बलरामपुर…(कृष्णमोहन कुमार).देश एक एक ओर अपनी आजादी की 72 वी वर्षगाँठ मनाई गई..देश मे प्रजातांत्रिक व्यवस्था है..इसी बीच देश मे कितनी सरकारें आई और चली भी गई..सबने अपने -अपने अंदाज में देश के सर्वांगीण विकास का दावा किया..पर वे सब तमाम दावे तब खोखले साबित हो जाते है..जब गाँवो में बसने वाले भारत की एक ऐसी छवि देखने को मिलती है..जिन्हें विकास के नाम पर छला गया..ग्रामीण आज भी बेबस है..ना पीने को पानी है.. ना आवागमन के लिए सड़क..फिर भी अधिकारियों का दावा की आने वाले समय मे सब ठीक हो जाएगा..पर कब? इसकी गारंटी किसी के पास नही है…एक साल पहले तत्कालीन कलेक्टर और जिला पंचायत सीईओ पहुँचे थे..भालूपानी और ग्रामीणों की किया था आस्वस्त…
दरसल बलरामपुर जिले के शंकरगढ़ ब्लाक के ग्राम भालूपानी स्थित है. जहाँ के बाशिन्दों को आज तक मूलभूत की परिभाषा ही नही मालूम पहाड़ी कोरवा जनजाति बाहुल्य इस गाँव मे ऐसी कोई भी सुविधा नही है..जो सरकार के विकास के दावों पर खरी उतरती हो..अब ऐसे में ग्रामीणों का आरोप है की नेता वोट तो लेने आते है..पर बाद में भूल जाते है..यह इसी का नतीजा है की ग्रामीण आजादी के 72 साल बाद भी बदहाली में जीवन जी रहे है..
दशा दिशा दोनों ही नही बदली…
ग्राम पंचायत कोठली के आश्रित ग्राम भालूपानी की दशा और दिशा दोनों ही सरकारी उपेक्षा से ग्रस्त है..और ग्रामीण सरकार से मांग -मांग के त्रस्त है..गाँव मे पहुँचने के लिए ना ही पक्की सड़क है..और ना ही साफ पानी..और यही वजह है की ग्रामीण जोखिम उठाकर बरसाती नाले का पानी पीने को मजबूर है.
दो शिक्षक दो स्कूल..
प्रदेश सरकार का यह दावा भी अजब है जिसमे सरकार कहती है की हर गाँव मे जरूरत के मुताबिक स्कूल खुले है..भालूपानी में मिडिल और प्रायमरी स्कूल तो है जो 1981 से एक झोपड़ी में लगता है. जो बरसात में कीचड़ से मयस्सर हो जाया करती है..जहाँ 2009 से दो शिक्षक रोजाना पहुँचविहीन पहाड़ियों के पथरीले रास्ते से होकर भालूपानी पहुँचते है और बच्चों को पढ़ाते है…
सरकारी सिस्टम में सब फेल..
स्कूल भवन सरकार ने स्वीकृत तो कर दी पर सरकारी काम का सरकारी आलम भी देख लीजिए..डोर लेवल पर अधर में लटकी यह निर्माणाधीन भवन एक सरकारी स्कूल की है..जिसके बन जाने से गाँव के सैकड़ो बच्चे अपने भविष्य को गढ़ सकेंगे, पर सरकारी सिस्टम का सरकारी खेल भवन निर्माण का पहला किश्त जारी हुआ पर दूसरे का पता नही ..इसीलिए यह भवन अप्रैल 2018 से शोपीस बनकर खड़ी हुई है..
भविष्य सँवारने का रस्ता बीहड़ दुर्गम पहाड़ियों भरा..
गाँव मे प्रायमरी से लेकर मिडिल तक की पढ़ाई होती है..तो वही हाईस्कूल पढ़ने वाले बच्चों को भी बियाबान इस जंगल के दुर्गम रास्ते से 8 किलोमीटर की दूरी तय कर पंचायत मुख्यालय कोठली जाना पड़ता है..इतना ही नही इन विद्यार्थियों को हमेशा जंगल मे मौजूद हिंसक जानवरो से खतरा बना रहता है..जिसके चलते ये एक साथ टोली बनाकर चलते है..इसके अलावा झमाझम बारिश होने पर इन्हें भारी कठिनाइयों को पार कर स्कूल जाना पड़ता है..
जिम्मेदारों की जिम्मेदारी का अब तक नही पता..
गाँव मे विकास के मुद्दे पर जिम्मेदार अधिकारियों की जिम्मेदारी का पता इसी से चल जाता है की वे भविष्य में गाँव के विकास के लिए बेहतर कार्ययोजना की बात करते है..आखिर उन्हें यह भी तो पता होना चाहिए की जिस मसले को वे कार्ययोजना का नाम देकर टाल रहे है..यह समस्या आज की नही बल्कि वर्षो पुरानी है..जो बदलते भारत के सपने को ठेंगा दिखाती है..