनुसार लगभग 50 से 55 स्थान ऐसे हैं, तो अपने ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक रहस्य के कारण पुरातत्ववेत्ताओं के लिए विशिष्ट स्थान रखता है।