शहडोल
शहडोल सांसद दलपत सिंह परस्ते अब हमारे बीच नही रहे है, ब्रेन हेमरेज होने के कारण आज शाम पांच बजे उनका देहांत हो गया,दरअसल दो दिन पहले जिले के दौरे में आये प्रदेश के मंत्री उमाशंकर गुप्ता के कार्यक्रम से लौटने के बाद वे संघ के कार्यक्रम में शरीक हुए और वापसी में रास्ते में ही उनकी तबियत बिगड़ी थे, तत्काल उपचार के लिए स्थानीय अस्पताल में भर्ती किया गया था और स्थिति में सुधार ना दिखने के कारण उनका इलाज गुडगाव के मेदान्ता में चल रहा था जहां आज शाम पांच बजे श्री परस्ते ने दुनिया को अलविदा कह दिया, जाहिर है की इनकी मौत से शहडोल भाजपा को बड़ा झटका लगा है,
गौरतलब है की दलपत सिंह परस्ते का जन्म 30 मई 1950 को शहडोल जिले के एक छोटे से गाव टाँकी टोला गाव में हुआ था, वही इन्होने अपने जीवन का अमूल्य समय अनूपपुर जिले के धनपुरी गाव में बिताए और बी ए और एल एल बी की शिक्षा हासिल की, क्षेत्र में इनकी छवी एक स्वच्छ आदिवासी नेता के रूप में सदैव बनी रही अपने सौम्य और सरल स्वभाव के काराण दलपत सिंह सदा ही कार्यकर्ताओं व क्षेत्र की जनता के चहेते रहे है, इतना ही नहीं इनके सवभाव के तो विपक्षी भी कायल रहे है अक्सर चौक चौराहों पर इनके अकारण आगमन पर प्रमुख विपक्षी दल के कार्यकर्ताओं के साथ इन्हें बड़े सम्मान से मिलते जुलते देखा जा सकता था,
अपने राजनीति कैरियर में सबसे पहले 1977 में शहडोल लोकसभा से धनसाय प्रधान को चुनाव हराकर सांसद बने दलपत सिंह ने 1990 में भारत सरकार में मंत्री रहे स्व.दलबीर सिंह को भी चुनाव हराया और लोकसभा पहुचे,”बड़ी बात यह की राजनीती के दुरंधर माने जाने वाले छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को भी इन्होने शहडोल लोकसभा से 1999 का चुनाव हराया था”
2004 में स्व.राजेश नंदिनी को हरा कर लोकसभा पहुचे और आखरी बार स्व दलबीर सिंह की पत्नी स्व राजेश नंदिनी सिंह को दोबारा चुनाव हराकर मोदी सरकार का हिस्सा बने दलपत सिंह अपने जीवन काल में पांच बार सांसद रहे है लेकिन पांचवी पारी के बीच में ही क्षेत्र की जनता का साथ छोड़ दिया,
बहरहाल शहडोल आदिवासी अंचल है और अब यहाँ के आदिवासी नेतृत्व विहीन है,आदिवासी नेता के रूप में क्षेत्र के बड़े नेतृत्व में से पहले दलबीर सिंह फिर राजेश नंदिनी सिंह और अब दलपत सिंह परस्ते के निधन से संभाग का आदिवासी नेतृत्व सूना पड़ गया,