[highlight color=”black”]सूरजपुर[/highlight] [highlight color=”red”]प्रतापपुर से राजेश गर्ग[/highlight]
रोटी कपडा और मकान मनुष्य की सबसे प्रमुख आवष्यकताएं हैं और मकान रहने लायक न हो तो उसमें रहने वाले व्यक्ति का जीवन नरकीय हो जाता हैं। यही स्थिति प्रतापपुर विकासखंड के अंतर्गत विभिन्न कार्यालयों में पदस्त अधिकारीयों, कर्मचारीयों के साथ बनी हुई हैं। विदित हो की सन् 1952 में प्रतापपुर को विकासखंड के रुप में अस्तित्व में आने के साथ ही ब्लाक कालोनी में सोलह सरकारी आवासों का निर्माण हुआ था। अब इनकी स्थिति इतनी जर्जर हो चुकी है कि इनके छप्पर व दीवारें कब गिर जायें कुछ कहा नही जा सकता है, कुछ मकानों की तो पीछे की दिवारे भी गिर चुकी है । खिडकी दरवाजों की हालत भी जर्जर हैं। इन मकानों में रहने वाले कर्मचारी स्वयं के खर्चे से हल्की फुल्की मरम्मत करवाकर दिन काट रहे है, जबकि शासन द्वारा हर साल सरकारी अवासों के रखरखाव के लिए निर्धारित धनराशी जारी की जाती हैं। कई बार शिकायत करने के बावजूद अधिकारी ही अधिकारी की बातें नहीं सुन रहें हैं। समाधन शिविर के दौरान कई बार पीडब्ल्यूडी के ई ई तथा एसडीओ दोनो को मौखिक रुप से इन मकानों की समस्याओं से अवगत कराया गया था किन्तु उन्होने भी सिर्फ आस्वासन देकर अपना किनारा कर लिया।
[highlight color=”blue”]पिछले दस वर्षों से मरम्मत कार्य नही[/highlight]
लगभग दस वर्षों से भी अधिक समय से इन मकानों मेें निवास करने वाले ब्लाक कार्यालय में पदस्थ कर्मचारी ने बताया कि पिछले दस वर्षों से इन मकानों में न तो पेंटिंग का काम हुआ है और न ही दिवारों सहित खिडकी दरवाजों का कार्य हुआ हैं। पीडब्ल्यूडी विभाग द्वारा छप्परों का सुधार भी कभी नहीं कराया गया।
[highlight color=”blue”]स्वयं ही सुधार करवा रहे हैं कर्मचारी[/highlight]
इन आवासों में रहने वाले कर्मचारीयों को स्वयं ही अपने पैसे से सुधार करवाना पड रहा है जबकि उन्हें मिलने वाला आवासीय भत्ता भी इन मकानों में रहने की वजह से नहीं मिलता हैं। जिस मकान में पहले नायब तहसीलदार तथा पशु चिकित्सक रहते थे। वे स्वयं के खर्चें से इन मकानों में सुधार करवाते रहते थे। ताकि संभावित दुर्घटनाओं से बचे रहे। किन्तु आज की स्थिति में पीछे की दिवार पूरी तरह गिर चुकी है।
[highlight color=”blue”]आवास के अभाव में नही रहते अधिकारी, कार्य प्रभावित, नागरिक परेशान[/highlight]
आवास की सुविधा नही होने के कारण कई विभाग के अधिकारी जिला एवं सम्भाग मुख्यालय से ही आना जाना करते है, इससे शासकिय योजनाओं के क्रियान्वयन में जहां अनावश्यक विलंब होता हैं वही क्षेत्र से अपने विभिन्न कार्यों एवं समस्याओं को लेकर आने वाले नागरिक अधिकारीयों की तलाश में भटकते रहते हैं।
[highlight color=”blue”]कहां जाति है मरम्मत की राशी जांच का विषय हैं[/highlight]
इन आवासो की मरम्मत के लिए लोक निर्माण विभाग को प्रति वर्ष शासन द्वारा निर्धारित राशी का आबंटन जारी किया जाता हैं एवं विभागीय अधिकारी उसे खर्च भी करते हैं पर उनके द्वारा कहां मरम्मत कराई जाती हैं और आवंटित पैसा कहां जाता हैं यह भी जांच का विषय है। सूत्रों की माने तो विभाग के अधिकारी अपने चहेते ठेकेदारों एवं विभागीय कर्मचारीयों के द्वारा फर्जी बिल लगा कर मरम्मत के नाम पर प्रति वर्ष लाखों का वारा न्यारा करते हैं। उच्च अधिकारीयों तक की संलिप्तता होने के कारण न तो कभी इसकी जांच हुई हैं ना ही सार्थक कार्यवाही।
शासकीय आवास की रिपेयरिंग के मामले में एसडीओ लोक निर्माण विभाग सूरजपुर जी आर जांगडे ने बताया कि कुछ आवास डिस्मेंटल केे लायक है कुछ आवासों का रिपेरिंग होना है शासन से प्राप्त राशी के अनुसार सम्भागीय कार्यालय से टेन्डर जारी किया जी चुका है। शीघ्र ही कार्य प्रारम्भ कराया जाएगा।