चिरमिरी नगर निगम क्षेत्र अन्तर्गत आदिवासी बैगाओ कि स्थिति बदहाल…

                                                               “”” मूलभूत सुविधाओं का अभाव “””

 

चिरमिरी से रवि कुमार सावरे की रिपोर्ट

मिटटी का घर, खपैरल की छत और लकड़ियों की कंडी, बस इसी में सिमट कर रह गयी नगरीय क्षेत्रा के वनवासियों की जिंदगी, जो आजादी के 67 साल बाद भी जल, जंगल और जमीन के अधिकार की कल्पना सिर्फ उनके स्वप्नों में ही नजर आता है। यह पूरा मामला कोरिया जिले के कोयलांचल नगरी चिरमिरी आजाद नगर बैंगा पारा का हैं ।

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राज्य सरकार की योजनाये को जमीनी हकीकत देखने पर धरी कि धरी रह जाती है एक ओर जहां आदिवासियो के लिए लाखो करोडो की योजनाएँ बनती वही जमीनी हकीकत कुछ और ही बया करती है ।
चिरमिरी नगर निगम क्षेत्रा बेगा पारा में लगभग 100 वर्षो से निवासित आदिवासी बैगा समाज की स्थिति इतनी दैयनिय हैं कि इसका अकलन करना नामुम्किन ही नही बलकी मुश्किल भी हैं ।

 

जहाँ राज्य सरकार और केन्द्र सरकार इन आदिवासीयो के लिए कागजो पर लाखो करोडो खर्च करती है वहाँ ना तो  रोड है ,, और ना ही पीने का पानी इन आदिवासीयो कि सुध लेने ना तो सरकार कि और से कोई आया,,  ना ही नगर निगम के जनप्रतिनिधी।  जब इन आदिवासियो से इनकी स्थिति के बारे में जानने की कोशिश की गई तो आंखो में आसु टपक पडें लडखडाते जुबा पर आपने दर्द को कुछ इस तरह बंया किया कि ,, “”हमन ला कथे कि हमन निगम के वासी हन लेकिन निगम के कोनो काम से हमन के कोई फायदा नही मिलत हे””   पानी, लाईट घलौ नई हे हमर वार्ड में, हमन के लागथे कि हमन कोनों गांव में रहथन। अउ निगम जाथन कोने

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शिकायत ला ले के तो कोई चीन्हबों नई करें तो काम कहा ले होही। हमर गोठ ला नई समझे तेकरे ले हमन अब काको ला कुछ नई बोलथन।
जंगल की लकड़ियों और दोना पत्तल के भरोसे जिंदगी की गाड़ी को आगे बढ़ाने वाले इन वनवासियों का आसू पोछने आज तलक किसी ने इनके दरवाजे की तरफ रूख नही किया, लिहाजा लोकतंत्र से इनका भरोसा लगभग टूट सा गया है। बरसो पहले जिस जगह में उन्हे बसाया गया उसका भी आज तक अधिकार पत्र नही मिल सका है। षिक्षा के लिएं बच्चें और स्वास्थ्य के लिएं बूढ़ों की निगाहे सरकार की ओर तकती रहती है लेकिन 67 साल बीतने के बाद भी सरकार और उनके नुमाइंदों को बैंगा पारा के वासियों की सुध नही आई।

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