रायपुर. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज बस्तर संभाग के मुख्यालय जगदलपुर के लालबाग परेड मैदान में आयोजित गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह में ध्वजारोहण कर परेड की सलामी ली. इस अवसर पर उन्होंने जनता के नाम अपने संदेश में कहा कि गणतंत्र की सफलता की कसौटी जनता से सीखकर, उनकी भागीदारी से, उनके सपनों को पूरा करने में है. श्री बघेल ने प्रदेशवासियों को देश के 71वें गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि छत्तीसगढ़ की माटी और छत्तीसगढ़ की जनता से बड़ी कोई पाठशाला नहीं है. मैं जितनी बार बस्तर आता हूं, सरगुजा जाता हूं या गांव-गांव का दौरा करता हूं तो हर बार मुझे कोई नई सीख जरूर मिलती है. लोहण्डीगुड़ा ने हमें आदर्श पुनर्वास कानून के पालन की सीख दी तो आदवासियों की जमीन वापसी से छत्तीसगढ़ सरकार को अपार यश मिला. मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़ी में सम्बोधन की शुरूआत करते हुए कहा कि जम्मो संगी-जहुंरिया, सियान-जवान, दाई-बहिनी अऊ लइका मन ला जय जोहार, 71वें गणतंत्र दिवस के पावन बेरा म आप जम्मो मन ल बधाई अउ सुभकामना देवत हंव.
मुख्यमंत्री ने की तीन बड़ी घोषणाएं
मुख्यमंत्री ने कहा कि आज गणतंत्र दिवस के अवसर पर मैं नई पीढ़ी को जागरूक और सशक्त बनाने के संबंध में तीन नई घोषणाएं करता हूं. जब केन्द्र में यूपीए सरकार थी तब ’शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009’ में प्रावधान किया गया था कि बच्चों को यथासंभव उनकी मातृभाषा में पढ़ाया जाये. विडंबना है कि राज्य में अभी तक इस दिशा में ठोस पहल नहीं की गई. आगामी शिक्षा सत्र से प्रदेश की प्राथमिक शालाओं में स्थानीय बोली-भाषाओं छत्तीसगढ़ी, गोंडी, हल्बी, भतरी, सरगुजिया, कोरवा, पांडो, कुडुख, कमारी आदि में पढ़ाई की व्यवस्था की जाएगी। सभी स्कूली बच्चों को संविधान के प्रावधानों से परिचित कराने के लिए प्रार्थना के समय संविधान की प्रस्तावना का वाचन, उस पर चर्चा जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जायेंगे. छत्तीसगढ़ की महान विभूतियों की जीवनी पर परिचर्चा जैसे आयोजन किए जाएंगे.
छत्तीसगढ़ भी बना देश के महान क्रांतिकारियों की परंपरा का हिस्सा
मुख्यमंत्री ने कहा कि मुझे यह कहते हुए बहुत गर्व का अनुभव होता है कि बस्तर के हमारे अमर शहीद गैंदसिंह और उनके साथियों ने सन् 1857 की पहली क्रांति के ज्ञात-इतिहास से बहुत पहले परलकोट विद्रोह के जरिये गुलामी के खिलाफ जो अलख जगाई थी, वह भूमकाल विद्रोह के नायक वीर गुण्डाधूर और शहीद वीरनारायण सिंह के हाथों में पहुँचकर मशाल बन गई. मैं यह सोचकर भी बहुत रोमांचित हो जाता हूँ. कि अमर शहीद मंगल पाण्डे, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, रानी लक्ष्मी बाई जैसे क्रांतिकारियों की पावन परंपरा का हिस्सा छत्तीसगढ़ भी बना था.
मुख्यमंत्री ने महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को नमन किया
मुख्यमंत्री ने देश के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को नमन करते हुए कहा कि हमारा छत्तीसगढ़, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पं. जवाहर लाल नेहरू, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद, बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जैसी विभूतियों के पद-चिन्हों पर चला. पं. रविशंकर शुक्ल, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, डॉ. खूबचंद बघेल, पं. सुंदरदरलाल शर्मा, बैरिस्टर छेदीलाल, यतियतन लाल, डॉ. राधाबाई, पं. वामनराव लाखे, महंत लक्ष्मीनारायण दास, अनंतराम बर्छिहा, मौलाना अब्दुल रऊफ खान, हनुमान सिंह, रोहिणी बाई परगनिहा, केकती बाई बघेल, बेला बाई के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ राष्ट्रीय चेतना से जुड़ा. मैं सभी को नमन करता हूं.
भारतीय संविधान की गौरवगाथा को किया याद
श्री बघेल ने कहा कि आज का दिन भारतीय संविधान निर्माण की गौरवगाथा को याद करने का है. और यह संकल्प लेने का भी, कि हम सब भारतवासी अपने संविधान की रक्षा करने के लिए सदैव तत्पर रहेंगे. संविधान निर्माता डॉ. अम्बेडकर ने कहा था-यह तथ्य मुझे व्यथित करता है कि भारत ने पहले भी एक बार स्वतंत्रता खोई है. यदि राजनीतिक दल अपने पंथ को देश के ऊपर रखेंगे तो हमारी स्वतंत्रता एक बार फिर खतरे में पड़ जाएगी और संभवतया हमेशा के लिए समाप्त हो जाए. हम सभी को इस संभाव्य घटना का दृढ़निश्चय के साथ प्रतिकार करना चाहिए. हमें खून के आखिरी कतरे तक, अपनी आजादी की रक्षा करने का संकल्प करना चाहिए. हमें अपने सामाजिक और आर्थिक लक्ष्यों कोे प्राप्त करने के लिए निष्ठापूर्वक संवैधानिक उपायों का ही सहारा लेना चाहिए. आज के दिन हमें याद करना चाहिए कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना ’’हम भारत के लोग’’ के उद्घोष के साथ शुरू होती है. जिसमें न्याय, समता, बंधुता, व्यक्ति की गरिमा, विचार-अभिव्यक्ति-विश्वास-धर्म और उपासना की स्वतंत्रता जैसे शब्द मील के पत्थर की तरह हमें रास्ता दिखाते हैं. आज का दिन यह रेखांकित करने का भी है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू ने साम्प्रदायिकता को अपने समय की सबसे खतरनाक प्रवृत्ति के रूप में चिन्हित किया था, इसलिए उन्होंने धर्मनिरपेक्ष समाज और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की मजबूत नींव डालने के लिए धर्मनिरपेक्ष संविधान पर जोर दिया था. वहीं देश के नियोजित विकास का आधारभूत ढांचा खड़ा किया था, जो भारत की योजनाबद्ध तरक्की का आधार बना. सात दशकों में भारत ने विकास की जो ऊंचाइयां हासिल की हैं, उसका सबसे बड़ा कारण हमारे संविधान की वह शक्ति है, जो तमाम विविधताओं के बीच भारत को सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न समाजवादी, पंथ निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाती है.